सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर वर्तमान में भारत और पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के बीच जो चल रहा है, वह किसी अजूबे से कम नहीं है और शायद यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इतिहास में एक विलक्षण प्रहसन के तौर पर जाना जाएगा। यह कटु सच्चाई है कि मुठभेड़ तो दो देशों के बीच हुई है, लेकिन दंगल उनके बीच नहीं हो रहा बल्कि दोनों देशों के अंदर ही चल रहा है। हमारे भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधी हाथ धोकर उनके पीछे पड़ गए हैं तो पड़ोसी मुल्क में नवाज शरीफ के प्रति बहस दिख रही है। भारत के कुछ लोग मोदी से सबूत मांग रहे हैं, तो तमाम फौजी कार्रवाई की तारीफ जमकर कर रहे हैं। इसी बीच केन्द्र सरकार के हाथ मजबूत करने के नाम पर उसकी टांग खींचने में लगे दिख रहे हैं।
उधर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की बात करें तो वहां की सरकार पहले दिन से बार-बार कह रही है कि नियंत्रण-रेखा के पार कोई हमला हुआ ही नहीं है। यह कोरी गप्प है। भारतीय फौजों ने कौन से सात ‘लांच पैड’ उड़ाए हैं और कौन से 38 पाकिस्तानी जवान और आतंकी मारे हैं, जरा वह दुनिया को बताएं। वहीं पाक ने कुछ अपने और कुछ विदेशी पत्रकारों को ले जाकर नियंत्रण-रेखा के वे स्थान भी दिखा दिए, जिन पर हमले का दावा हमारी सरकार ने किया था। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षकों और वहां गए पत्रकारों ने कहा है कि उन्हें हमले के कोई सबूत नहीं मिले। चलो मान लेते है कि वहां कुछ नहीं हुआ तो फिर पाक में हो हल्ला क्यों मचा हुआ है….? वहां की सरजमीं पर उथल-पुथल क्यों मची हुई है…? पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को रोज बयानबाजी क्यों करनी पड़ रही है? वे अपने सेनापति राहिल शरीफ से मंत्रणा क्यों कर रहे हैं? उन्हें मंत्रिमंडल, सभी दलों और संसद की आपात बैठक क्यों बुलानी पड़ी है? सारी बात आई-गई हो जानी चाहिए, लेकिन अफवाहों का बाजार दोनों देशों में गर्म है। अफवाह ये भी हैं कि दोनों शरीफ अब अपनी शराफत की हद पर पहुंच गए हैं। नवाज शरीफ ने फौज और आईएसआई से कह दिया है कि आतंकियों के खिलाफ जो भी कार्रवाई हो, उसमें वे बिल्कुल अड़ंगा न लगाएं। पाकिस्तानी एक अखबार की खबर है कि पाक प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेंजुआ और गुप्तचर मुखिया अख्तर को आदेश दिया है कि वे पाकिस्तान के चारों प्रांतों में जाएं और आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करें। हालांकि पाक-प्रवक्ता ने इस खबर को मनगढ़ंत बताया है लेकिन पाक मीडिया में यह खबर छाई हुई है। वास्तविकता तो यह बात त है कि उड़ी में हुआ हमला पाकिस्तान को बहुत महंगा पड़ता दिख गया है। वहीं यह भी सोंचने वाली बात है कि उड़ी-जैसे आतंकी हमले कई हो चुके हैं और भारत ने कई बार जवाबी कार्रवाई भी डटकर की है, लेकिन इन छुट-पुट मुठभेड़ों का जैसा प्रचार इन दिनों किया गया है, इसके पहले कभी नहीं हुआ। इस लिए हमारी प्रचारप्रेमी सरकार बधाई की पात्र है, जिसने पूरी दुनिया में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की दाल जरूरत से ज्यादा पतली कर दी है। गौर करें तो पाक इतना अकेला 1971 में भी नहीं पड़ा था, जब उसने पूर्वी पाकिस्तान में जमकर नर-संहार करवाया था। उस समय अमेरिका और चीन उसकी पीठ ठोंक रहे थे, लेकिन उड़ी की घटना ने उसे ‘अंतरराष्ट्रीय अछूत’ बना कर दिया है। दुनिया की किसी भी महाशक्ति ने पाकिस्तान के लिए सहानुभूति का एक शब्द भी नहीं बोला बल्कि भारत की जवाबी कार्रवाई को सही, उचित व समयानुसार जरूरी कदम बताया।