Monday, November 25, 2024
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भोजपुरी के नाम पर अश्लीलता जिम्मेदार कौन?

भोजपुरी गीत-संगीत के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता से जो लोग चिंतित हैं उनमें से एक नाम प्रेम शुक्ल का है। प्रेम शुक्ल पूर्व में पत्रकार रह चुके हैं और वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। वे अब तक कई विश्व भोजपुरी सम्मेलन का भी आयोजन करवा चुके हैं। उनका कहना है कि भोजपुरी फिल्मों, गानों, आर्केस्ट्रा, म्यूजिक अलबम, आडियो वीडियो के जरिए एक ऐसा माहौल बना दिया गया है कि भोजपुरी एक ऐसी भाषा है जिसमें खूब अश्लीलता है। जो फूहड़ गानों की ही भाषा है। जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। भोजपुरी भाषा की अपनी अलग एक सुंदर सी पहचान है। इसका एक समृद्ध साहित्य और इतिहास है। भिखारी ठाकुर जैसे महान व्यक्तित्व की भाषा भोजपूरी अश्लीलता की ही वजह से बहुत बदनाम भी हो गई है। यह भी एक कड़वी सच्चाई है।
प्रेम शुक्ल की बात सही है। यहां पर सवाल यह भी उठता है कि हम इन गानों को इतना ज्यादा क्यों बढ़ावा देते हैं, इनके कैसेट या वीडियो खरीदते क्यों हैं, किसी प्रोग्राम में अगर फूहड़ गाने पेश होने लगें तो हम वहां से उठ क्यों नहीं जाते? जिन दुकानों पर इस प्रकार के फूहड़ गानों के आडियो वीडियो मिलते हैंए हम उनका बहिष्कार क्यो नहीं करते?
फूहड़ गानों वाली कितनी फिल्मों का हमने बहिष्कार किया हैघ् ऐसी कितनी फिल्मों के पोस्टर हमने फाड़े हैं? इनमें से ज्यादातर का जवाब नकारात्मक होगा। दरअसल, हम चाहते तो है की भगत सिंह पैदा हो। पर हमारे घर मे नहीं।
सवाल फिर वही है कि क्या हम मनोरंजन के लिए इतने तरसे हुए हैं कि टीवी पर कुछ भी देख लेते हैं? या कोई भी फ़िल्म देख लेते हैंघ् या भोजपुरी के नाम पर किसी भी प्रकार का कचरा स्वीकार कर लेते हैं? जवाब है हाँ…। हम विकल्पहीन हैं। और आलसी भी हैं। अगर टीवी बंद कर दिया जाए तो हम में से अधिकतर लोगों की हालत खराब हो जाए। समझ ही नहीं आए कि समय का करें तो क्या करें। लोगों से मिलना-जुलना हम कम कर चुके हैं। केवल बहुत जरूरी काम होता है तो ही मिलते हैं। अन्यथा व्हाट्सऐप है। एसएमएस है। मोबाइल है। उसी में व्यस्त रहते हैं। घर पर न खुद भोजपुरी या अवधी बोलते हैं, न अपने बच्चों को ऐसा संस्कार देते हैं। हमारे पसंदीदा टीवी कार्यक्रम के बीच कोई आ जाए तो हम उसे मन ही मन कोसते हैं।
हमारी सामाजिक जिंदगी का दायरा बहुत सिकुड़ गया है, सो अब हम टीवी देखा करते हैं। उस पर जो भी आ जाए हमें कबूल है। एक तरह से ये हमारी मजबूरी जैसा भी हो गया। दूसरी तरफ ऐसे अश्लील शो के निर्माता हैं। वे अश्लीलता की मात्रा थोड़ी-थोड़ी करके बढ़ा रहे हैं। वे देखते रहते हैं कि हम कितनी अश्लीलता हज्म कर चुके हैं। अगली बार वे थोड़ी सी मात्रा और बढ़ा देते हैं। इसका अंत कहाँ होगा, नहीं मालूम। यही काम गीतकार भी कर रहे हैं। मगर सोचकर डर लगता है कि ये चीज आखिर कहाँ जाकर रुकेगी? आखिर कब रुकेंगी? शायद तब तक तो बहुत देर हो जाएगी। -हेमलता त्रिपाठी