जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा का टीम के सदस्यों से वन-धन योजना को पूरी जवाबदेही के साथ लागू करने का आग्रह
नई दिल्ली, जन सामना ब्यूरो। वन-धन योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बनाई गई सौ दिनों की योजना पर कल नई दिल्ली में जनजातीय कार्य मंत्रालय के भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (ट्राईफेड) द्वारा एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने कार्यशाला का उद्घाटन और अध्यक्षता की। इस अवसर पर जनजातीय कार्य राज्य मंत्री श्रीमती रेणुका सिंह भी उपस्थित थीं। यह कार्यशाला वन-धन योजना के कार्यान्वयन के लिए गठित टीमों को प्रशिक्षण देने के लिए आयोजित की गई थी।
इस अवसर पर श्री अर्जुन मुंडा ने योजना के क्रियान्वयन की सफल शुरुआत के लिए ट्राईफेड टीम के प्रयासों की सराहना की और कहा कि टीम के प्रयास सही दिशा में किए गए हैं और यह जनजातीय समूहों की आजीविका के साधन जुटाने और उनकी आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि जनजातीय समूह ही वास्तव में लघु वनोपज के सच्चे हकदार हैं ‘हम तो केवल उन्हें इन उत्पादों की सही कीमत पाने में मदद कर रहे हैं।‘ उन्होंने कहा कि सही मायने में जनजातियां हीं वनों, नदियों और खनिजों जैसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षक हैं। संरक्षण के उनके इन अहम प्रयासों के बावजूद उन्हें ही इन संसाधनों से सबसे ज्यादा वंचित रहना पड़ता है। ऐसे में यह सरकार की जवाबदेही बनती है कि वह उनके प्रयासों में पूरी मदद करे। श्री मुंडा ने ट्राईफेड की टीमों को वन-धन योजना के जमीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन के लिए मिलकर काम करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इसके लिए निजी और सरकारी क्षेत्र के सभी हितधारकों के साथ मिलकर ऐसा नेटवर्क बनाया जाना चाहिए ताकि योजना का सर्वाधिक लाभ लक्षित समुदायों तक पहुंच सके उन्होंने ट्राईफेड की टीमों को पूरी जवाबदेही के साथ निश्चित समय सीमा के भीतर योजना को लागू करने की सलाह दी।
श्रीमती रेणुका सिंह ने जनजातीय समुदायों की आय बढ़ाने तथा उनके लिए रोजगार के अवसर सृजित करने के बारे में इस योजना के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह योजना सामुदायिक स्तर पर जनजातीय समूहों के लिए काफी लाभकारी होगी।
ट्राईफेड के प्रबंध निदेशक श्री प्रवीर कृष्ण ने टीम का सशक्त मार्गदर्शन करने के लिए गणमान्य व्यक्तियों को धन्यवाद दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि वन-धन कार्यक्रम ट्राईफेड की प्राथमिकता होगी और जमीनी स्तर पर योजना के कार्यान्वयन के लिए सांसद निधि, आजीविका मिशन तथा संयुक्त वन प्रबंधन समिति के बेहतरीन कामकाजी समूहों का चयन किया जाएगा। उन्होंने वन-धन स्व सहायता समूहों के सफल व्यवसाय संचालन के लिए एक स्थायी व्यवसाय योजना और विपणन नीति के महत्व पर भी जोर दिया।
जैसा की वन-धन योजना के 100 दिनों के कार्यक्रम में शामिल है, इसके तहत देश के जनजातीय बहुल क्षेत्रों में 50,000 वन-धन विकास केंद्र’ स्थापित किये जाएंगे, ताकि जनजातीय समुदायों के लिए आजीविका के अवसर बढ़ाने, आय में वृद्धि और सशक्तीकरण को सुनिश्चित किया जा सके। पूरे भारत में 27 राज्यों और 307 प्रमुख जनजातीय जिलों को इस योजना के दायरे में लाया गया है। वन-धन कार्यक्रम जनजातीय समुदायों को 50 गैर-राष्ट्रीयकृत लघु वनोपजों के लिए उचित पारिश्रमिक और न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने का काम करेगा। इस योजना का लक्ष्य वित्त वर्ष 2019-20 में 3000 वन धन विकास केंद्रों की स्थापना और संचालन करना है, जिनमें से 100 दिवसीय योजना के तहत 600 वन-धन विकास केन्द्रों की स्थापना करना भी शामिल है।
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