आत्मनिर्भरता का जो संदेश भारत को दिया गया है वो इससे ज्यादा क्या आत्मनिर्भर बनेगा कि श्रमिक वर्ग अव्यवस्था के चलते पैदल ही चल निकला है अपने घरों की ओर। ये आत्मनिर्भरता का ही सबूत है कि उम्मीद, सहयोग और परिस्थितियों से लड़कर बिना हताश हुए वो लगातार चल रहा है। भूख – प्यास, धूप छांव की परवाह किए बिना बस चल रहा है। आजकल जो तस्वीरें वायरल हो रही है मजदूरों की वह हमें बेबस कर देने के लिए काफी है। खून से रिसते पैर, फफोलों से भरे हुए पैर लेकर नंगी जमीन पर बस चल रहा है। पैदल यात्री और कुछ जमीन पर नंगे पैर चलते लोग या एक ही साइकिल पर तीन चार लोगों की सवारी, गर्भवती स्त्रियां अपने पेट का भार उठाए न जाने कितने किलोमीटर से चले आ रही है। पुलिस की लाठियां भी झेल रहा श्रमिक वर्ग की अभी न जाने कितनी यात्रा बाकी है? घर वापसी के बाद वह क्या खाएगा और परिवार को खिलाएगा क्या यह भी एक सवाल मुंह बाए खड़ा है उसके सामने? लाकडाउन के चलते इन दिनों मजदूरों के साथ लगातार सड़क दुर्घटनाएं घट रही है। डरा हुआ श्रमिक वर्ग जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंच जाना चाहता है। शासन को चाहिए कि उचित व्यवस्था करके मजदूरों के पलायन को रोके। -प्रियंका माहेश्वरी