पड़ोसी देश श्रीलंका भारत के लिए एक महत्वपूर्ण राष्ट्र रहा है। श्रीलंका के साथ भारत के रिश्तों में पिछले कुछ दशकों में उतार-चढ़ाव आता रहा है। भारत ने अब नए ढंग से श्रीलंका के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को गति देने की कोशिश की है। हाल ही में असैन्य परमाणु समझौते के द्वारा दोनों देशों ने पुनः परस्पर विश्वास के भाव को स्पष्ट रूप से दर्शाया है। श्रीलंका ने पहली बार किसी देश के साथ इस प्रकार का असैन्य परमाणु समझौता किया है। इस समझौते के बाद भारत और श्रीलंका के मध्य कृषि और स्वास्थ्य सेवाओं सहित कतिपय अन्य क्षेत्रों में भी द्विपक्षीय सहयोग के नए मार्ग प्रशस्त होंगे। इस परमाणु समझौते से भारत और श्रीलंका के मध्य सूचना, जानकारी और विशेषज्ञता वाले अनेक क्षेत्रों में द्विपक्षीय आदान-प्रदान को नई गति मिलेगी। इसके अतिरिक्त परमाणु ऊर्जा की शांतिपूर्ण प्रयोग के क्षेत्र में संसाधनों को साझा करने, परमाणु क्षमताओं को विकास करने, परमाणु सुरक्षा तथा प्रशिक्षण के क्षेत्रों में भी इस समझौते से व्यापक लाभ होने की संभावना है। श्रीलंका एक जीवंत और मजबूत लोकतंत्र है। इससे भी अधिक अहम यह है कि इस देश में आजादी यानी 1948 के बाद से लोकतंत्र निर्बाध रूप से चल रहा है। भारत के अलावा श्रीलंका दक्षिण एशिया का दूसरा ऐसा देश है जहां कभी सेना की ओर से तख्तापलट नहीं किया गया। ऐसा नहीं है कि श्रीलंका में लोकतंत्र पूरी शांति से चल रहा है। यहां तीस साल तक भयानक गृहयुद्ध भी चला। इस युद्ध ने ऐसी विकृतियां उत्पन्न की हैं जिन्हें दूर किया जाना जरूरी हो गया है। अलग तमिल राष्ट्र की मांग को लेकर आतंक मचाने वाले संगठन लिट्टे का प्रभाव अब तमिल समुदाय में भी सीमित रह गया है। कोलंबो से शिकायतें और अनेक मतभेद रखने वाले अल्पसंख्यक तमिल समुदाय ने चुनाव में बड़ी तादाद में वोट डाले। ऐसा ही मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय ने भी किया। यह समुदाय भी सिंहली वर्चस्व की आशंका से भयभीत है। इन दोनों अल्पसंख्यक समुदायों ने मिलकर राजपक्षे को सत्ता से बाहर कर दिया। राजपक्षे के प्रति उनके साझा विरोध ने सिरीसेना का पलड़ा भारी कर दिया। जो भी हो, नतीजों की यह व्याख्या करना सही नहीं होगा कि तमिल और मुस्लिम समुदाय की एकजुटता ने गृहयुद्ध के विजेता राजपक्षे की हार सुनिश्चित कर दी। सिरीसेना इसलिए जीते, क्योंकि अल्पसंख्यक मतों को अपने पक्ष में करने के साथ वह सिंहली बौद्ध वोटों में विभाजन करने में सफल रहे। श्रीलंका में चीन की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए भारत को विशेष रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है। फिलहाल श्रीलंका में सर्वाधिक निवेश करने वाला राष्ट्र चीन ही है। भारत ने भी यद्यपि उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में आधारभूत संरचना के विकास में व्यापक निवेश किया है। यह वह क्षेत्र है, जहां तमिलों की आबादी बहुत अधिक है। उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में भारत ने श्रीलंका को व्यापक सहयोग प्रदान किया है। इस क्षेत्र में भारत ने न केवल रेलवे लाइन बिछाई हैं, वरना सड़क मार्गों का निर्माण करने में भी बहुत बड़ा योगदान दिया है। भारत ने इस क्षेत्र में नागरिकों के रहने योग्य आवासों के निर्माण के लिए भी बहुत अधिक निवेश किया है। यद्यपि महिंद्रा राजपक्षे के नेतृत्व में पिछली श्रीलंका सरकार ने भारत के साथ वैसी गर्मजोशी भरा व्यवहार नहीं दिखाया, जैसा अपेक्षित था।
महिंद्रा राजपक्षे के नेतृत्व में श्रीलंका तेजी के साथ चीन के पक्ष में मुड़ता हुआ दिखाई दिया। महिंद्रा राजपक्षे ने अति आत्मविश्वास में आकर गलत सलाहों के आधार पर मध्यावधि चुनाव करा दिए, जिसमें उनके ही पुराने सहयोगी रहे मैत्रिपाल सिरिसेना ने प्रमुख विपक्षी के रूप में उन्हें कड़ी टक्कर दी। इन चुनावों में सिरिसेना को अप्रत्याशित रूप से तमिलों, अल्पसंख्यक मुस्लिमों और लगभग सभी विपक्षी दलों ने सहयोग दिया, जिसके कारण सिरिसेना ने सभी आंकलनों को नकारते हुए आश्चर्यजनक ढंग से भारी बहुमत के साथ चुनावी सफलता प्राप्त की। भारत को श्रीलंका में बदली हुई राजनैतिक परिस्थितियों का यथोचित सदुपयोग करना चाहिए। सिरिसेना का रूख भारत के अनुकूल है और भारत को अब और समय गंवाए बिना श्रीलंका में सक्रिय भूमिका अपनानी चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में राजपक्षे के नेतृत्व में श्रीलंका में जिस प्रकार चीन अधिकाधिक दखल और बढ़त बनाता जा रहा था, उसे भारत के पक्ष में मोड़ने का समय अब आ गया है। अपनी भारत यात्रा के दौरान सिरिसेना ने भारत के साथ सौहार्दपूर्ण ऐतिहासिक संबंधों की स्थापना पर बल दिया है। भारत ने भी सिरिसेना को पूर्ण सहयोग प्रदान करने का आश्वासन देते हुए श्रीलंका के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्रों में बसे हुए तमिलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का उचित आह्वान किया है। यह भी चिंता व्यक्त की गई कि मछुआरों को लेकर दोनों देशों की सीमाओं पर प्रायरू तनावपूर्ण स्थितियां बन जाती हैं। इस प्रकार की तनावपूर्ण स्थितियों को रोकने तथा इनका समुचित समाधान खोजने की दिशा में भी दोनों पक्ष बातचीत की दिशा में गंभीरतापूर्वक आगे बढ़े हैं। हिंद महासागर में चीन अपना दखल तेजी से बढ़ाता जा रहा है। भारत और अमेरिका के पारस्परिक हित भी हिंद महासागर क्षेत्र के साथ सघन रूप से जुड़े हुए हैं। श्रीलंका में पिछली महिंद्रा राजपक्षे सरकार चीन की समर्थक थी। राजपक्षे की हार के साथ ही यह उम्मीद की जा रही है कि श्रीलंका में चीन की यह बढ़त अब समाप्त हो सकती है।