Wednesday, November 27, 2024
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अपराध जगत में राजनीति और नौकरशाही की संलिप्तता -एक चुनौती

आज अपराध जगत और अपराधी इतने बेखौफ क्यो है? बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है हमारी प्रशासनिक व्यवस्था पर, हमारी कानूनी व्यवस्था पर और हमारी सरकार पर। क्या अपराधियों के हाथ इतने लंबे हैं कि क़ानून की पकड़ से बाहर है, शासन प्रशासन मूक दर्शक मात्र है, सरकार भी मौन की मुद्रा में रहे। अवश्य ही बड़े बड़े भ्रष्ट व आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेताओं, प्रशासन के कुछ भ्रष्ट कर्मियों, पाले गए भ्रष्ट मुखबिरों व समाज के कुछ स्वार्थी भ्रष्ट दरबारी प्रवृति के चापलूस तत्वों की सरपरस्ती में अपराध जगत फलता फूलता है। अपराधी कानून व शासन के समानांतर अपनी आपराधिक गतिविधियों को लगातार अंजाम देते रहते हैं और कानून के शिकंजे से बाहर भी आते रहते हैं।
2 जुलाई को कानपुर नगर चौबेपुर के बिकरु गांव में घटी ऐतिहासिक आपराधिक वारदात ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है जब एक अपराधी, जिसका जघन्य अपराधियों की वांछित शीर्ष सूची में कहीं नाम नहीं, गांव में दबिश देने गयी पुलिस टीम पर घातक हमला कर टीम के 8 सशत्र पुलिस अधिकारीयो व सिपाहियों की जघन्य हत्या कर दी, बाकियों को घायल कर दिया। उनके हथियार छीन लिए, उन्हें दौड़ा दौड़ा कर पीटा।पुलिस को जान बचाने के लाले पड़ गए।
एक शर्मनाक घटना, समाज के रक्षक पुलिस विभाग का काला अध्याय, इतिहास में अंकित हो गया।
इससे पूर्व भी इस तरह की अविश्वसनीय घटनाएं घटती रही है, जब पुलिस को मूकदर्शक बनना पड़ा है। बीस वर्ष पूर्व की घटना भी मस्तिष्क में कौंध गई जब इस दुर्दांत अपराधी ने थाने में घुस कर एक राज्यमंत्री को गोलियों से भून दिया था और पुलिस कुछ नहीं कर पाई।किसी जमीनी विवाद के चलते विद्यालय में घुस कर विद्यालय प्रबंधक की खुले आम हत्या कर देता है और कुछ नहीं होता। बस कानूनी व पुलिसिया खानापूरी व मामला रफादफा।
क्या कोई गठबंधन है अपराधियों का खाकी और खादी से।एक पकड़ने की खानापूरी करता है दूसरा बचा लेता है। अपराध जगत फलफूल रहा है। कहीं भी कभी भी कोई भी अप्रत्याशित घटना घट जाती है और बस कुछ दिन शोर शराबा, आंदोलन प्रदर्शन, बस सब ठंडा।
आये दिन घटने वाली इस तरह की बेखौफ सामूहिक दुर्दान्त हत्याएं, लूटमार, चोरी, डकैती, मारपीट, विवादित जमीनें हथियाने, अनाधिकृत मकानों पर कब्जे, अवैध खनन जैसी अक्षम्य आपराधिक घटनाएं पुलिस विभाग की मिलीभगत, असावधानी व लापरवाही की ही सूचक है, विभाग में व्याप्त भ्र्ष्टाचार की ओर भी संकेत करती है जहां पुलिस विभाग ही मुखबिरी का भी काम करने में लगा है। कुछ चंद भृष्ट कर्मी अपने साथ समाज के रक्षक पूरे पुलिस विभाग व ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ कर्मठ पुलिस अधिकारियों, सिपाहियों को भी कलंकित करने का काम कर रहे हैं। देश के राजनेता जिन्हें देशभक्ति से जोड़कर देखा जाता है, उनमें से कुछ की इन अपराधियों को संरक्षण देने जैसी अनपेक्षित घृणित प्रवृति भी पूरे राजतंत्र पर उंगली उठ जाने के दोषी है, जवाबदेह हैं। देश का कानून भी जब शासन, प्रशासन व नौकरशाही