देश की आम जनता को जिस तरह से बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराने की नैतिक जिम्मेदारी केन्द्र एवं राज्य सरकारों की होती है, ठीक उसी तरह से लोगों को सस्ता व सुगम सार्वजनिक लोक परिवहन सुविधा उपलब्ध कराना भी सरकारों का ही फर्ज है। इस देश का आम गरीब अपने गांव- कस्बों और मोहल्लों से निकल कर बड़ी तादात में बड़े शहरों की तरफ रूख करता है। ये वो जमात होती है जो दो वक्त की रोटी के लिए अपने घरों से महरूम होकर पलायन करती है। हमारे भारत में काम की तलाश में दिन प्रतिदिन बड़ी संख्या में मजदूर लोग देश की राजधानी दिल्ली- मुंबई और राज्यों की राजधानियों के अलावा बड़े शहरों की तरफ रूख करते है। अपने घरों से महरूम होकर पलायन करने वाले ये ऐसे लोग होते है जो शहर के बीचों बीच नही बल्कि शहर के आउटर एरिया में निवास करते है। ऐसी स्थिति में सरकारों की ओर भी जिम्मेदारी बनती है कि इन लोगों को सस्ता और अच्छा सार्वजनिक लोक परिवहन उपलब्ध कराएं। हालाकि मुंबई में लोकल टे्रन और दिल्ली में मेट्रो ट्रेन ने कुछ हद तक इस सावर्जनिक लोक परिवहन की सुविधा से लोगों को राहत दी है। लेकिन हाल के दिनों में देखने में ये भी आया है कि इस तरह की सुविधाओं से लोगों को महरूम करने का एक षडयंत्रकारी माहौल भी बनाया जा रहा है। बड़ी-बड़ी नामी गिरामी नीजि टेक्सी संचालक जैसे ओला-उबेर और तमाम दूसरी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के ध्येय से सार्वजनिक लोक परिवहन को आमजन की पहुंच से दूर करने का काम किया जा रहा है। मेट्रो ट्रेन को लेकर दिल्ली में इस तरह का षडयंत्र तेजी से चल रहा है। यहां जब-तब मेट्रो का किराया बढ़ा कर यह दलील दी जाती है कि प्रोजेक्ट को संचालित करने में घाटा हो रहा है इस कारण किराया बढ़ाया जा रहा है। लेकिन यह आधा सच है। इसके साथ ही डीएमआरसी कर्मचारियों के वेतन, रखरखाव और दूसरी सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए खर्च जुटाने की दलीले भी बीते समय दे चुका है। जबकि हाल के दिनों तक दिल्ली मेट्रो लगातार मुनाफे का दावा करती रही है।
काबिलेगौर हो कि दिल्ली मेट्रो परियोजना यहां की जनता के टेक्स बनायी गई है। मतलब साफ है कि इसका ध्येय शुद्ध रूप से लोगों को सुविधा प्रदान करना है न कि प्राफिट कमाना। लेकिन देखने में आ रहा है कि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को बड़े-बड़े धन्ना सेठों के हवाले करने के लिए तरह-तरह के षडयंत्र रचे जा रहे है और लोक परिवहन को मंहगा और दूभर बनाया जा रहा है। आप सब भी इस बात को अच्छे से जानते है कि किसी भी शहर में यातायात और पर्यावरण को सहजने के लिए सबसे जरूरी होता है सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाना। लेकिन डीएमआरसी यानी दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोशन ने अगर मई से लेकर अब तक दूसरी बार किराए में बढ़ोतरी की है, तो इसका मतलब साफ है कि नियत में कहीं खोट है। इसको लेकर एक सच यह भी है कि हर आंकड़े में यात्रियों की बढ़ोतरी के अलावा मेट्रो परिसरों के व्यापक पैमाने पर व्यावसायिक इस्तेमाल होने से इसकी आमदनी भी खासी रही है। इसलिए घाटे की दलील पर किराए में इतनी बड़ी बढ़ोतरी की बात से सहमत हो पाना थोड़ा मुश्किल लगता है। बेशक ताजा बढ़ोतरी महज दस