सासनी, जन सामना संवाददाता। सत्संग तारता है और कुसंग डूबोता है। अच्छे संग से अच्छे संकल्प तथा कर्म होते हैं। मंथरा दासी के संग से केकई के मन के संकल्प बिगड़ गये, यह कुसंग का फल है। सत्संग से ही सत्य को समझा जा सकता है। संतों तथा सत्शास्त्रों के वचनों को ग्रहण करना चाहिए। यह विचार रुदायन जसराना रोड स्थित भट्टा वाले श्री हनुमान जी व शनिदेव मंदिर परिसर में हुए सत्संग के दौरान मंदिर महंत श्री राजूगिरी महाराज ने प्रकट किए। उन्होंने कहा कि यदि सुख चाहते हो, दु:खों की चोटों से बचना चाहते हो, जीवन मुक्ति चाहते हो तो सत्संग करो। लोग कहते हैं कि श्जब बूढ़े होंगे तब सत्संग करेंगे्य परंतु जब बूढ़े हो जाओगे तब तुम्हारी क्या दशा हो जायेगी, यह भी तो सोचो। अंग ढीले पड़ जायेंगे, बुद्धि मंद हो जायेगी, शरीर साथ नहीं देगा तब भला सत्संग क्या करोगे ? तब तो दुरूखों का पहाड़ ढोना पड़ेगा। इस जीवन का रहस्य वही समझ सकते हैं जिनकी बुद्धि दूसरे में दोष नहीं देखती। जीवन भर आदमी सत्संग सुने या ईश्वर की वंदना करे पर जब तक उसमें ज्ञान नहीं है तब तक वह भी यह जीवन प्रसन्नता से व्यतीत नहीं कर सकता। सच बात तो यह है कि जैसी अपनी दृष्टि होती है वैसा ही दृश्य सामने आता है और वैसी ही यह दुनियां दिखाई देती है। इसलिए सत्संग करने वाले मनुष्य की ही बुद्धि को बदलकर शुद्ध कर सकती है, और वह इस दुर्गम संसार सागर से पार उतर सकता है। इस दौरान गोविंद प्रसाद शर्मा, श्रवण पाठक, शत्रुघ्न वशिष्ठ, बलभद शर्मा, त्रिलोक चंद्र शर्मा, मोनू शर्मा, अरविंद उपाध्याय, लोकेन्द्र शर्मा, सनी शर्मा, दर्याव सिंह, बहोरन सिंह, विमलेश देवी, मालती देवी, सरोज, हरी सिंह, राजवीर सिंह, गजेन्द्र सिंह, धीरेन्द्र सिहं, मनोज शर्मा, मुकेश शर्मा, रवि शर्मा, महादेवी, हरवीरी, सुखवीर सिंह, जयवीर सिंह, दुष्यंत शर्मा, नंद किशोर शर्मा, विकास शर्मा, केशव शर्मा, प्रशांत पाठक, आदि मौजूद थे।