कानपुर, जन सामना ब्यूरो। हिंदी केवल भाषा नहीं, वरन सम्पूर्ण भारती संस्कृति का प्रतिनिधत्व करती है और यही कारण है कि आज दुनिया के कई देश हिंदी सीखने के लिए भारत आ रहे हैं। यह विचार दिल्ली से आए विख्यात हिंदी सेवी तथा गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने साहित्य सृजन संस्था की हिंदी भाषा एवं साहित्य प्रतियोगिता तथा कृति विमर्श एवं लोकार्पण के अवसर पर व्यक्त किया। संस्था सचिव डा0 दया दीक्षत ने कहा हिंदी भाषा एवं साहित्य से युवाओं को जोड़ने तथा रूचि उत्पन्न करने के लिए इस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है। डा0 राजीव रंजन पाण्डे ने कहा कि आज हिंदी भारत में नहीं वरन विश्व में भी रोजगार दिलाने की सामथ्र्य में आ चुकी है। इस मौके पर कुमार प्रशांत, राजेन्द्र राव तथा सचिव दया ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किया। कथाकार महेन्द्र भीष्म को ‘साहित्य सृजन सम्मान-2016’ के अंतर्गत प्रशस्ति पत्र, अंगवस्त्र व प्रतीक चिन्ह से सम्मानित किया। पदमश्री गिरिराज किशोर की कृति बा पर कुमार ने कहा कि इस कृति के शब्द बहुत विशिष्ट है। अब तक कस्तूरबा का ऐसा शब्दांकन किसी ने नहीं किया। साथ ही महेन्द्र भीष्म की कृति मैं पायल के दूसरे संस्करण का लोकार्पण हुआ।
कार्यक्रम में डा0 लीना श्रीवासतव, डा0 आरती त्रिपाठी, सुनीता चडढा, रमाकृष्ण तैलंग, डा0 फारूख अहमद, नीलांबर कौशिक, डा0 राकेश शुक्ला आदि उपस्थित रहे।