शिवली/कानपुर देहात, जितेन्द्र कुमार। ब्रह्मलीन सद्गुरु भगवान की तपोस्थली गौरी कुंड धाम में रात दिन चल रही राम की पावन रामलीला का दिव्य दर्शन करने के लिए हर समय भक्तों का भारी जमावड़ा लगा रहता है। रामलीला का दर्शन करने शिवम भंडारे का प्रसाद ग्रहण करने के लिए हर दिन भक्तों की भीड़ बढ़ती चली जा रही है। रामलीला के चौथे दिन उत्तर भारत के ख्याति प्राप्त कलाकारों द्वारा धनुष यज्ञ कार्यक्रम का सुंदर मंचन किया गया। रामलीला में एक और जहां परशुराम लक्ष्मण के तीखे संवादों को सुन दर्शक रोमांचित हो उठे वहीं रावण बाणासुर संवाद की जमकर प्रशंसा की गयी। राजा जनक के कारुणिक विलाप को सुन दर्शक भाव विह्वल हो उठे। धनुष यज्ञ कार्यक्रम में राम का अभिनय रत्नेश त्रिपाठी लक्ष्मण का अभिनय अरविंद त्रिवेदी परशुराम का अभिनय पंडित, रामबाबू द्विवेदी, रावण का अभिनय रमन त्रिपाठी एवं बाणासुर का अभिनय गोपाल त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया। धनुष्य यज्ञ कार्यक्रम का शुभारंभ रंजीतपुर आश्रम के महंत बाबा गोपाला नंद ने भगवान राम की आरती कर किया।
परमहंस स्वामी विरक्ता नंद जी महाराज की कृपा से ब्रह्मलीन सद्गुरु भगवान रघुनंदन स्वामी की तपोस्थली गौरी कुंड धाम में रात दिन चल रही रामलीला का सुंदर दर्शन करने एवं भंडारे का प्रसाद ग्रहण करने के लिए भक्तों की भीड़ दिनोंदिन बढ़ती चली जा रही है। क्षेत्र का वातावरण भक्तिमय हो गया है। धनुष यज्ञ कार्यक्रम के मंचन में विदेह राज जनक की प्रतिज्ञा के अनुसार रंगभूमि में रखे गए भगवान शिव के धनुष अजगव की प्रत्यंचा चढ़ाने की सभी राजाओं ने भरसक कोशिश की लेकिन उपस्थित राजाओं ने प्रत्यंचा चढ़ा ना तो दूर वह धनुष को हिला तक न सके। इतने में मुनि विश्वामित्र ने शुभ समय जानकर भगवान राम को धनुष तोड़ने का आदेश दिया। रामद्वारा धनुष तोड़ते ही सीता जी उनके गले में वरमाला डाल देती हैं। इधर धनुष टूटने की गर्जना सुन महर्षि परशुराम जनकपुरी आते हैं और अजगव का खंडन देख वह क्रोध में ’कहुँ जड़ जनक धनुष केहि तोरा’ कहते हुए धनुष तोड़ने वाले को समाज से अलग होने या फिर समाज को उससे प्रथक होने की चेतावनी देते हैं। इसके बाद परशुराम लक्ष्मण के बीच विद्वतापूर्ण संवाद होता है। ’भृगुपति कहहिं कुठार उठाये! मन मुसुकाहीं राम सिर नाये’ की चैपाई पर क्रोधित परशुराम जी द्वारा विप्र निंदा की बात कहने पर भगवान अस सुभट को जेहिं भयवश ना वहीं माथ कहने से परशुराम जी अचंभित हो जाते हैं और वह श्री राम को भगवान विष्णु का दिया हुआ धनुष प्रदान करते हैं उनके हाथ में धनुष आते ही स्वयं प्रत्यंचा चढ़ जाती है। इस पर ब्रह्म को पहचान परशुराम भगवान की स्तुति करते हुए महेंद्रा चल की ओर प्रस्थान करते हैं।
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