बुनियादी सच्चाईयों और तथ्यों की की अनदेखी करते हुए पाकपरस्त अलगाववादी राज्य में सक्रिय आतंकी ताकतों के साथ मिलकर ‘धरती का स्वर्ग’ समझे जाने वाले कश्मीर को ‘जहन्नुम’ बना देने पर आमादा हैं। इन अलगाववादियों द्वारा फैलाई जा रही हिंसा,आगजनी, व तोड़-फोड़ के बाद जब कभी सुरक्षाबल जवाबी कार्रवाई करता है और उसमें किसी प्रदर्शनकारी की मौत हो जाती है, तो यही अलगाववादी सुरक्षा बलों के विरुद्ध आक्रोशित होकर नारेबाजी करने लगते हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान और उसकी शह पर निजी हित साध रहे कश्मीरी अलगाववादी नेता कश्मीर को कुछ नहीं दे सकते। इनकी धोखे की राजनीति ने कश्मीर और कश्मीरी जनता का बहुत अहित किया है। कश्मीरी जनता अब समझदार और परिपक्व ढंग से इन परिस्थितियों का अवलोकन कर रही हैं। विश्वास किया जाना चाहिए कि कश्मीर में पाकिस्तान और उसकी शह पर मजे कूट रहे कश्मीरी अलगाववादी नेता शीघ्र ही हाशिए पर दिखाई पड़ेंगे।
जन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भारत सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण ही आज कश्मीर घाटी में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संवैधानिक मूल्यों को स्थापित किया जा सका है। कश्मीर की जनता अब सत्य को समझने लगी है। जनता को यह समझ में आ रहा है कि शांति और स्थिरता से ही विकासपरक गतिविधियों को दिशा दी जा सकती है। कश्मीर के चुनाव भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों की विजयगाथा कहते हैं। 2015 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में अलगाववादी शक्तियों को दरकिनार कर जनता ने भारी संख्या में उत्साहपूर्वक मतदान में हिस्सा लिया। रिकाॅर्ड मतदान और घाटी में लोकतंत्र की निरंतर मजबूत होती जड़ों से परेशान होकर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां अपनी कश्मीरी नीति में बड़ा बदलाव करने पर विचार कर रही हैं। भारतीय एजेंसियां ने भी पाकिस्तान की संभावित चालों को भांपते हुए इनके काट की तैयारी शुरू कर दी है। खुफिया एजेंसियां ने सरकार को सतर्क किया है कि इस सफल चुनाव के बाद राज्य में ठोस और स्थाई सरकार नहीं बन पाई तो पाकिस्तान को घाटी में नए जटिल हालात पैदा करने में काफी मदद मिलेगी। पहले भी जम्मू-कश्मीर में 1987 के चुनाव में धांधली के आरोपों और लोकतांत्रिक व्यवस्था निर्माण के असफल प्रयोग से पाकिस्तान को घाटी में आतंकवाद की जड़ जमाने का मौका मिला था।
पिछले कई दशकों से कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी ताकतें निजी स्वार्थों के कारण पाकिस्तान के हाथों की कठपुतली बनी हुई हैं। उन्हें भी भली-भांति यह समझ लेना चाहिए कि कश्मीर में रहने वाले अल्पसंख्यकों तथा कश्मीरी पंडितों के विरु( अपने पाकिस्तान में बैठे आकाओं के इशारे पर हिंसा करने से उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा। ऐसे सभी प्रयास मानवता विरोधी, गैर इस्लामी और यहां तक उस कश्मीरियत के भी विरुद्ध हैं, जिस कश्मीरियत की रक्षा के नाम पर यह अलगाववादी अपनी आवाजें बुलंद करते रहते हैं।
