Monday, November 25, 2024
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कट्टरपंथ का नया अड्डा

बांग्लादेश में कट्टरपंथी गुटों का प्रभाव निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। यह आश्चर्यजनक है कि बांग्लादेश का निर्माण ही पाकिस्तान सेना के अत्याचारों और उत्पीड़न के कारण हुआ था। पाकिस्तानी सेना द्वारा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में 30 लाख बंगालियों की हत्या की गई थी तथा उनकी महिलाओं को उत्पीड़न और अत्याचार के अंतहीन कुचक्र में धकेल दिया गया था। बांग्लादेश द्वारा ऐसे खतरनाक अनुभवों के बाद भी कोई सीख नहीं ली गई है। बांग्लादेश में कट्टरपंथियों द्वारा नृशंस ढंग से प्रगतिशील लेखक अभिजीत रॉय की सरेआम हत्या कर दी गई। कट्टरपंथियों का कहना था कि अभिजीत रॉय अपने लेखन द्वारा हिंदू होते हुए भी इस्लाम की निंदा कर रहे थे, इसलिए उनकी हत्या उचित है। अभिजीत रॉय की हत्या उस समय सरेआम सड़क पर की गई, जब वह अपनी पत्नी रफीदा अहमद बन्ना के साथ पैदल जा रहे थे।  ऐसा नहीं है कि कट्टरपंथियों के निशाने पर अन्य धर्मावलंबी ही हैं। इन कट्टरपंथियों ने इस्लामिक प्रगतिशील विद्वानों को भी नहीं छोड़ा है। इसके पूर्व वर्ष 2004 में प्रोफेसर हुमायूं आजाद तथा वर्ष 2013 में राजिब हैदर की भी इस्लामी चरमपंथियों ने हत्या कर दी थी। आज तक इन हत्यारों को दंडित नहीं किया गया है। तसलीमा नसरीन से लेकर सलमान रुश्दी तक अनेक प्रगतिशील लेखक मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं। अभिजीत रॉय एक प्रगतिशील व्यक्ति थे और उन्होंने ‘मुक्तमना’ नामक एक ब्लॉग शुरू किया था।



प्रगतिशील सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण व तार्किकता से युक्त कोई भी व्यक्ति इस ब्लॉग में लिखने के लिए स्वतंत्र था। बांग्लादेश के एक लोकप्रिय ब्लॉगर आसिफ मोहीउद्दीन पर इसी प्रकार के लेखन के कारण कट्टरपंथियों और स्थानीय प्रशासन ने हमला बोल दिया था। तब अभिजीत ने ही आसिफ मोहीउद्दीन की जान बचाई थी। आज यदि आसिफ सही सलामत हैं और असुरक्षा तथा अनिश्चय के वातावरण से दूर रहकर एक दूसरे देश में निवास कर रहे हैं और अपना लेखन कार्य जारी रखे हुए हैं, तो इसके पीछे अभिजीत का ही योगदान है। ऐसे मानवतावादी प्रगतिशील व्यक्ति की हत्या निश्चित रूप से सभ्य समाज के माथे पर एक कलंक है। यह आश्चर्यजनक है कि भारत निरंतर बड़ी तेजी से अपनी सीमाओं के चारो ओर कट्टरपंथी विचारधारा के प्रभाव वाले देशों से घिरता जा रहा है। कट्टरपंथियों का कहना है कि वे सभी विधर्मी और काफिर हैं, जिन्होंने इस्लाम के विरुद्ध लिखा और कहा है। आज यह एक वैश्विक संकट है कि जो भी लेखक, विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता साहस के साथ कट्टरवाद के विरुद्ध अपने स्वतंत्र विचारों को व्यक्त करते हैं, उनके ऊपर सदैव मौत का संकट मंडराता रहता है। कट्टरपंथियों के खौफ से भारत में रह रही बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन निरंतर यह आशंका व्यक्त करती रही हैं कि किसी न किसी दिन कट्टरपंथी अवश्य ही उनकी हत्या कर देंगे। ऐसा लगता है कि संपूर्ण विश्व के धार्मिक कट्टरपंथियों ने यह कसम खा ली है कि वे विश्व में किसी भी प्रगतिशील विचारक और नास्तिक या निरिश्वरवादी को जीवित नहीं रहने देंगे। यह किस प्रकार की सोच है कि कट्टरपंथी दूसरों को तो काफिर कहें तथा उनके विरुद्ध जेहाद छेड़ दें, यहां तक कि किसी भी व्यक्ति का मनमाने ढंग से सर कलम करने का फतवा जारी कर दें और दूसरी तरफ यह बर्बर कट्टरपंथी अन्य नागरिकों को इतना भी मौलिक अधिकार न दें कि वह स्वतंत्र रूप से अपने तार्किक विचार तक व्यक्त कर सकें।आतंकी अपनी फंडिंग के लिए कारोबारी की तरह काम करने लगे हैं, इसलिए इन्हें पकड़ना खुफिया एजेंसियों के लिए चुनौती बन चुका है। विश्व में ऐसे अपराधों में लिप्त लोगों की पहचान मुश्किल है, क्योंकि अपराधी या तो सरकारी शरण लिए हुए होते हैं अथवा इतने छोटे स्तर के होते हैं कि उन पर आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने का शक ही नहीं जाता है। छिटपुट अपराधियों को आतंकी संगठन इस्लाम की गलत व्याख्या के जरिए जिहाद का झूठा पाठ भी पढ़ाते हंै। तुर्की और सऊदी के इमामों ने आतंकियों को इस्लाम की सही शिक्षा देने का निश्चय किया है। यह एक प्रगतिशील एवं रचनात्मक कदम है। पहले आतंकियों द्वारा खाड़ी देशों से चंदा लेकर फंड जुटाया जाता था, लेकिन फंड की कमी के चलते पोर्नोग्राफी, लूट का माल सस्ते में बेचकर, मानव तस्करी करके, पासपोर्ट बेचकर, हथियारों की बिक्री, नकली माल और दवाओं की बाजार में बिक्री करके ये आर्थिक संसाधन जुटा रहे हैं। इन आतंकी संगठनों की मदद वहीं के स्थानीय लोग उन्हें अपना समझ कर करते रहते हैं।  यह उचित ही है कि बोडो उग्रवादियों के खिलाफ कार्यवाही के लिए भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश भी सहयोग करने के लिए तैयार हो गए हैं। यह भी आवश्यक है कि उन अन्य उग्रवादी संगठनों के विरुद्ध भी इस साझा कार्रवाई का विस्तार किया जाए, जो हथियारों के बल पर जब-तब मनमानी करते रहते हैं। इसमें से कई ऐसे आतंकी और हिंसक संगठन हैं, जो बोडो उग्रवादियों की तरह ही पड़ोसी देशों में शरण पाने में सफल रहे हैं। इनमें ‘उल्फा’ और ‘केएलओ’ जैसे संगठन शामिल हैं। यह ध्यान रखना होगा कि भूटान, म्यांमार तथा बांग्लादेश से खदेड़े जाने की सूरत में यह आतंकी संगठन तथा पूर्वोत्तर उग्रवादी कहीं चीन की सीमा में दाखिल न हो जाएं अथवा वहां शरण न पा जाएं। फिलहाल यह जानना कठिन है कि उन्हें कि इस संदर्भ से कितनी मदद मिल पाएगी, लेकिन भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार को इसके लिए भी तैयार किया जाना चाहिए कि वे पूर्वोत्तर के किसी भी उग्रवादी संगठन को शरण देने से बचें। इस सिलसिले में खुफिया एजेंसियों को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है।