प्रत्येक वर्ष के सितम्बर माह के प्रथम सप्ताह मे 5 सितम्बर को हम शिक्षक दिवस के रूप मे मनाते है। जिस महान शख्शियत के जन्मदिन को हम इस विशेष दिवस का दर्जा दिए है वो थे हमारे स्वतन्त्र भारत के उपराष्ट्रपति ड़ॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन। भारत मे गरीबी और शिक्षा जैसे विषयो पर बहुत काम हुए किन्तु उक्त विषय पर जो काम राधाकृष्णन जी ने किया वो खुद मे अद्वितीय है। आज के वर्तमान समय मे शिक्षा की जो व्यवस्था लागू है वो बेहद निराशाजनक और खेदपूर्ण है। आजकल अयोग्य को योग्य बनाकर उच्च वेतनमान पर धड़ल्ले से नियुक्त किया जा रहा जबकि योग्य संसाधन विहीन होकर दुर्गम जीवन व्यतीत कर रहा।
शिक्षा विभाग पूरी तरह जर्जर और शिक्षक पूरी तरह मानसिक अपंग हो चुके है। मैं ऐसे कई उदाहरण प्रत्यक्ष प्रमाण और किदवन्ति दे सकता हूँ जिसमे योग्य और मेहनती शिक्षक कम वेतनमान पर जीतोड़ मेहनत कर रहे और अयोग्य और लाख पचास हजार वेतन लेने वाले शिक्षक शिक्षा व्यवस्था को धाराशायी कर रहे। प्राथमिक विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था इन दिनों तेजी से चरमराई है कारण शिक्षको की दबंगता और शिक्षण कार्य के पीछे नीरसता है। कई विद्यालयो मे तो शिक्षक विद्यालय खुलने के कई घण्टे बाद पहुचते है ऐसे मे अभिवाहक कैसे उस विद्यालय के प्रति आश्वस्त होकर अपने पाल्य को वहाँ पढ़ने भेजे। सोचने की बात है की दिन प्रतिदिन विद्यालयो मे बच्चों की संख्या घट रही और उसके पीछे बहुत से गम्भीर कारण है। वर्तमान समय मे प्राथमिक विद्यालय मे बच्चों से अधिक संख्या शिक्षको की है। ना तो बच्चे सरकारी विद्यालयो मे पढ़ना चाहते है ना अभिवाहक प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर आश्वस्त नजर आते है ऐसे मे गैर – जिम्मेदार शिक्षको ने प्राथमिक शिक्षा की कमर तोड़ने का बीड़ा उठाया हुआ है। ऐसे तमाम मामले है जहा अध्यापक असमय विद्यालय पहुचते है और फिर विद्यालय के बच्चो को पढ़ाना छोड़ उनसे मजदुरात्मक कार्य कराते है। प्राथमिक शिक्षा ही नही तमाम उच्च शिक्षण संस्थानों मे भी शिक्षक निर्धारित समय के बाद महाविद्यालय पहुचते है और एक दो घण्टे रहकर वापस घर के लिए निकल लेते है। आप को सरकार आमजनता के टैक्स से 1 लाख के आसपास वेतन देती है और आप सब देश के भविष्य को अंधकार मे रखने के लिए दृढ़ संकल्पित है। शर्म की बात है, नीद से जागिये और देश को अपने हिन्दुस्तानी होने का प्रमाण दीजिये । देश की सेवा ईमानदारी से कीजिये। पंकज कुमार मिश्रा जौनपुरी