कोरोना का कहर पूरे विश्व में छाया है कोरोना को फैलाव को रोकने के लिए सरकार सम्पूर्ण भारत मे लॉकडाउन कर रखा है जिससें पूरा देश
थम गया है सभी गतिविधियां बंद है हवाई, रेलवें, सड़क यातायात बंद है सभी शहरों व गांवों की सड़कें और गलियां सुनी पड़ी हैं। जो जहाँ है वो वही ठहर गया सभी देशवासी अपने घरों में कैद जीवन को जी रहे है सरकार ने मुलभूत आवश्यकओं के लिए राशन, दवाई आदि की दुकानों को सोसल डिसटेंस के साथ खोलने और होम डिलीवरी की सुविधा दी है।
लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो शहरों में दिहाड़ी कर शाम को अपने तथा अपने परिवार की रोटी का जुगाड़ करता था वह कहां? जाए। इन प्रवासी मजदूरों की जेब में न तो पैसे हैं और न ही खाने के लिए घर में राशन घर में बैठकर कोरोना वायरस से जंग जीतने के लिए कोई विकल्प नहीं है। लॉकडाउन के कारण सारा कामकाज ठप है। व्यवस्था अस्त-व्यस्त है। दिहाड़ीदार मजदूर जो छोटे-मोटे उद्योगों, दुकानों व ढाबों पर कार्य करते थे उनके पास भी कुछ करने को नहीं है। उनके पास काम नहीं तो पैसा नही खाने के लाले उपर कमरे के किराए के लिए प्रेशर भूखे और बदहाली में कोरोना, संक्रमण और जमा पूंजी के खत्म होने के साथ मौत के काउंडाउन के बीच अपने भूख प्यास से बिलखते परिवार की जान की सुरक्षा और भविष्य की चिंता और हालात से मजबूर जाएं तो जाएं कहां! चूंकि लॉकडाउन की अवधि धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है इससे प्रवासी मजदूरों मे अनिश्चितता के डर और घबराहट की स्थिति में शहरों से पलायन कर अपने घर-गांव वापस जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।लॉकडाउन के कारण देश के बड़े व छोटे शहरों से हजारों की संख्या में पलायन शुरू हो गया है। पैदल ही नंगे पैर, भूखे प्यासें पुरूष, महिला, बुजुर्ग बच्चों समेत समूहों में ये लोग सड़कों पर निकल पड़े हैं दिन-रात सैकड़ों किलोमीटर.चलकर शहर छोड़कर घर-गांव लौट रहे मजदूरों को भी इस बात की गहरी चिंता है घर-गांव में पहुंच कर करेंगे क्या? कोरोना फैलने के साथग्रामीण इलाकों में रोजगार की समस्या खड़ी होगी।
शहरों से मजदूरों के पलायन का एक कारण कोरोना तो दूसरा बड़ा कारण भूख है।
लॉकडाउन के दौरान होने वाला पलायन सामान्य दिनों की अपेक्षा होने वाले पलायन से एकदम उलट है.अमूमन हम सब रोजगार पाने व बेहतर जीवन जीने की आशा में गांवों और कस्बों से महानगरों की ओर पलायन होते देखते है परंतु इस समय महानगरों से गांवों की ओर हो रहा पलायन नि:संदेह चिंताजनक स्थिति को उत्पन्न कर रहा है मजदूरों के रिवर्स माइग्रेशन से देश के बड़े औद्योगिक केंद्रों में उत्पादन प्रभावित होगा।
अभी भले ही उद्योगों में काम कम हो गया है या रुक गया है परंतु लॉकडाउन समाप्त होते ही मजदूरों की मांग में तेजी से वृद्धि होगी मजदूरों की पूर्ति न हो पाने से उत्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा। लॉकडाउन समाप्त होने के बाद मजदूर वर्ग के महानगरों में स्थित औद्योगिक इकाईयों में कार्य हेतु वापस न लौटने की भी आशंका है।
विकास और अर्थव्यवस्था का पहिया चलाने के लिए प्रवासी मजदूर चाहिए इनके बिना विकास संभव नही।
पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि कार्य के लिए बड़े पैमाने पर मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है, रिवर्स माइग्रेशन की स्थिति में इन राज्यों की कृषि गतिविधियां बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बंगलुरू और हैदराबाद जैसे अन्य महानगरों से मजदूरों के पलायन से रियल एस्टेट सेक्टर बड़े पैमाने से प्रभावित हो सकता है।
बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्य औद्योगीकरण में पिछड़े हुए हैं, रिवर्स माइग्रेशन के कारण इन राज्यों में रोजगार का संकट भीषण रूप ले रहा है। रोजगार के अभाव में इन राज्यों में सामाजिक अपराधों में वृद्धि हो सकती है
लॉकडाउन की स्थिति में केवल पंजीकृत श्रमिकों को ही वित्तीय सहायता मिली है। लाखों असंघटित श्रेत्रों के अपंजीकृत श्रमिकों को कुछ भी नहीं मिला। केंद्र और राज्य सरकारों को ध्यान देना होगा कि ये गरीब लोग भी अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। इन तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए सबसे पहले असंगठित क्षेत्र के कामगारों को चिन्हित करना होगा।
प्रवासी श्रमिकों का न्यूनतम वेतन एवं कार्य सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ उनका बीमा भी होना चाहिए। असंगठित क्षेत्र में मजदूरों को यूनियन बनाने में सरकार को ही मदद के लिए आगे आना होगा जिसके माध्यम से अपनी समस्या और जरूरतों को सरकार के सामने रख सके।चिकित्सा देखभाल, दुर्घटना मुआवजा, काम करने के घंटे सुनिश्चित करना, उनके बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था, बैंक में खाता खुलवाने संबंधी उपायों पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इसमें कारखाना मजदूरों के साथ रेहड़ी लगाने, घरों में सेवा देने वालों को भी शामिल किया जाना चाहिए। सरकार को श्रमिकों के हितों को प्राथमिकता के आधार पर सुरक्षित करना होगा।
डॉ रचना सिंह”रश्मि” आगरा