दक्षिण भारत के केरल राज्य में लिटरेसी रेट ९९% है। दूसरे शब्दों मे कहें तो केरल हिन्दुस्तान का सबसे साक्षर राज्य है किन्तु गत् २५ मई को केरल के पल्लकड़ जिले में भूख से बेहाल एक गर्भवती हथिनी को जिस प्रकार अन्नानास में विस्फोटक भरकर खिला दिया गया और जिससे उसका मुँह और जबड़ा जलकर जख्मी हो जाने के कारण हथिनी की मौत हो गई, केरल की साक्षरता का यह आंकड़ा दुर्भाग्यपूर्ण प्रतीत होता है।
इस घटना से ये भी साबित होता है कि लिटरेसी का मानवीयता से कोई संबंध नहीं है। पूर्णतः शिक्षित इस राज्य ने यह साबित कर दिया कि पढ़ लिखकर शिक्षित कहलवाना और वास्तविक रूप से शिक्षित होना दो अलग बातें है। इस लिहाज से देखे तो बिहार जैसे राज्य में जहाँ लिटरेसी रेट केरल जैसे राज्यों की अपेक्षा बहुत कम है, ज्यादातर लोग मेहनत मजदूरी करके जीवनयापन करते हैं परंतु इन राज्यों से इस तरह की क्रूरतम घटनाओं की खबरें कभी सामने नहीं आई।
भूख से बेहाल गर्भवती हथिनी विस्फोटक के फटने के बाद चोट और दर्द से तड़पती हुई गाँव की गलियों से भागती हुई निकली पर यहाँ उसने एक बार फिर से यह बात साबित कर दी कि जंगल में रहने वाले निरीह जीव असल में जानवर नहीं, असल में वास्तविक जानवर तो इंसान है जो केवल अपने मनोरंजन, अपने स्वार्थ के लिए इन बेगुनाहों पर जुल्म ढाता है, सदियों से जुल्म ढ़ाता आ रहा है । जख्मी हथिनी ने भागते वक्त एक भी इंसान को चोट नहीं पहुँचाया।
वह तीन दिनों तक गाँव के बाहर नदी में मुंह डालकर मनुष्य की पशुता के दर्द से उबरने का प्रयत्न करती रही और आखिर में उसकी मृत्यु हो गई। केरल राज्य जहाँ हर साल क्रूरता की वजह से कई हाथियों की मौत हो जाती है (साल २०१९ में केरल हाईकोर्ट में पेश एक रिपोर्ट के अनुसार साल २०१७ में १७, और साल २०१८ में ३४, साल २०१९ में १४ हाथियों की मौत हुई) समेत पूरे देश में पशुओं पर क्रूरता के लिए कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए। वर्तमान में पशुओं पर अत्याचार के मामले में बेहद कम सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
निर्बल को ना सताइए, वां की मोटी हाय
बिना सांस की चाम से लौह भस्म होई जाय ।।
सदियों से मनुष्यों ने जानवरों के ऊपर जो अत्याचार किए हैं उसका अपराधबोध कहीं न कहीं इंसानों के मन में भी व्याप्त है और इसका प्रमाण है वह डर जब, कोरोना महामारी के खौफ़ से घबरा कर लोगों ने थोड़े समय तक शाकाहार को अपनाए रखा । वास्तव में प्रकृति बहुत शक्तिशाली है और वह मानवों को उसके अत्याचार के लिए सबक सिखाना बखूबी जानती है । सच तो यह है कि बेगुनाहों पर क्रूएलिटी के लिए मानव जिम्मेदार है, तो कोरोना वायरस की त्रासदी की सजा भी तो वही भोगेगा ।
( 05 जून 2020 विश्व पर्यावरण दिवस है, काश कि मानव यह समझ ले कि पूरे पर्यावरण को साथ लेकर चलने में हीं उसका कल्याण है)
– कंचन पाठक कवयित्री, लेखिका ग्रेटर कैलाश, दिल्ली