हाथरस, जन सामना संवाददाता। सांसद राजेश कुमार दिवाकर ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से निर्धन लेकिन पात्र विद्यार्थियों के सरकारी एवं निजी काॅलेजों में प्रवेश सुनिश्चित करने हेतु सरकार द्वारा उठाये गये कदमों के सम्बन्ध में जानकारी मांगी। सांसद श्री दिवाकर ने जानकारी मांगते हुऐ पूछा है कि क्या सरकार ने देश भर में विशेषतः मैट्रो शहरो में सरकारी और निजी काॅलेजों तथा विद्यालयों में निर्धन लेकिन पात्र विद्यालयों का प्रवेश सुनिश्चित करने हेतु कोई उर्पयुक्त कदम उठाये हैं। सरकार द्वारा गरीब आर्थिक पृष्ठभूमि वाले ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों हेतु पर्याप्त भागीदारी और प्रवेश सुनिश्चित करने के लिये क्या कदम उठाये गये हैं । क्या सरकार ने इस मामले को देखने हेतु कोई विशेषज्ञ सलाहकार समिति स्थापित की है और इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा क्या निर्णय लिया गया है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्यमंत्री डाॅ. महेन्द्र नाथ पांडेय ने बताया कि यू.जी.सी. द्वारा वित्तपोषित केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की दाखिला प्रक्रिया में दक्षता दिये गये हैं। सरकार ने विभिन्न छात्र वित्तीय सहायता योजनाऐं भी शुरू की हैं। जैसे कि व्यापक शैक्षिक ऋण योजना, ट्यूशन फीस माफी योजना, छात्रवृत्ति योजना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देश में कोई भी पात्र छात्र वित्त के अभाव में उच्च शिक्षा से वंचित न रह जाये। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) ने यूू.जी.सी. (शिकायत निवारण) विनियम, 2012 अधिसूचित किये है, जिनमें सभी विश्वविद्यालयों के लिये दाखिले आदि में अनुचित प्रथाओं से सम्बन्धित शिकायतों के समाधान के लिये एक लोकपाल की नियुक्ति को अनिवार्य बताया गया है। विभिन्न सामान्य दाखिला परीक्षाओं जैसे संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जे.ई.ई) आदि केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित की जाती है ताकि मैरिट आधारित दाखिला सुनिश्चित किया जा सके। केन्द्रीय शिक्षा संस्थाऐं (दाखिले में आरक्षण अधिनियम, 2006) द्वारा कुछ केन्द्रीय शैक्षिक संस्थाओं में नागरिकों की अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों (गैर-क्रीमीलेयर) से सम्बन्धित छात्रों के लिये दाखिले में आरक्षण अनिवार्य बनाया गया है।
उन्होंने बताया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आर.टी.ई.), 2009 में सभी निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में कमजोर वर्गों और लाभवंचित समूह से सम्बन्धित बच्चों को निकटवर्ती स्कूलों की कक्षा-1 (अथवा स्कूल पूर्व जैसा ही मामला हो) में उस कक्षा की संख्या के कम से कम 25 प्रतिशत की सीमा तक दाखिला देना और निःशुल्क एवं अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा पूरी होने तक शिक्षा प्रदान करना अधिदेशित किया गया है। आर.टी.ई अधिनियम की धारा 31 और 32 में इस अधिनियम के अन्तर्गत बच्चे के अधिकार से सम्बन्धित मामलों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एन.सी.पी.सी.आर.) और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एस.सी.पी.सी.आर.) द्वारा निगरानी तथा स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा उनकी शिकायतों के निवारण करने का प्रावधान है।