के दबाव में उनके हाथ की कठपुतली बनकर उनके अनुसार अपराधियों को बचाने की दृष्टि से फैसला देती है। तो प्रश्न उठता है। यदि कोई आम जनता से जाने अनजाने या किसी विवशता वश छोटा सा भी अपराध हो जाये तो उसके पीछे पुलिस, नेता व कानून इस कदर पड़ जाते हैं कि उसका जीवन ही नर्क बना देते है। बिना उसकी विवशता जाने, बिना अपराध की मात्रा जाने, बिना उसकी पारिवारिक सभ्य पृष्ठभूमि जाने ऐसी सजा सुनाएंगे कि वह मर जाने को ही विवश हो जाये। यह विडंबना है, विसंगति है हमारे समाज की। जिस पर आवाज उठनी चाहिए।
इस तरह के विभागीय मुखबिरी के दम पर होने वाले जघन्य अपराध पुलिस विभाग के लिए तो चुल्लू भर पानी में डूब मरने के समान हैं ही, सभ्य समाज व नागरिकों के लिए भी इसे पचा पाना आसान नहीं। सभी के मनोमस्तिष्क में एक यक्ष प्रश्न खड़ा है कि क्या ऐसा भी होता है कि किसी भी पद प्रतिष्ठा से रहित मात्र आपराधिक प्रवृति के कारण कोई व्यक्ति इतना प्रभावशाली हो सकता है कि पुलिस विभाग को चुनौती दें, धमकाए, मारने की हिमाकत करे। इतने गुर्गे पाल ले जो दिनरात उसकी जी हुजूरी करें। जो उसकी न माने उसकी हत्या कर दे और कानूनी पकड़ से दूर बेखौफ घूमता रहे। यदि किसी दबाव में जेल में बंद भी हो तो जमानत पर छूट जाए फिर सीना तान कर पूरी अकड़ के साथ पूर्ववत अपराध जगत में सक्रिय रहे। अपनी खौफनाक पहचान, अपने रसूख के दम पर अपने गुर्गों की संख्या बढ़ाता चले, अपना अपराधिक साम्राज्य बढ़ाता चले। राजनेताओं को खरीद लेता है, वकीलों को अपने पक्ष में कर लेता है, कानून से खिलवाड़ करता है, पुलिस-प्रशासन अपनी मुट्ठी में रखता,बेरोजगार युवाओं को पैसे का, रसूख का लालच देकर, बरगलाकर उनकी फौज तैयार कर लेता है। सबको अपने इशारे पर नचाता है।इन्ही सबकी छत्रछाया में यह अपराध जगत फलता फूलता है। यह परिदृश्य पूरी व्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है। इन सबके के बाद यदि पुलिस अपराधियो का एनकाउंटर भी करती है तो वह भी प्रश्न के घेरे में आ जाता है। क्योंकि यदि अपराधी बच गया तो उसका सहयोग करने वाले, उसकी सरपरस्ती करने वाले,उसको संरक्षण देने वाले नेता, पुलिस, वकील व कानून, उसके साथी गुर्गे सभी के ऊपर से पर्दा हटेगा और सभी कानून व समाज की अदालत में बेनकाब होंगे, उनकी मान प्रतिष्ठा सभी पर दाग लगेगा। लोगो की दृष्टि में इसी से बचने के लिए जानबूझ कर जब कोई और रास्ता नहीं बचता तो अपराधी का एनकाउंटर कर दिया जाता है। इस कलंक से बचने के लिए व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त रहना चाहिए।
क्या इन्हें मनोरोगी की श्रेणी में रखा जा सकता है। क्योकि यह महिलाओं की इज्जत से भी खिलवाड़ करने में नहीं हिचकते। किसी महिला व उसके परिवार वालो को डरा धमका कर, अपने जैसे शातिर खूनी अपराधी के साथ विवाह करने को विवश कर, न मानने पर महिला को जबरिया भगा ले जाये, अपने साथ रहने को विवश कर दे व फिर अपने रुतबे के दम पर दबाव में लेकर उसे भी अपनी आपराधिक गतिविधियों का भागीदार बना दे।
