टप टप शाख से टपकी बूँदें,
बूंदों में सिसकी का शोर
रो रो पोंछे हतभागी
पुरवैया नम आँखों की कोर
दिल की हुक को झींगुर
झन झनकर आहों में ढोता है
जाने किसकी याद में सावन
रात रात भर रोता है .
हाथ छुड़ा कर चला गया वो
कभी पलट कर न देखा
सांस सांस पर खींच गया जो
नम वियोग की दृढ रेखा
तड़प तड़प नैनों का काज़ल
सारा फलक भिगोता है
जाने किसकी याद में सावन
रात रात भर रोता है .
इतनी दूर गया अंतर में
काले बादल छोड़ गया
मेघ खंड में थर थर करती
बेकल बूँदें मोड़ गया
गरज गरज बादल अकुलाहट
के तर्जन को धोता है
जाने किसकी याद में सावन
रात रात भर रोता है .
नीला नीला मन बैरागी
पीड़ा से घनश्याम हुआ
बूंदों के निर्गुण में घुल
दरिया को कुछ आराम हुआ
स्याह अँधेरी रातों में मन
जूगनू जोग संजोता है
जाने किसकी याद में सावन
रात रात भर रोता है
-कंचन पाठक-