छप्पन इन्ची वक्ष
मोदी मोदी रट रहा, मिलकर सकल विपक्ष।
लेकिन जिद छोड़े नहीं, छप्पन इन्ची वक्ष।।
छप्पन इन्ची वक्ष, नहीं वह झुके झुकाये।
कैसे बचे बजूद, विपक्षी सब पगलाये।।
बची-खुची थी साख, विपक्षी-दल सब खो दी।
राम राम ज्यों जपें, ‘‘राजगुरु’’ मोदी मोदी।।
राजनीति का निम्न स्तर
सकल विपक्षी दल हुए, अब इतने लहलीट। (बे-शरम)
सेना को मुद्दा बना, लगे बचाने सीट।।
लगे बचाने सीट, सु-श्री ममता बौराई।
कहती पूछे बिना कुमुक तैनात कराइ्र्र।।
समझे दूजा देष, ‘‘राजगुरु’’ गायब अकल।
निम्न स्तर पर उतरे, विपक्ष के नेता सकल।ं
जनता चाहे युद्ध
जनता का मन पाक पर, अब है इतना क्रुद्ध।
ओम षान्ति रट छोड़कर, रटे ओम जय युद्ध।।
रटे ओम जय युद्ध,शान्ति पथ सभी थक गये।
अब सब चाहें युद्ध, शान्ति से कान पक गये।।
आन्दोलित ‘‘राजगुरु’’,शान्ति से काम न बनता।
करो पाक से युद्ध, रट रही सारी जनता।।
लेखक आचार्य शिवप्रसादसिंह राजभर ‘‘राजगुरु’’, सिहोरा, जबलपुर म.प्र.