मेरा बचपन औरो से अलग था,
माँ ने कहां पाला था।
मुझे तो मेरी दादी ने संवारा था,
माँ तो चल बसी थी, जब मैंने जन्म लिया।
औरों की दुनिया अलग थी,
मेरी तो गुड़िया भी, वो बूढ़ी दादी थी।
वो रात – दिन दौड़ती थी।
मुझे चलना सिखाने के लिए,
मै तो रात में आराम से सो जाती,
पर वो रात भर जागती थी।
वो अपना दर्द भूलकर
मेरी खुशी में गाती थी,
मेरे लिए हर दिन दुआं मांगती थी।
इस बुढ़ापे में भी वो मेरा बचपन संवारती थी।
– पल्लवी कौर जौहर