तू मंजिल मेरी है तू रस्ता मेरा है,
मुसाफिर हूँ मुझको चलना सदा है,
सफर तय किया , इनायत है रब की
मुसिबत से महरूम उसने रखा है,
नजरों में मेरी है गुलिस्तां भी बंजर
हकीकत का जबसे पर्दा उठा है,
गमों की नवाजिश करें भी तो कब तक
की ये रोज का सिलसिला बन गया है,
तड़पता है दिल बेबसी पे मिरा पर
यही इक अदा मेरी सबसे जुदा है,