अपने नजदीकी परिवार व मिलने वालों को भी अपने रसूख दिखाकर, डरा धमका कर, कुछ लालच देकर अपराध की दुनियां में ले आये।वारदात से मात्र कुछ दिन पूर्व ही अपने ही एक अपराधी खूनी हत्यारे से किसी सभ्य परिवार पर दबाव बनाकर उसकी सुशील बेटी का विवाह जबरदस्ती अपने रुतबे के दम पर कराया जो मात्र एक हफ्ते बाद ही विधवा हो गयी। इस तरह के कृत्य तो नितान्त अमानवीय हैं। अपराध करते करते, नकारात्मक जीवन जीते जीते कुछ तो मस्तिष्क असंतुलित होता ही होगा कि गलत-सही में अंतर न कर सके।स्वयं की आत्मा की आवाज़ न सुन सके, स्वयं के साथ न्याय न कर सके।
राजनीति और अपराध का साथ भी कुछ कम उल्लेखनीय नहीं है। चूंकि राजनीति ही एक ऐसा क्षेत्र हैं जहाँ अपात्र भी चुनाव लड़ सकता है।पात्रता का कोई मानदण्ड नहीं।किसी भी शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता नहीं,किसी चरित्र प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं, आयु का कोई बंधन नहीं,किसी भी निवास प्रमाणपत्र या पहचानपत्र की आवश्यकता नहीं। बस कुछ जमानत राशि जमा करिए, नामांकन कराइए और चुनाव लड़िये।फिर अपने पैसे, अपने प्रभाव के दम पर जोड़गाँठ करिए, मतदाताओं की खरीद फरोख्त करिए, उन्हें लालच देकर खरीदिये, उन्हें भरमाइये, झूठ-सच कैसी भी बातों के जाल में फ़साइये और वोट पाइए। पार्टी से टिकट न मिले तो निर्दलीय ही लड़ जाइये। चुनाव आयोग कोई आपत्ति नहीं करेगा।
राजनीति में घुसने की इन्ही ढुलमुल नियमों के चलते अपराधी जब अपराध की दुनियां में नाम कमा लेता है, कानूनी पकड़ से बचता रहता है तो वह स्वयं को विजेता मान बैठता है।तब उसके अंदर राजनेता बनने का ही कीड़ा कुलबुलाता है। क्योंकि और किसी क्षेत्र के वो लायक ही नहीं होता।
बात करते हैं, मीडिया की। इन घटनाओं को समाज के समक्ष लाने में हमारी मीडिया का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। वह किस तरह किसी मुद्दे को उछालती है और दूसरे को दबा देती है। कहते हैं मीडिया भी दबाव में रहती है। जबकि हमारे संविधान का चौथा स्तंभ कही जाने वाली मीडिया का समाज में सुव्यवस्था बनाये रखने में उतना ही बड़ा उत्तरदायित्व है जितना उपर्युक्त अन्य विभागों का। मीडिया को चाहिए कि वह समाज में घटी किसी भी घटना की सूचना उसी रूप में दे। न उसमें ऊपर से कोई मसाला लगाए न ही उसे दबाए। बाकी उसके औचित्य, अनौचित्य का निर्णय कानून करेगा।
समाज को आतंक, अपराधों से मुक्ति दिलाने के लिए हमारे राजतंत्र, प्रशासनिक विभाग, पुलिस विभाग, हमारी कानून व्यवस्था व हमारी मीडिया को अपनी भूमिका ईमानदारी से निभानी होगी। अपराध को प्रश्रय नहीं बल्कि अपराध की जड़े काटनी होंगी। ताकि अपराध फलने फूलने के बजाय नेस्तनाबूद हो। अपराधी अपराध करने से डरे। यदि अपराध हो तो कानून उन्हें उनके अपराध के मुताबिक कड़ी से कड़ी सजा दे, गवाह न मिलने पर भी उन्हें बरी न किय्या जाये।क्योकि बड़े अपराधी के खौफ से कोई गवाही नहीं देता और अपराधी छूट जाता है।वह कानून की नज़र में बेगुनाह साबित हो जाता है और फिर और भी बड़े अपराध करने को सजे हौसले बुलंद हो जाते हैं। जिसकी सजा फिर समाज को, समाज की निर्दोष, मासूम जनता को भुगतनी पड़ती है। हमें जागरूक रहने की आवश्य्कता है, हमारी व्यवस्था को जाग्रत रहने की महती आवश्यकता है। वह चिन्तन करें फिर इसे स्वयं तार्किकता, न्याय व औचित्य की कसौटी पर कसे। जयहिन्द
लेखिका -डॉ० कुसुम सिंह (अविचल)
वरिष्ठ साहित्यकार, लेखिका कानपुर नगर