इन दिनों कोरोना का भय हर तरफ दिख रहा है। इससे बचाव का रास्ता सिर्फ सावधानी ही बताया जा रहा है जो सिर्फ लॉक डाउन के माध्यम से गुजर रहा है। लॉक डाउन होने के चलते तमाम कारखाने अथवा संस्थान अस्थाई तौर पर बन्द कर दिए गए। नतीजन मजदूरों की रोटी पर संकट आता देख सरकारों ने उनको आर्थिक मदद के साथ ही राशन आदि की व्यवस्था करना शुरू किया।
पूरा देश इस समय कोरोना से निपटने में सहयोग कर रहा है। इस दौरान पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोग भी अपना अहम योगदान दे रहे हैं। जिन पत्रकारों को वेतन मिल रहा है और वो भययुक्त वातावरण में अपना दायित्व निभा रहे हैं वह सराहनीय है। लेकिन, जो बिना वेतन के पत्रकारिता करते हुए संकट की इस घड़ी में अपना दायित्व निभा रहे हैं उनका कार्य अति सराहनीय है और सरकारों को इस ओर ध्यान देने की महती आवश्यकता है।बिना वेतन के काम करने वाले पत्रकारों की बेबसी को समझने की अत्यंत आवश्यकता है। सभी उद्घाटन, शुभारम्भ, आयोजन आदि बन्द हैं धरना, प्रदर्शन सहित सभी वो आयोजन बन्द हैं जिनसे कुछ मिलने की उम्मीद रहती थी, वर्तमान में कुछ भी उम्मीद नहीं, फिर भी अवैतनिक पत्रकारों का हौंसला देखते ही बन रहा है। वो पत्रकारिता भी कर रहे हैं और एक समाजसेवी के रूप में भी दिख रहे हैं। अपनी मजबूरी किसी से बयां नहीं कर पा रहे हैं। जबकि तमाम पत्रकार ऐसे हैं जो अवैतनिक रूप से पत्रकारिता का कार्य करते हुए जहाँ अपने परिवार का भरण पोषण तमाम अन्य स्रोतों से करते रहे हैं तो दूसरी ओर समाज के लिये भी अहम योगदान करते रहे हैं और इन दिनों भी कर रहे हैं।
ऐसे में सरकारों का दायित्व बनता है कि अवैतनिक पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के हितों के बारे में भी कुछ सोंचे।