आज देश की अर्थव्यवस्था जहाँ कोरोना महामारी के कारण धराशायी हो गई है वहीं प्राकृतिक प्रकोपों ने भी खूब सताया है। इन सबसे ज्यादा प्रभावी पड़ोसी मुल्कों का हमारी सीमाओं पर अतिक्रमण और सेंधमारी की आए दिन हो रही वारदातों चिंता का विषय बना हुआ है। इसी बीच भारत व चीनी सेनाओं के बीच झड़प में हमारे देश के २० जवानों की शहादत ने पूरे देश में चीनी सामानों के बहिष्कार ने क्रांति ला दिया है । जिसके भी मुँह पर देखें बस एक बात ही मौजूद है कि चीन की इस धोखाधड़ी का बदला हम उसके बहिष्कार से पूरा करना चाहते हैं। वहीं भारत के बड़े-बड़े स्पॉन्सर अपनी स्पॉन्सरशिप को चीन के साथ खतम करने से इंकार कर रहे हैं। आखिर क्या वजह है जो भारत में इस तरह के स्पॉन्सरशिप बंद नहीं हो पा रहे हैं ? जब भी भारत व चीन सीमा विवाद होता है तो इसे बंद करने की कवायद शुरू तो होती है फिर भी यह विफल हो जाती है। बीते कुछ वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में चीनी निवेश में काफी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। देखा जाए तो चीनी निवेशकों ने देश के स्टार्टअप अर्थव्यवस्था में काफी निवेश किया है जिस वजह से चीनी सामानों ने भारत में गहरी पैठ बना ली है। गौरतलब हो कि ऐसे हालात तभी पनपते हैं जब देश में आत्मनिर्भरता की कमी हो। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का बहिष्कार तभी संभव हो सकता है जब सरकार सख्त कदम व उचित विकल्पों का चयन करे। सरकार पहले चीनी सामानों का जो देश में पैठ बनाए हुए हैं उनका विकल्प विकसित करे तो चीनी सामान की मांग देश में खुद ब खुद कम हो जाएगी और उसका बहिष्कार स्वतः ही हो जाएगा। ऐसा करने से देश को दो तरफा फायदा होगा एक देश आत्मनिर्भरता को हासिल करेगा दूसरा चीनी निवेशकों का बाजार बंद करन में भी सफल होगा। जब तक सरकार इन विकल्पों पर विचार विचार नहीं करेगी तब लोग इस नफा-नुकसान के बारे में सोचते ही रहेंगे। इस स्पॉन्सरशिप को न छोड़ने की बात से यह तो साफ ही हो गया है कि हम चीनी सामानों को तभी पीछे ढकेलने में कामयाब होंगे जब हम देश में निर्मित स्वदेशी सामानों की गुणवत्ता में सुधार करने पर विचार करेंगे।
चीनी सामानों के बहिष्कार का हो-हल्ला भले ही ट्विटर का ट्रेंड बढ़ा रहा हो मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। हमारे घरों में मौजूद कोई न कोई इलेक्ट्रॉनिक सामान चीन से जुड़ी हुई है और लोग उसका इस्तेमाल इसलिए कर रहे हैं कि व किफायती व गुणवत्तापूर्ण है। अब अगर हमें स्वदेशी आत्मनिर्भरता चाहिए तो सबसे पहले हमारी लड़ाई किफायती व गुणवत्तापूर्ण स्वदेशी सामानों को भारतीय बाजार में उतारना होगा तभी हम चीनी सामानों का बहिष्कार सुनिश्चित कर सकते हैं। हमारे स्वदेशी सामानों की सबसे बड़ी कमी यह है कि वह गुणवत्तापूर्ण होते हुए भी अपने महँगे दामों की वजह से भारतीय बाजारों में अपनी पैठ बना पाने में असफल रहे हैं। मगर हम इन्हीं सामानों की गुणवत्ता को बरकरार रखते हुए उसके दामों में उचित विकल्पों का समावेश करें तो हम चीनी सामानों का बहिष्कार सुनिश्चित कर सकते हैं। स्थितियां साफ है कि जब तक हम स्वदेशी सामानों की गुणवत्ता के मद्देनजर उनके उचित दामों पर भी विचार नहीं करेंगे तब तक हम आत्मनिर्भरता तो दूर चीनी सामानों का भी बहिष्कार सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं। अतः सबसे पहले हमें चीन जैसी तकनीकी का उचित विकल्प चयन करना होगा तभी हमारी मुहिम को अमली जामा पहना पाएंगे।
रचनाकार – मिथलेश सिंह ‘मिलिंद’