प्रयागराज, वी. डी. पाण्डेय। सुलेमसराय में दाधिकांडो का मेला देश की आजादी के पूर्व से ही लगाया जाता रहा है इसकी शुरुआत 18 से 60 ईसवी में की गई इसमें देशभक्ति झांकियां भी निकाली जाने लगी इस मेले के दौरान अंग्रेजो के खिलाफ रणनीति तैयार की जाती थी इससे देश की आजादी के प्रति लोगों में प्रेरणा मिलती थी इस मेले की शुरुआत अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों को एकजुट करना था लोगों के बीच देशभक्ति की बढ़ती भावना को देखते हुए अंग्रेजी सुमत ने 1922-1927 के बीच मेले पर प्रतिबंध भी लगा दिया। लेकिन बाद में जनमानस के विरोध पर 1928 में प्रबंध वापस कर लिया गया जब इस मेले की शुरुआत हुई उस समय लाइट की चकाचौंध ना होकर रोशनी के लिए मसाल का इस्तेमाल किया जाता था।
उस समय दीजिए और सैकड़ों की तादाद में कनफाउंड भी नहीं होते थे मेले में लोग शांति से मेले का आनंद लेते थे आपको बता दें कि माननीय उच्च न्यायालय ने हाल ही में का देश के द्वारा डीजे बजाने पर रोक लगा दी जो एक सराहनीय निर्णय लेकिन राज्य सरकार इस निर्णय का पालन पूर्णता सही ढंग से करवा पाएगी। क्या यह नियम पूरी तरह से खास और आम आदमी सभी पर लागू होगा। इस निर्णय का सकारात्मक परिणाम तभी निकलेगा जब डीजे को पूरी तरह से बंद किया जाए एक तरफ मेलों में रात भर डीजे बजेंगे सरकारी कार्यक्रमों में डीजे बजाएंगे वहीं दूसरी तरफ आम नागरिक शादी विवाह जैसे कार्यक्रमों पर डीजे बजा कर आनंद नहीं उठा सकेंगे। इस तरह इसके बंद किए जाने का उद्देश्य भी नाकाम ही होगा यदि ध्वनि प्रदूषण को ध्यान में रखकर इसे बंद करने का निर्णय लिया गया है तो इसे पूरी तरह से बंद किया जाना चाहिए डीजे बजने से ध्वनि प्रदूषण सहित तमाम हानिकारक परिणाम होते हैं डीजे जिस स्थान पर बज रहा होता है। वहां आसपास वृद्ध बीमार लोग भी घरों में रहते हैं जिनको इसकी तीव्र ध्वनि से काफी समस्या होती है, डीजे बजाकर नाच गाने मे भी विवाद और लडा़ई झगडे़ भी अक्सर होते रहते है। जो हर्ष को विषाद मे बदल देता है इसलिए डीजे पर पूरी तरह प्रतिबंध किया जाना आवश्यक है।