इश्क और जंग (चुनावी जंग समाहित) में सब जायज है, शायद यह सोच भाजपा ने बसपा पर शिकंजा कस डाला है। जानते हुए भी कि बसपा ही नहीं, हर पार्टी के मुकाबले भाजपा के पास ज्यादा बेनामी चंदा है। भाजपा की यह चाल पोच है। बसपा ने पार्टी की नकदी से जमीनें नहीं खरीदी, न कमीशन देकर उस राशि को चोर बाजार में बदलवाया। बल्कि उसे अपने खाते में जमा ही करवाया। बसपा भ्रष्ट है, यह जाहिर जानकारी है। लेकिन चंदे के मामले में क्या भाजपा खुद धुली है? भाजपा और कांग्रेस तो इस सिलसिले में सबसे ज्यादा चंदा जमा करने वाले दल घोषित हो चुके हैं। क्या इन दलों ने पुराने नोटों में स्वीकार पैसा अपने खातों में जमा नहीं करवाया है? क्या बीस हजार तक के चंदे में नाम गुप्त रखने की ’नीति’ का फायदा और दलों ने नहीं उठाया है? विचित्र बात यह है कि काले या बेईमानी के धन के दाखिलेे की छूट खुद सरकार ने इस पर उठे तमाम हल्ले के बावजूद छोड़ दी है – काले धन के नाम पर छेड़ी गई अपनी ऐतिहासिक मुहिम के साथ-साथ। राजनीतिक दल न आरटीआइ के तहत आएँगे, न हजारों करोड़ के चंदों का स्रोत बताएँगे। पर मौका पड़ने पर दुश्मन दल पर सरकारी छापे पड़ते रहेंगे और उनके बहाने चुनावी दुष्प्रचार का अभियान भी चलेगा। बसपा के साथ भाजपा ने यही किया है। भले इसका फायदा मिलने के आसार नगण्य हों।
लेखिका मनीषा शुक्ला