यूँहि बेवक्त कभी बारिश में भीग कर देखो
वक्त की जेब से खुशियां चुरा कर देखो!
कब तक सिकुड़ के जीते रहोगे
कभी तो बाहों को फैला कर देखो!
हमेशा शिकायत रहती है लोगों से
कभी खुद की गलती सुधार कर देखो!
यूँहि जिये जा रहे हो खुद के लिये
थोड़ा वक्त जरूरतमंदों को देकर देखो!
सभी को जाना है यहां कोई अमर नही
जानते तो हो पर मानकर भी देखो!!
हर तरफ भ्रष्टाचार व्यभिचार दिख रहा
एक बार चुप्पी को तोड़ कर देखो!!
हमेशा लिखते हो दुनियादारी पर
कभी आत्ममंथन को लिख कर देखो!!