पानी सफेद सोना है और यह सोना इस समय भारत के अधिकांशत: गांवों में सडकों और नालियों में बुरी तरह से बहाया अथवा फैलाया जा रहा है। इसी सफेद सोने की बूंद – बूंद के लिए भारत के कुछ हिस्सों में प्राणी तरस रहे हैं। लेकिन जहाँ यह अभी भी उपलब्ध है, वहाँ लोग इसे बचाने की तरफ कोई खास ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। उन्हें भी जल्द पता चलने वाला है कि एक बूंद कितनी कीमती है। जबसे गांवों में समरसेबिल बोरिंग पम्प (इलैक्ट्रॉनिक) लगना शुरु हुई हैं तबसे लोग पानी को बहुत बुरी तरह से बर्बाद करने लगे हैं। एक आदमी नहाने में ही सैकड़ों लीटर पानी सड़कों पर, नालियों में बहा देता है वो भी पूर्णतः स्वच्छ मिनरल वाटर। शहरों में जिसकी कीमत बहुत अधिक होती है और शायद ही ऐसा पानी मिलता हो।
भारत में बढती जनसंख्या के साथ संसाधनों की जरूरत भी बढ रही है। लेकिन कुछ प्राकृतिक संसाधनों को हम अपनी मर्जी से बढा भी नहीं सकते। कुछ पदार्थों के बगैर जिआ जा सकता है परन्तु पानी के बगैर कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता। आपकी जानकारी के लिए यहां यह बताना बेहद जरूरी है कि पहले हमें जल सम्पन्न देशों की श्रेणी में गिना जाता था, लेकिन अब हम जल सम्पन्न देशों की श्रेणी से बाहर हो चुके हैं। और यह कितना भयावह है कि इसका अंदाजा हम अभी नहीं लगा पा रहे हैं। लेकिन इस हकीकत से हम ज्यादा देर तक आँख मिचौली का खेल नहीं खेल सकते हैं, जल्द हम सबको पानी की एक-एक बूंद की कीमत का पता चलने वाला है।
निरन्तर भूजलस्तर का गिरना, पानी की कमी का खुला संकेत है पर हमारे पास तो बेहतर से बेहतर मशीनें हैं जो कितना भी गहरा पानी हो उसकी बूंद-बूंद खींच लें, परन्तु आज तक ऐसी कोई मशीन नहीं बनी जो पानी बना सके |
भले ही भारत में वर्षा और हिमपात के रूप में पर्याप्त पानी बरसता है, लेकिन यह पूरा का पूरा पानी सही इस्तेमाल के लिए उपलब्ध नहीं है | अधिकांश पानी देश की विशिष्ट भू आकृति व अज्ञानतावश इधर-उधर से बहकर समुन्द्र में चला जाता है। कुछ हिस्सा भाप बनकर उढ़ जाता है और थोड़ा बहुत बचता है, उसे ही धरती सोंख पाती है, इससे पर्याप्त रूप में पानी धरती के अन्दर नहीं पहुंच पाता और यही कारण है कि निरन्तर भूजलस्तर नीचे गिर रहा है। अपने देश में ही नहीं दुनियाभर में हालत इतनी नाजुक है कि अगर मौसम थोड़ी सी भी ऊंच-नीच कर देता है तो नतीजे भयानकरुप में निकल कर सामने आ जाते हैं।
अब वक्त की बहुत जरूरी मांग है कि लोगों को जागरुक हो जाना चाहिए। राजनेताओं से मुफ्त में मिली सम्बरसेबिल बोरिंग पम्पों का सही इस्तेमाल करें। पानी की जितनी जरुरत हो उतना ही खर्च करें। कोशिश करें कि कम से कम खर्च हो। जब बाल्टी से एक आदमी महज 10-12 लीटर पानी में नहा सकता है तो क्यों सिर पर पाइप लगाकर सैकड़ों लीटर पानी सडकों पर बहा रहे हो। गाडी धौने के गलत तरीके से हजारों लीटर पीने योग्य पानी को नालों में बहा रहे हो। बंद करो यह सब… वर्ना वो दिन दूर नहीं जब पानी की एक-एक बूंद के लिए तुम्हारा सारा सोना-चांदी, रुपया-पैसा कम पड़ जायेगा।– मुकेश कुमार ऋषि वर्मा