Monday, November 25, 2024
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नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से राजयोग एवं व्यसनों मुक्ति के लिए किया प्रयास

ज्ञान व्यवहार शुद्धि के लिए है, दिमाग में रखने के लिए नहीं ………
हाथरसः नीरज चक्रपाणि। वेदों के पाठ हो लिए बाद में आये हुए शास्त्रों की व्याख्यायें बहुत हुईं। शास्त्र समझ में नहीं आये तो पुराणों की कहानियों के माध्यम से लोगों को जीवन-मूल्यों को बनाये रखने की प्रेरणा दी गई। भौतिकता में फँसे हुए मानव के पास अध्यात्म के लिए समय निकालना मुश्किल हुआ तो कलियुग केवल नाम अधारा कहकर रामनाम सिमरण करने की बात कही गई। अध्यात्म का चोगा पहने लोगों ने राम का नाम भी बदनाम किया तो लोगों खासकर युवाओं का भक्ति भावना से विश्वास उठा है। इसलिए परमपिता परमात्मा शिव की शिक्षाओं रूपी अमृत को बाँटने से पहले ब्रह्मा बाबा ने कहा कि जो भी कहो वह पहले अपने जीवन में धारण जरूर कर लेना। इसलिए अब यहाँ जो कुछ भी सुना है पहले उसे अपना बनाना। ज्ञान व्यवहार शुद्धि के लिए है, दिमाग में रखने के लिए नहीं है। यह भावपूर्ण अभिव्यक्ति शिवसंदेश यात्रा एवं व्यसनमुक्ति अभियान के अन्तर्गत गाँव बसेली में आयोजित नुक्कड़ सभा में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के अलीगढ़ रोड स्थित आनन्दपुरी कालोनी के सहज राजयोग प्रशिक्षण केन्द्र प्रभारी बी.के. शान्ता बहिन ने की।
समय के धन के साथ मेहनत से कमाया हुआ धन भी कीमती है उसे धूँआ के छल्ले बनाकर नहीं उड़ा देना। शराब अच्छे-अच्छे घरों का भी सर्वनाश कर देती है। जो इस बोतल में बन्द हो गया उसके जीवन का अन्त जल्दी होना निश्चित हो गया। शराब के नियमित सेवन से हेपेटाइटिस बी और बाद में हैपेटाइटिस सी हो जाता है जिसका सारी दुनिया में कोई इलाज नहीं है। इन नशों को छोड़कर नारायणी नशा करो तो न केवल घर लेकिन समाज और देश सभी स्वर्ग बन जायेगा। ये उद्बोधन ब्रह्माकुमार दिनेश भाई ने एकत्रित ग्रामीणजनों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।
पूर्व फौजी बी.के. केशवदेव ने कभी राम, कभी कृष्ण, कभी अल्लाह, कभी खुदा, ईश्वर जिसे कहा वह परमेश्वर, कालों के काल महाकालेश्वर कल्प के अन्त यानि कलियुग की इस काली रात्रि में फिर से आकर कृतयुगी दैवीय सृष्टि की रचना प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा करा रहे हैं। ज्ञान प्रकाश है जो अज्ञान के तम को दूर कर देता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पाँच विकार जिन्हें कलियुग में लोगों ने अपनी पूंजी बना लिया है वह मनुष्य के जीवन में अंधकार हैं। सभा की व्यवस्था बनाने में अम्बिका बहिन, दिवाकर भाई, गजेन्द्र भाई, उमाशंकर, राजेश शर्मा, राजकुमार आदि का सहयोग सराहनीय रहा।