पंछियों का बसेरा नियत काल तक
पिंजड़े का बखेड़ा नियत काल तक
कौन आया है रहने यहाँ पर सदा
चक्रजीवन जजीरा नियत काल तक
वक्त की करवटों पर पिघल जाएँगे
कल चमकते सितारे भी ढल जाएँगे
आज अट्टालिकाएं हैं जो तनकर खड़ी
खण्डहर में इमारत बदल जाएँगे
तब ये पूजन ये तर्पण पितरपक्ष से
ताप मरुथल का क्या सिक्त हो पाएगा !
बुझ गया जो अतृप्ति में जलकर दीया
वह अँधेरा क्या फिर दीप्त हो पाएगा !!आज कोई गया कल कोई जाएगा
काल का चक्र है सबको अजमायेगा
पर जो घर से तुम्हारे है रोकर गया
दाह में आह की लौट कर आएगा
जल चढ़ाकर हो भक्ति किसे दे रहे
पिंड तर्पण की मुक्ति किसे दे रहे
चैन जीतेजी जिसको न पल भर दिया
कर्म-कांडों की युक्ति उसे दे रहे
पार चौकट धुले आसमां को गया
तिल के दानों से क्या शान्ति मिल जाएगी
आस की लाश जीवन में ढोता रहा
उस मलिन मुख को क्या कान्ति मिल जाएगी
जल चढ़ाकर मरी शाख पर होगा क्या
प्यास प्राणों में क्या तृप्त हो पाएगा !
बुझ गया जो अतृप्ति में जलकर दीया
वह अँधेरा क्या फिर दीप्त हो पाएगा !!
– कंचन पाठक.
कवयित्री, लेखिका, मुम्बई।