Wednesday, November 27, 2024
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ऐसा आलिंगन हो तुम्हारा और मेरा-

मैंने कब मांगा है अपने प्रियतम के जीवन भर का साथ,
प्रेम कभीं नहीं मांगता कोई बेशक़ीमती सौग़ात,
प्रेम को तो चाहिए बस अपने प्रियतम के
एक पल का स्पर्श, और आलिंगन का एहसास।
जैसे सागर की बाहों में लिपट जाती है नदियाँ,
वैसे ही अभिलाषी है मेरा हृदय भी तुम्हारे आलिंगन को प्रिय,
देखा है न अस्तांचल रवि को, दिन कैसे रात के पहलू में, निश्चिन्त होकर सोता है,
ये दूरी कहाँ रोक पाई है आकाश और धरा के मिलन की आकांक्षा को।
प्रिय मेरे! तुम भी लाना वही आकाश सा प्रेम,
जो बारिश की बूंद बन बरस पड़ती है धरा पर, करने उससे आलिंगन,
चाहती हूं हमारा मिलन ऐसा हो रूह से रूह के जैसा हो,
जैसे कोई भूल जाता है रखकर किसी पुस्तक में गुलाब,
पर उसकी ख़ुश्बू से महकते रहते हैं उसके पन्ने।
हाँ मैं भी चाहती हूं,लेकर मुझे अपने बाहुपाश में
भूल जाओ तुम भी इस आलिंगन की कैद से रिहा करना मुझे,
तब मैं चुम कर माथे को तुम्हारी ले लूँ,सारी बलाये तुम्हारी,
बांध कर तुम्हारी कलाई पर प्यार का एक धागा,
दे दूँ तुम्हे अपनी दुआएं सारी।
हां तुम भी जानते हो ये निष्ठुर वक़्क्त रुकता ही नही किसी के लिए,
क्यों ना कुछ देर ठहर जाये, हम इक-दूजे के लिये…
कभी जब रात में बिजली जाने पर घबरा कर,
थाम लोगे मेरा हाँथ, तब मैं चुपके से महसूस कर लूँगी
तुम्हारे मन की व्यथाएँ सारी।
जाने फिर वक़्त हमारा रहे न रहे,
चुम कर आँखे तुम्हारी,
भर देना चाहती हूं तुम्हारी आँखों में, आसमान की निहारिकायें सारी,
पर मैं रह-रह कर सोचती हूँ की,
अगर मैं गले भी लगू तुमसे तो कितनी देर तक लग पाऊंगी,
गले लग कर तुम्हारे साथ कितनी दूरी तय कर पाऊंगी,
जो मैं लगी बहुत देर तक गले तुम्हारे तो,
मैं बेशक ही बहक जाऊंगी,
कराकर जिस्मों का स्पर्श मैं तुमसे
क्या खाक प्रेम निभा पाऊंगी।
एक सत्य यह भी है कि जब-जब पुरुष ने
स्त्री को आलिंगन में लिया,
वह स्त्री पुरुष की आँखों में
प्रेम को खोजते हुए कह गई कि,तुम कभी मुझे
छोड़कर मत जाना,
किन्तु पुरुष नासमझ सदियों से
चली आ रही रीत को निभाते हुए
स्त्री को छोड़कर चल देता है।
इसलिये मैं चाहती हूं कि,
हो यदि आलिंगन हमारा तो,तुम्हारी उंगलियों का मेरी उंगलियों से हो,
की चुम ले तुम्हारी हांथो की लकीरें,मेरे हांथो की लकीरों को,
हां चाहती हूँ मैं एक ऐसा ही आलिंगन,
जो मेरी मुसीबत को आसान कर दे ,तुम्हारे मेरे जीवन को
खुशियों के रंगों से भर दे,
हर गम को खुशी में तब्दील कर दे,
हां ऐसा आलिंगन हो, तुम्हारा और मेरा।
रीमा मिश्रा नव्या
आसनसोल (पश्चिम बंगाल)