चन्दौली, जन सामना ब्यूरो। जिले के चकिया क्षेत्र में हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में सदियों से लतीफशाह में लगने वाले मेलें का बुद्धवार को श्रद्धालुओं ने जम कर आनन्द उठाया, तथा श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना किये।बताया जाता है कि यहां पश्चिमी बिहार तथा पूर्वी उ०प्र०के हजारों श्रद्धालु आज के दिन यहां आते है। किवदंतियों के अनुसार कर्मनाशा नदी के तट पर घनघोर जंगल में सदियों पहले दो पहुंचे हुए संत रहा करते थे,जिनमें काफी अच्छे सम्बन्ध भी थे, लेकिन आध्यात्मिक मामले में दोनों लोगों की अक्सर टकराहट भी हुआ करती थी। उन्हीं संतो में एक थे बाबा लतीफशाह तथा दूसरे थे बाबा बनवारी दास। लोग बताते है कि इस घनघोर जंगल में बाबा लतीफशाह के उपदेश सुनने जंगल के शेर, तेंदुए तथा भालू जैसे खूंखार जानवर भी आया करते थे, जो बाबा के मुरीद थे। बताया गया कि बाद में तत्कालीन काशी नरेश महाराजा आदित्य नारायण सिंह ने सन् 1793 ई० में चकिया में काली मन्दिर निर्माण के समय ही यहां बाबा लतीफशाह के स्थान को भी बनवाया था। बताते हैं कि तभी से यहां मेला लगता है। इस सम्बन्ध मेंं इलिया निवासी अब्दुल जब्बार नामक एक श्रद्धालु ने पुछने पर बताया कि मैं यहां मेले की वजह से आया था, यहां हम दस वर्षो से आ रहे है, इस मेलें में बिहार के कई जिलों के लोगों के आलावा उ०प्र०के कई जिलों से लोग आते है, उन्होंने बताया कि मेलें में यहा आज कई हजार की भींड़ है, यहां सभी धर्मों के लोग श्रद्धापूर्वक आते है, यह मेला बाबा बनवारी दास के नाम से लगता है, लेकिन यह स्थान बाबा लतीफशाह के नाम से मसहूर है।