सरसों की खेती व पीली क्रान्ति को भी भली भांति जाने किसान
कानपुर देहात, जन सामना ब्यूरो। किसान भारत में प्रायः पीली सरसो की खेती नवंबर से शरद ऋतु में की जाती है और यह फरवरी व मार्च के प्रथम व द्वितीय सप्ताह तक काट लेते है। इस फसल को 18 से 25 सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। सरसो की फसल के लिए फूल आते समय वर्षा, अधिक आर्द्रता एवं वायुमण्डल मे बादल छाए रहना अच्छा नही होता है। अगर इस तरह का मौसम का होता है तो फसल पर माहू या चैपा के आने का अधिक प्रकोप हो जाता है। शासन किसानो व कृषि विकास के लिए निरन्तर जोर दे रही है। शासन ने अनेक किसानो के लाभ के लिए कल्याणकारी व लाभपरक कार्यक्रम व योेजना भी चलाए है। जिसे किसानों ने समय-समय पर लाभ भी लिया है। जिलाधिकारी कुमार रविकान्त सिंह ने कहा कि किसान कृषि विकास के लिए कृषि विविधिकरण को बढ़ावा दे। सरसों की खेती-पीली क्रान्ति के महत्व को किसान अनदेखी न करें। सरसों एवं राई की गिनती भारत की प्रमुख तीन तिलहनी फसलो (सोयाबीन, मूंगफली एवं सरसो) मे होती है। सरसो देश मे आई पीली क्रान्ति के लिए मुख्यरूप से महत्व है। जनपद व प्रदेश मे सरसो की खेती की असीम संभावना है। सरसो की खेती व उसके उत्पादन मे कम लागत लगाकर अधिक आय प्राप्त की जा सकती है। इसके हरे पौधो का प्रयोग जानवरो के हरे चारे के रूप मे लिया जा सकता है। साथ ही पशु आहार के रूप मे बीज, तेल एवं खली को काम मे ले सकते है क्यो कि इनका प्रभाव शीतल होता है। जिससे यह कई रोगो की रोकथाम मे सहायक सिद्ध होते है। इसकी खली मे लगभग 4 से 9 प्रतिशत नाइट्रोजन, 2 से 5 प्रतिशत फास्फोरस एवं 1 से 5 प्रतिशत पोटाश होता है। कई देशो मे इसका उपयोग खाद की तरह भी किया जाता है। हमारे देश मे यह पशुओ को खिलायी जाती है। इसके सूखे तनो को ईंधन के रूप मे उपयोग लिया जाता है। सरसो के बीज मे तेल की मात्रा 30 से 48 प्रतिशत तक पायी जाती है। सरसांे राजस्थान की प्रमुख तिलहनी फसल है जिससे तेल प्राप्त होता है। सरसो का तेल बनाने मालिश करने, साबुन, ग्रीस बनाने तथा फल एवं सब्जियो के परीक्षण के काम आता है। जिलाधिकारी कुमार रविकान्त सिंह ने बताया कि कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सरसों की खेती रेतीले से लेकर भारी मटियार मृदाओ मे की जा सकती है। लेकिन बलुई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। यह फसल हल्की क्षारीयता को सहन कर सकती हैै। लेकिन मृदा अम्लीय नही होना चाहिए। सरसो के लिए भुरभुरी मृदा की आवश्यकता होती है। इसे लिए खरीफ की कटाई के बाद एक गहरी जुताई करनी चाहिए तथा इसके बाद तीन चार बार देशी हल से जुताई करना लाभप्रद होता है। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को तैयार करना चाहिए। असिंचित क्षेत्रो मे वर्षा के पहले जुताई करके खरीफ मौसम मे खेत पड़ती छोड़ना चाहिए। जिससे वर्षा का पानी का संरक्षण हो सके। जिसके बाद हल्की जुताई करके खेत तैयार करना चाहिए। यदि खेत मे दीमक एवं अन्य कीटो का प्रकोप अधिक हो तो, नियन्त्रण हेतु अंतिम जंुताई के समय क्यूनालफास 115 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। साथ ही, उत्पादन बढ़ाने हेतु 2 से 3 किलोग्राम एजोटोबेक्टा एवं पीएबी कल्चर की 50 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकल्चर