चुनावी सरगर्मियां बढ़ गई है। इन दिनों बेरोजगारी खत्म करने का वादा या न्यूनतम आमदनी के वादे पर वोट हासिल करने की जोर आजमाइश जारी है। कांग्रेस का कहना कि जीतने के बाद देश के हर नागरिक को न्यूनतम आमदनी देगी। कुछ इसी तरह दो करोड़ नौकरी देने का वादा वर्तमान सरकार ने बेरोजगारी को लेकर किया था और जो पूरा नहीं हो सकने कारण युवा वर्ग निराश और नाराज है।
राहुल गांधी का न्यूनतम आमदनी देने का वादा महज चुनावी लगता है। हर देशवासी को न्यूनतम आमदनी देने का भार क्या राजस्व सहन कर पाएगा? और क्या इस तरह गरीबी खत्म हो पाएगी? और यह धन कहां से आएगा? इन सवालों का जवाब नहीं है कांग्रेस के पास। इंदिरा गांधी की तरह “गरीबी हटाओ” के नारे की तरह वोट बैंक हासिल करने का मात्र उपाय पर है या फिर क्या यह मनरेगा की तरह ही स्कीम है ? क्या इससे गरीबी और बेरोजगारी की समस्या हल हो जाएगी?
कांग्रेस मेनिफेस्टो “हम निभायेंगे” के अनुसार 72000 गरीबों के खाते में हर साल दिये जायेंगे, 22 लाख नौकरी और 10 लाख रोजगार की बात और किसानों के लिए अलग बजट की वादे क्या कांग्रेस को सत्ता वापस दिला पायेगी? वर्तमान सरकार ने भी इन्हीं वादों पर सरकार बनाई थी और वादा न पूरा होने पर आज युवा वर्ग में नाराजगी व्याप्त है। महज चुनावी वादों पर राजनीति तो हो सकती है लेकिन सरकार नहीं बनाई जा सकती है।
वर्तमान सरकार के लिए भी बेरोजगारी का मुद्दा कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। सर्वेक्षण बताते हैं कि बेरोजगारी 6.9 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है और 2017 से 2018 के बीच 1 करोड़ 10 लाख नौकरियां खत्म हो चुकी है। चुनावी दौड़ में भाजपा भले ही आगे हो लेकिन लोगों का प्राथमिक मुद्दा बेरोजगारी ही है। यह मुद्दा इतना ज्वलंत है कि कभी भी विकराल रूप धारण कर सकता है।
-प्रियंका माहेश्वरी।