रुपए है, लेकिन अगर मई माह में ही इस बात का खयाल रखा गया होता तो ज्यादातर लोगों को इतनी आपत्ति नहीं होती जितनी आज हो रही है। तब तो किराया पहले तीस रुपए अधिकतम को बढ़ा कर पचास किया, फिर अब उसे साठ रुपए कर दिया है। सौ फीसद की यह वृद्धि नए स्लैब निर्धारण में कहीं-कहीं और भी ज्यादा हो जाती है। यहां तो सवाल ये भी मौजूं है कि एक बेहतरीन सार्वजनिक परिवहन सेवा देने का दावा करने वाली दिल्ली मेट्रो के लिए उसके उपभोक्ता प्राथमिक हैं या फिर मुनाफा कमाना। आज दिल्ली में मेट्रो आम लोगों के लिए सार्वजनिक परिवहन की रीढ़ बन चुकी है। मेट्रो का सफर लोगों को न केवल ट्रेफिक की समस्या से निजात दिलाता है बल्कि आरामदेह भी है। इसका किराया भी लोगों की पहुंच में था इसलिए यह सबको न्यायपूर्ण लगता था लेकिन जब से बार-बार किराया बढ़ाए जाने की राजनीति शुरू हुई है तब से काफी लोग नाराज दिखाई दे रहे है। दिल्ली मेट्रो का किराया मई के महिने में बढ़ाया गया था।
किराए में बढ़ोतरी होने के बाद मेट्रो से सफर करने वालों की संख्या में हर दिन करीब डेढ़ लाख लोगों की कमी देखी गई। ये एक हैरान करने वाला सच है और इसका खुलासा एक आरटीआइ के तहत सामने आया ह। मेट्रो में यात्रियों की होने वाली इस कमी के चलते अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो डेढ़ लाख लोग कम हुए है उनने काम धंधे पर जाना तो छोड़ा नही होगा। वे अभी भी उसी तरह से नौकरी और काम धंधा करने जाते होगे जैसे पहले जाते थे लेकिन अब वे अपने नीजि साधनों से कार्य स्थल तक पहुंचते होगें। आज दिल्ली में पर्यावरण की स्थिति बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। प्रदूषण को लेकर यहां आलम ये है कि इंसान ठीक से सांस तक नही ले पाता है। जब इतनी बड़ी तादात में लोग अपने वाहनों या दूसरे साधनों से सफर करेगें तो प्रदूषण का लेवल कितना बढने लगा होगा। ऐसी स्थिति में इस बात का बेहद ध्यान रखने की जरूरत होती है कि सुलभ, सस्ता और सुविधाजनक सार्वजनिक परिवहन हो ताकि शहर को सुव्यवस्थित व प्रदूषण रहित रखा जा सके। इसमें कोई दोराय नही है कि हम लोक परिवहन को जितना सस्ता और आसान बनाएगें शहर की आबो हवा उतनी ही अच्छी होगी। दुर्भाग्य से आज हालत यह है कि बढ़ाए गए किराए की वजह से बड़ी तादाद में लोग मेट्रो से आवाजाही के दायरे से बाहर हो गए हैं। ताजा किराया वृद्धि के बाद यह संख्या और बढने की आशंका है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने बड़े पैमाने पर लोग मेट्रो की पहुंच से दूर हो गए और होने वाले है। इस समय यह मसला ड़ीएमआरसी के साथ ही भाजपा और आम आदमी पार्टी के लिए लोगों की परेशानी का सबब न होकर राजनीति का हथियार बन कर सामने आया है। हालाकि पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार और डीएमआरसी के बीच इस बात को लेकर काफी जद्दोजहद होते देखी गई कि किराए में बढ़ोतरी न की जाए। अगर यह भी सही है कि मेट्रो किराया निर्धारण समिति में दिल्ली सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल थे तो फिर किराया कैसे बढ़ गया। इसका मतलब साफ है कि किराया बढ़ाने में कहीं न कहीं उनकी भी मौन सहमति थी। बेशक दिखावे के लिए आम आदमी पार्टी जरूर विरोध कर रही है लेकिन अब इस विरोध के मायने क्या। खैर।
-संजय रोकड़े, इंदौर।