Wednesday, November 27, 2024
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कोरोना वैश्विक महामारी में फार्मासिस्टों को नियुक्त करे सरकार, शिक्षकों पर न करे अत्याचार

आज दुनिया के बड़े-बड़े देश जब कोरोना वैश्विक महामारी से अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं जिनके पास दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सा पद्धति है, तो फिर भारत की विसात ही क्या है जिनके पास अपने योद्धाओं को पहचानने तक की क्षमता नहीं है। चिकित्सा विज्ञान का एक ऐसा योद्धा जो चिकित्‍साशास्त्र का मेरूरज्जु कहा जाता है जिन्हें लोग फार्मासिस्ट के नाम से जानते हैं, जिसे औषधियों का जनक कहा जाता है, जिनका औषधि से सम्बंध माँ और पुत्र की भाति होता है, जो औषधियों के हर एक गुण को अपनी विद्वता के द्वारा पहचानता है
और ऐसे योद्धा को कोरोना के खिलाफ इस युद्ध मे उसे उसके रणभूमि से अलग कर दिया जाता है जैसे कर्ण को भीष्म ने किया था। औषधियों की उपयोगिता और विषाक्तता को भलीभांति से पहचानता हो जो वह कोरोना के खिलाफ इस युद्ध मे कृष्ण जैसा सारथी हो सकता है, लेकिन इनका शोषण भारत मे तो विगत सरकारों के द्वारा होता आ रहा है और वर्तमान सरकार तो सारी हदें पार कर चुकी है।जहां दुनिया भर में इस वैश्विक महामारी में फार्मासिस्टो ने अपने हुनर का डंका बजाया है वो चाहे वैक्सीन के लिए रिसर्च सेंटर हो या अस्पतालों में कोरोना वार्ड या परीक्षण के लिए तैयार किये जाने वाले  कोरोना किट और फार्मासिस्टों का अभार तो दुनिया के बड़े-बड़े देशों ने व्यक्त किया है लेकिन हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री ने तो अपने संबोधन मे नाम तक नहीं लिया और कहीं न कहीं इस क्षेत्र में उनके शिक्षा की अलप्तता दिखाई देती है जो शर्मनाक है। जहां पूरी दुनिया रिसर्च सेंटरो में फार्मासिस्टों की तरफ आशावादी नजरों से देख रही है वहीं हमारे सूबे के यशस्वी मुखिया परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों मे अपने त्रिकालदर्शी नजरों से कोरोना से लड़ने का गुण और चिकित्सा विज्ञान को ढूढ के उन्हें मौत के मुँह में अग्रषित कर रहे हैं जिनका चिकित्सा से दूर-दूर तक नाता नहीं है। गलती हमारे शिक्षकों की नहीं है क्योंकि उनकी कर्मभूमि ही अलग है जो सदैव पूजनीय है और यहाँ पे मुख्यमंत्री जी के शिक्षा का प्रभाव दिखता है जो अप्रशिक्षित लोगों से जीवनदायनी औषधियों का वितरण कराते हैं और उनको अपना संरक्षण देते हैं। जब हमारे प्रधानमंत्री जी हाइड्रोक्सोक्लोरोक्वीन के वजह से पूरे दुनिया मे कुशल नेतृत्व का डंका बजाते है और अपनी बाहें पुजवाते हैं तो हमें अपार खुशी होती है लेकिन शायद प्रधानमंत्री जी को ये पता नहीं कि इसके पीछे भी फार्मासिस्टों का हाथ है जिन्होंने अपने खून पसीने और शिक्षा के सामर्थ्य पर इसे बनाया है। जो आभार तक व्यक्त नहीं किये तो हम ऐसे यशस्वी प्रधानमंत्री से क्या उम्मीद कर सकते हैं। फार्मासिस्ट मित्रों इनसे उम्मीद करना अपने आप से बेमानी है, चाहे पूरा देश इस महामारी से अपना दम तोड़ दे लेकिन ये आप की तरफ मुड़कर नहीं देखेंगे क्योंकि इनमें आप को पहचानने की क्षमता नहीं है, जिसके अंदर चिकित्सा विज्ञान के सारे गुण समाहित है। गलती केवल इनकी नहीं हमारे कौम के मुखिया की भी है जो फार्मेसी काउंसिल के नाम से जाना जाता है। जो आज एक भ्रष्ट संस्था बन चुका है जिसे फार्मासिस्टों के उत्थान के लिए बनाया गया है लेकिन आज अपने उत्थान मे लगा है जिसका दंड लाखों फार्मासिस्टों को मिल रहा है फिर भी हम अपने यशस्वी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से अपनी रणभूमि और सम्मान की अपेक्षा रखते हैं। हमारे देश में लगभग 30 लाख रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हैं जिनमें उत्तर प्रदेश में अकेले 90 हजार रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हैं। स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का सरकार के पास यह एक अच्छा विकल्प है कि वे प्रशिक्षित फार्मासिस्टों को इस कार्य हेतु नियुक्त करें।
राजेश बाबू कटियार (फार्मासिस्ट) (पूर्व छात्र) जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर