गत दिवस मेरा मोबाइल अचानक से बंद हो गया मैं सर्विस सेंटर लेकर गया, सर्विस सेंटर से पता चला कि फोन सुधरने में कम से कम बारह घंटे का समय लगेगा, इतना सुनते ही मैं आवाक रह गया, मेरे मुंह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे, जैसे तैसे होश संभालते हुए मैं ने कहा बारह घंटे??? यह तो बिना मोबाइल के गुजरा एक सदी सा होगा..!! मैं ने सर्विस सेंटर वाले से अनुरोध किया कि सर्विस चार्ज बढ़ा लो पर समय कम लो, क्योंकि मोबाईल से बारह घंटे दूर रहने पर मैं खुद ‘आदमी रिपेयर सेंटर’ जाने लायक हो जाऊंगा। यह स्थिति केवल मेरी ही नहीं अपितु देश के 75 प्रतिशत मोबाइल यूजर्स की है, खाना कम मिले चलेगा, पीने का पानी कम मिले चलेगा, यहाँ तक कि आक्सीजन कम मिले तब भी चलेगा। लेकिन मोबाइल फोन 100 प्रतिशत फुल बैट्री के साथ 24 घंटे चालू हालत में ही चाहिए।
पुराने समय पर लोग जिंदगी गुजारने के लिए अच्छे जीवन साथी की तलाश करते थे, आजकल अच्छे मोबाइल फोन के तलाश में रहते हैं। हर हाथ के पास काम भले ना हो लेकिन हर हाथ में मोबाइल फोन जरूर है, यह कहने में कोई गुरेज नही कि आदमी अब किसी और का नही अपितु मोबाइल फोन का गुलाम बनकर रह गया है। मोबाइल धारक तो थककर रात्रि विश्राम भी कर लेता है लेकिन बेचारा मोबाइल किसी बंधुआ मजदूर की तरह चार्जर वाले खूंटे से बंधकर इसलिए ओवरटाइम करता है ताकि जब सुबह स्वामी निद्रा से उठें तो सौ फीसदी फुल बैट्री बैकअप के साथ खुशनुमा दिन की शुरुआत कर सकें। मोबाइल ने लोगों को संस्कारवान बनाया है, अकड़ कर चलने वाले लोग भी सिर झुकाये चल रहे हैं। “सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नही” ये पंक्तियाँ अब रुढ़िवादी धारणाओं की उपज लगने लगी हैं। मोबाइल क्रांति ने प्रेम करने के तौर तरीके बदल दिए, हजारों की संख्या में पेड़ कटने से बच गए, मोबाइल फोन आने से लव लेटर लिखने की प्रथा पूरी तरह बंद हो गई जिससे कागज की बचत होने लगी कागज की बचत होने से पेड़ों की बचत सीधे तौर पर देखी जा सकती है। इसके अलावा लव लेटर देते समय या चुपचाप पढ़ते समय पकड़े जाने पर लतिआए, जुतियाए जाने की झंझट से भी निजात मिल गया है वहीं प्रेमिका को उसकी सहेली की गरज भी नहीं करनी पड़ रही है। मोबाइल का उपयोग लोगों को बोर नही होने देता लोग शमशान के किसी कोने में भी व्हाट्सएप चलाते हुए दिखाई देते हैं। लाश जलने में जितना समय लगेगा उतना समय को लोग खोटी नही करना चाहते हैं। लोगों के धैर्य की परीक्षा कठिन परिस्थितियों में होती थी लेकिन अब मोबाइल नेटवर्क नही रहने पर होती है।
रहीमदास जी अगर अब लिखते तो शायद यही लिखकर अमर हो जाते
“रहिमन मोबाइल राखिये बिन मोबाइल सब सून
नेटवर्क गए न ऊबरे मोती, मानुष, चून”
व्यंग्यकार
आशीष तिवारी निर्मल