यह पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि पाकिस्तानी सेना की इसमें कोई रुचि नहीं है कि भारत के साथ संबंध सुधरें, बल्कि इसमें है कि कैसे कश्मीर मामलों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उछाला जा सके। इसी सोच के कारण हमें पिछली गर्मियों से सीमा पर यु( विराम के उल्लंघन की घटनाएं देखने को मिल रही हैं। इस पृष्ठभूमि में मोदी सरकार बड़े खतरे को ही आमंत्रण दे रही है। मोदी सरकार केवल बातचीत की प्रक्रिया पर अपना ध्यान लगाए हुए हैं। वह भलि-भांति जानती है कि किसी अर्थपूर्ण प्रगति की संभावना के बिना बातचीत के दरवाजे फिर से खोलना कोई अच्छी नीति नहीं है। बातचीत के हथियार के अलावा भारत के पास पाकिस्तान के ऊपर कोई बढ़त नहीं है। इसलिए इस हथियार का इस्तेमाल सोच-समझकर किया जाना चाहिए, ताकि पाकिस्तान का आचरण सुधारा जा सके। दूसरे शब्दों में बातचीत ही भारत के पास पाकिस्तान के मामलों में बढ़त का आधार होनी चाहिए, लेकिन बातचीत पाकिस्तान का आचरण सुधरे बिना होती है, तो इससे भारत का कोई लाभ नहीं होगा। पाकिस्तान में समन्वय संबंधी विफलता और धोखेबाजी की रणनीति और राजनीति दोनों साथ- साथ चल रही है। यह उस स्थिति में और भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है, जब ऐसा उस देश में हो रहा हो, जो परमाणु शक्ति संपन्न भी है। ऐसी खबरें पाकिस्तान से निरंतर आती ही रहीं हैं कि वहां के आतंकी गुट कभी भी परमाणु हथियारों तक अपनी पहुंच बना सकते हैं। परमाणु हथियार यदि असामाजिक, आतंकी और अराजक तत्वों के हाथों में पड़ जाए, तो इसका भयंकर परिणाम सुनिश्चित है।
मानव संसाधन से लेकर व्यापार, उद्योग, तकनीक, वैज्ञानिक शोध एवं अंतरिक्ष अनुसंधान, प्राकृतिक संसाधन तथा सामरिक शक्ति जैसे किसी भी मोर्चे पर पाकिस्तान भारत के समक्ष कहीं नहीं ठहरता। यह उसकी बचकानी सोच है, जिसके तहत वह भारत से बराबरी करने के मिथ्या स्वप्न देखता रहता है। वास्तव में यह एक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान की स्पष्ट विफलता है और वहां के राजनेता तथा सेना अपनी साख बचाने मात्र के लिए निरंतर पाकिस्तानी जनता को गुमराह करते रहते हैं। जनता को मूर्ख बनाने का यह कार्य योजनाद्ध( ढंग से पाकिस्तान निर्माण के समय से ही उस देश में चल रहा है। यद्यपि पाकिस्तान का एक प्रगतिशील, पढ़ा-लिखा एवं समझदार तबका अब सच्चाई को थोड़ा-थोड़ा समझने लगा है। इस तबके का भी यह मानना है कि पाकिस्तान का भला केवल तभी हो सकता है, जब वह भारत के साथ मिलकर चले।
यह आश्चर्य की बात है कि पाकिस्तानी सरकारें जान-बूझकर निजी स्वार्थों के कारण सत्य को नकारती रही हैं। यदि पाकिस्तान ने भारत के साथ बेहतर द्विपक्षीय संबंध और कारोबारी रिश्ते रखे होते, तो इससे उसकी जनता को ही लाभ पहुंचता। आज पाकिस्तान अंदर ही अंदर खोखला होता जा रहा है। वहां लोकतंत्र से लेकर शिक्षा के अवसरों तक की स्पष्ट कमी है। संवैधानिक संस्थाएं पूरी तरह बिखर रही हैं और सर्वत्र भ्रष्टाचार का बोलबाला है। अपराध और आतंकवाद के दलदल में गहरे धंसे पाकिस्तान की अधिसंख्य जनता और विशेषकर युवाओं को इस देश में अब अपना कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है।
पाकिस्तानी जनता भारत से बेहतर संबंध चाहती है, लेकिन दुर्भाग्यवश पाकिस्तान की सड़ी-गली व्यवस्था में उसकी व्यथा-कथा तथा आकांक्षा सुनने वाला कोई नहीं है। अब समय आ गया है कि पाकिस्तान को केवल अपना ही नहीं, बल्कि समूचे भारतीय उपमहाद्वीप और विश्व शांति के लिए अपनी रीति-नीति में नए सिरे से सोच-विचार करना चाहिए। मुश्किल यही है कि पाकिस्तान की सेना, वहां की सरकार और कट्टरपंथी तत्व इस सच को स्वीकार करने के लिए अभी भी तैयार नहीं है। पाकिस्तान को अब यह तथ्य भली-भांति अपने दिमाग में बिठा लेना चाहिए कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। इसे जोर- जबरदस्ती अथवा आतंकवाद के जरिये भारत से अलग नहीं किया जा सकता।
Written by: Pankaj K Singh