Sunday, November 24, 2024
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धन्वन्तरि औषधालय में 155वां कवि दरबार आयोजित

हाथरस, जन सामना ब्यूरो। सादाबाद गेट स्थित धन्वन्तरि औषधालय में 155 वां मासिक कवि दरबार बसंत के रंग में रंगा हुआ था और कविता, साहित्य, संगीत, कला की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की आराधना को समर्पित था। कवि दरबार का शुभारंभ वीणा पाणि मां सरस्वतीजी के आराधना अर्चन, आयुर्वेद प्रर्वत्तक भगवान धन्वन्तरिजी के वंदन तथा राष्ट्रहित कुछ गीत गा लें मां नयी झंकार दे, मोहतम को दूर करदे देवी सुख दे शारदे की वंदना से हुआ। वाणी वंदना करते हुये पं. मनोज द्विवेदी ने कविता सुनाई-वृन्दावन बसंत मनौ, बृजराज चंदन भयौ, राधाकृष्ण वंदन भयौ।
प्रदीप पंडित-आयौ बसंत, हम सभी आये यहां मां सरस्वती जी के सम्मान में। बासुदेव उपाध्याय-होली के रंग घोलें फागुन बसंत है, आऔ री सखी डालें मिलकर रंग, फागुन बसंत है। श्याम बाबू चिन्तन-हरे-हरे घांघरे पै बसंती चुनरिया सौ है, लुभावनी छवि कूं देख मन हूं लुभायौ है, पतझड़ के बाद नयी कोपलें बतायती, दुःख के बाद सुख लगत सुहायौ है, प्रकृति पर नयापन, कुछ नया सृजन करैं, नयौ उत्साह लै कै ऋतुराज बसंत आयौ है। दिनेश राज कटारा-मीरा ने विष पीया था, कान्हा के प्यार में, तुलसी का जो सृजन था, रत्ना प्रहार में, वियोग ने ही प्रेम को निखार दिया है, भावुक हूं भावना से प्यार किया है। रामभजनलाल सक्सैना-प्रभू जी तुम चंदन हम पानी, तू राम भजन कर प्राणी, तेरी दो दिन की जिन्दगानी, यही है इस जीवन की कहानी।
वैद्य मोहन ब्रजेश रावत-ऋतुराज बसंत के आवत ही, कोयल बोली फूले अमरा, मादकता चहुंओर दीखी, कलियन मंडराये भंवरा। जयप्रकाश शर्मा-यह उत्सव है रंग बसंत बहार का, कदम-कदम पर प्यार का, स्वागत और सत्कार का, जीवन ज्योति जलेगी जग में, प्रेम, प्यार, सदभाव, समरसता, आशा और विश्वास का। कवियों का स्वागत कवि दरबार के संस्थापक वैद्य मोहन ब्रजेश रावत ने किया। प्रचार प्रभारी जयप्रकाश शर्मा ने आभार व्यक्त किया।