रमजान के महीने में मोदी सरकार द्वारा आतंकवादियों के विरूद्ध घोषित एकतरफा सीजफायर से सिर्फ फजीहत ही मोदी सरकार के हांथ लग रही है। जिस तरह से रमजान के महीने में आंतकी घटनायें घटित हो रही हैं और उसको देखते हुए सेना ने भी अपने स्वर मुखर किये है। देश की जनता भी इस कदम को सही नहीं ठहरा रही है। वहीं सेनाधिकारियों की मानें तो एकतरफा सीजफायर की इस घोषणा ने आतंकी गुटों में नई जान फूंकने जैसी बात कही क्योंकि इसका फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब आतंकियों की कमर टूटने की बात कही जा रही है। अतीत पर अगर नजर डालें तो रमजान के अवसर पर कश्मीर में पहली बार सीजफायर की घोषणा भी भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली सरकार के मुखिया तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी। उनका मकसद था कि कश्मीर में शांति रहे लेकिन उनका यह प्रयास औंधे मुंह गिरा था। दुखद पहलू पहले चरण के सीजफायर का यह था कि जिस आम कश्मीरी जनता को राहत पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने सीजफायर की घोषणा की थी उन्हीं को सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ा था। अगले चरणों में भी नागरिकों को कोई राहत नहीं मिली थी क्योंकि आतंकियों के निशाने पर सुरक्षा बलों के साथ साथ नागरिक रहे थे। इतना जरूर था कि सुरक्षा बलों ने आतंकी हमलों पर जवाबी कार्रवाई करते हुए वर्ष 2000 के सीजफायर के चार चरणों के दौरान लगभग तीन सैकड़ा आतंकियों को ढेर कर दिया था। लेकिन इन कामयाबियों के लिए सुरक्षा बलों को भी लगभग दो सौ जवानों व अधिकारियों की शहादत देनी पड़ी थी और तकरीबन साढ़े तीन सैकड़ा नागरिक भी इस दौरान मारे गए थे। यह भी सामने आया था कि आतंकी गुटों ने वर्ष 2000 के रमजान सीजफायर के दौरान अपने आपको अच्छी तरह से मजबूत कर लिया था और यह मजबूती सीजफायर की समाप्ति के बाद के कई महीनों के दौरान होने वाले हमलों और मौतों से स्पष्ट होती रही थी।
यह कहना कदापि अनुचित नहीं कि तत्कालीन परिस्थितियों में सुरक्षा बलों ने सीजफायर से बहुत से सबक सीखे थे लेकिन देश के राजनीतिज्ञों ने कुछ नहीं सीखा था शायद। वर्तमान में जो आदेश दिया गया है उससे तो यही जाहिर होता है कि देश के राजनीतिज्ञों ने ऐसे समय में पुनः सीजफायर लागू करवाने में कामयाबी पाई है जबकि सेना के आॅपरेशन आल आउट ने आतंकियों की कमर को तोड़ दिया है। बचे खुचे आतंकियों को उनकी मांद से निकाल मारने का जो सिलसिला तेजी पकड़ पकड़ रहा है अब उस पर ब्रेक लगा दिया गया लेकिन यही कारण है कि देश की सेना समेत अन्य सुरक्षा बलों के अधिकारियों ने इस सीजफायर का विरोध करना आरंभ किया है और आतंकी घटनाओं को अंजाम दे रहे आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देने की बात सामने आ रही है।
यह ध्यान देने वाला तथ्य है कि सभी लोग यही कहते हैं कि आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता है तो ऐसे में रमजान हो या नवरात्र, सभी दिनों में आतंकियों पर रहम नहीं करना चाहिए। नहीं तो वो इस अवसर को भुनाने में जरा भी नहीं चूकेंगे और आतंकी घटनाओं को अंजाम देते रहेंगे ऐसे में आतंकियों को उन्हीं की शैली में जवाब दिया जाना चाहिए। सेना को स्वतन्त्र रखना चाहिए कि वो आतंकिस्तान को नष्ट कर देश में शांति व्यवस्था बनाये रखने का लक्ष्य अपने दिलो दिमाग में बनाये रखे। राजनीति में लोग स्वार्थ देख रहे हैं लेकिन सेना को सिर्फ राष्ट्रधर्म दिखता है और उसे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में जरा भी संकोच नहीं करना चाहिए।