कोरोना से उत्पन्न हुई इस महा आपदा संकट काल में जहाँ दुनिया खुद को संभालने की कोशिश में लगी है दो वक्त की रोटी की जुगत में गरीब असहाय बेरोजगार दर-दर भटक रहे हैं। दुनिया के लगभग हर देश आर्थिक संकट से उबरने में लगे हुए हैं इन सबसे बड़ी और कठिन चुनौती कोरोना से संक्रमित हुए लोगों को उपचार व बचाव संसाधन मुहैया कराने में पूर्णतः व्यस्त हैं ऐसे में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार वह हर कार्य कर रही है जो इस संकट काल के दौरान जरूरी है। इसी परिपेक्ष में कोरोना बचाव लॉकडाउन ने भारी संख्या में लोगों को बेरोजगार बना दिया लोगों का भरण-पोषण करने का आधार उनसे छिन गया। राज्य और देश दोनों स्तर पर बेरोजगारी में इजाफा देखा जा सकता है इन सबके बीच योगी सरकार की कार्यशैली व क्रियान्वयन काबिले तारीफ है।
इस बेरोजगारी को दूर करने हेतु व शिक्षा के क्षेत्र में योग्य शिक्षक मुहैया कराने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार आज करीब दो सालों से अधर में लटकी ६९००० शिक्षक भर्ती को जल्द से जल्द पूर्ण करने में लगी थी जिससे इस बेरोजगारी में कुछ तो कमी आ सके। इससे तमाम घरों के चूल्हे फिर से जलने लगते। करीब ६९००० परिवारों का भरण-पोषण संभव हो जाता जो कि एक उत्कृष्ट कार्य होता जिसकी चर्चा भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में की जाती यह कहकर कि जब दुनिया बचाव में व्यस्त थी तो उत्तर प्रदेश की सरकार बचाव के साथ-साथ रोजगार भी मुहैया करा रही थी।इस ऐतिहासिक शिक्षक चयन प्रक्रिया में आखिरकार कुछ अराजक तत्वों ने हाई कोर्ट से स्टे लेते हुए भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दिया जिसके विरोध में सरकार डबल बेंच में अपनी दावेदारी पेश की जिसकी सुनवाई अभी बाकी है। ऐसे में एक और अपील जो शिक्षामित्र ३७००० सीट रिजर्व कराने के लिए थी उसमें सुप्रीम कोर्ट का एक पक्षीय फैसला चिंतनशील मुद्दा बन गया जिसने अपने आदेश में सरकार से शिक्षामित्रों के सीट रिजर्व कर भर्ती प्रक्रिया पूर्ण करने का अहम निर्देश दिया जो शिक्षक चयन प्रक्रिया में उत्तीर्ण करीब १ लाख ४६ हजार छात्रों के भविष्य के साथ अनुचित कदम है। इन १४६००० उत्तीर्ण छात्रों की योग्यता को अनदेखा कर सांत्वना स्वरूप शिक्षामित्रों के पक्ष में एक पक्षीय फैसला चयनित छात्रों के दिलो-दिमाग पर बुरा असर डाल सकता है।
गौरतलब है कि अगर शिक्षामित्र सीट ही रिजर्व करनी थी तो यह दो सालों से छात्रों के साथ लुकाछिपी का खेल आखिर क्यों खेला जा रहा है ? कभी कट ऑफ मुद्दा कभी आरक्षण मुद्दा कभी कॉमन अंक मुद्दा आखिर यह मुद्दे पर मुद्दा क्या है ? जब सांत्वना स्वरूप ही नौकरी देना था तो इतनी सारी परीक्षाएं आखिर किस लिए सरकार योग्य शिक्षक चाहती है क्योंकि बिना योग्य शिक्षक के शिक्षा के स्तर को शिखर पर ले जाना संभव नहीं । चयनित छात्रों ने कितनी मुश्किलों का सामना कर इस लॉकडाउन जैसे हालात में भी हजारों रूपया फूंककर काउंसलिंग सेंटर तक की दूरी तय की और उन्हें मिला क्या ? महज निराशा ! फार्म भरने से लेकर अब छात्रों के धन और समय का जो नुकसान हुआ आखिर उसका कौन जिम्मेदार होगा ? क्या यह छात्र जो दो साल से इस शिक्षक भर्ती से काफी उम्मीद लगाए बैठे थे वो सांत्वना के पात्र नहीं ? इस पर सुप्रीम कोर्ट को भी सोचना चाहिए कि उनका यह एक पक्षीय फैसला अन्य योग्य छात्रों के लिए न्यायसंगत नहीं अतएव इस पर पुनर्विचार करने की महती जरूरत है नहीं तो चयनित व योग्य छात्रों का मान हनन होगा। इस फैसले से छात्रों में निराशा व रोष देखने को मिल रहा है जबसे यह फैसला आया है ट्विटर के ट्रेंड पर अहम मुद्दा बना हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा कैसे कर सकती है ? आखिर वह एक पक्षीय फैसला कैसे ले सकती है ? जबकि अन्य चयनित अभ्यर्थी क्या इस चयन प्रक्रिया के लिए अयोग्य हैं ? पुनर्विचार की आवश्यकता माननीय सुप्रीम कोर्ट से आग्रह!
– मिथलेश सिंह ‘मिलिंद’
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