मे मिलाकर अंतिम जुर्ता से पूर्ण खेत मे डालना चाहिए। कृषि विशेषज्ञ व किसान सलावतपुर के किसान राम गोपाल व उनकी पत्नी अन्नपूर्णा देवी बताती हैं कि सरसो की बुवाई के लिए उपयुक्त तापमान 25 से 26 सेल्सियस तक रहता है। बारीकी मे सरसो की बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिए। सिंचित क्षेत्रो मे अक्टूबर के अंत तक बुवाई की जा सकती है। सरसो की बुवाई कतार मे करनी चाहिएं। कतार से कतार की दूरी 30 सेमी0 तथा पौधो से पौधो की दूरी 10 सेमी0 रखनी चाहिए। सिंचित क्षेत्र मे बीज की गहराई 5 सेमी0 तक रखी जाती है असिंचित क्षेत्र मे नमी के अनुसार रखनी चाहिए। सिंचित फसल के लिए 8 से 10 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 3 से 4 सप्ताह पूर्व खेत मे डालकर खेत की तैयारी करे एवं बरानी मे वर्षा पूर्व 4 से 5 टन सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर खेत मे डाल दे। एक दो वर्षा के बाद खेत मे समान रूप से फैलाकर जुताई करे। सिंचित क्षेत्रो मे 80 किग्रा0 नत्रजन, 30 से 40 किग्रा0 फाॅस्फोरस एवं 375 किग्रा0 जिप्सम या 60 किग्रा0 गंधक चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से डाले। नत्रजनकी आधी व फाॅस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय दे, शेष आधी मात्रा प्रथम सिंचाई के समय दे। सरसो की फसल मे सही समय पर सिंचाई देने पर पैदावार मे बढ़ोत्तरी होती है। यदि वर्षा अधिक होती है तो फसल को सिंचाई की आवश्यकता नही होती है। यदि वर्षा समय पर न हो तो 2 सिंचाई आवश्यक है प्रथम सिंचाई बांई के 30 से 40 कदन बाद एवं द्वितीय सिंचाई 70 से 80 दिन की अवस्था मे करे। यदि जल की कमी हो तो एक सिंचाई 40 से 50 दिन की फसल मे करे। कृषक व गौशाला के संचालक विकास सचान व किसान विनोद मिश्रा ने बताया कि 2 मार्च से हमारी सरसों की कटाई प्रारम्भ हो गयी है और फसल अच्छी है। इसमें पौधो की संख्या अधिक हो तो बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई के साथ छटाई कर पौधे निकालने चाहिए तथा पौधो के बीच 8 से 10 सेन्टीमीटर की दर रखनी चाहिए। सिंचाई के बाद गुड़ाई करने से खरपतवार अच्छी होगी। प्याजी की रोकथाम के लिए फ्लूम्लोरेलिन एक लीटर सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर भूमि मे मिलाए। जहां पलेना करके बुवाई की जानी हो तो वहां सूखी बुवाई की स्थिति मे पहले फसल की बुवाई करे इसके बाद फ्लूम्लोरेलिन का छिड़काव कर सिंचाई करनी चाहिए। प्रायः सरसो की फसल 120 से 150 दिन मे पककर तैयार हो जाती है इस फसल मे उचित समय पर कटाई करना अत्यन्त आवश्यक है क्योकि यदि समय पर कटाई नही की जाती है तो फलियां चटकने लगती है एवं उपज में 5 से 10 प्रतिशत की कमी आ जाती है। जैसे ही पौधो की पत्तियां एवं फलियो का रंग पीला पड़ने लगे कटाई कर लेनी चाहिए। कटाई के समय इस बात का विशेष ध्यान रखे की सत्यानाशी खरपतवार का बीज, फल के साथ न मिलने पाए नही तो इस फसल के दूषित तेल से मनुष्य में ड्रोपसी नामक बीमारी हो जाएगी। सरसो केवल टहनियो को काटकर बंडलो में बांधकर खलिहान में पहुंचा दे एवं कुछ दिन तक फसल को सुखाने के बाद उचित नमी की अवस्था आने पर दाने बोरियो मे भरकर किसान सुरक्षित स्थल पर या भण्डार ग्रह में पहुंचा देना चाहिए।