विडंबना देखों जो खुद अपने कंधे पर हल लेकर चलता है उसकी समस्याओं का आज हल नहीं निकल रहा है। अभी लॉकडाउन में सभी उद्योग बंद हो गए, सभी लोग अपने घरों में बैठ गए लेकिन किसान अपना कार्य अनवरत कर रहे है पूरे देश को अन्न उपलब्ध करा रहे हैं फ़िर भी आज किसान की हालत दयनीय है?
हर बार टूटी हुई माला की तरह किसान की किस्मत बिखर जाती हैं, कभी बारिश ना हो तो फसल पानी की कमी के कारण नष्ट हो जाती हैं और कभी ज्यादा बारिश हो जाए तो भी नष्ट हो जाती हैं।
यहाँ पर सब लोगों को काले धन और भ्रष्टाचार की चिंता है लेकिन किसी को भी किसान के फसल की चिंता नहीं हैं। बड़े-बड़े आंदोलन करते हैं मंदिर मस्जिद को लेकर लेकिन किसान की शिकायत कहीं पर नहीं जाती।
सोशल मीडिया पर ही सिर्फ जय जवान जय किसान की बात को दोहराया जाता है यथार्थ में किसानों की समस्या से किसी को कोई लेना देना नहीं है। अन्नदाता ही यथार्थ जीवन में ईश्वर कहलाता है लेकिन इस ईश्वर पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है।
जहाँ आधुनिकीकरण आज अपने नए नए अन्वेषण से दुनियाँ को प्रभावित कर रही है वहीं लोगों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर रही है क्योंकि इस आधुनिकता में फसल को प्राकृतिक ढंग से नहीं उगने दिया जा रहा है बल्कि तेज़ी से विकसित करने के लिए हानिकारक तत्वों का समावेश कर दिया जाता है जिससे शरीर को नुकसान पहुंचना अवश्यंभावी हैं। आज सत्ता प्राप्त हर व्यक्ति चुनावी वादों को भूल जाता है और किसानों की समस्याओं का समाधान कोई भी नहीं कर पाता। कृषि प्रधान देश में भी किसानों के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध ना होना ताज्जुब की बात है, वैसे तो बहुत सारे समुह स्थापित हो जाते हैं लेकिन उनसे किसानों को कोई भी लाभ नहीं मिल पा रहा है। देश की अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा किसानों का योगदान है।
देशभर में किसानों के असंतोष का सबसे बड़ा कारण उनकी उपज का सही मूल्य न मिलना रहा है और यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है। किसानों की समस्याएँ कोई नई नहीं हैं; लेकिन उनके समाधान की ईमानदार कोशिशें होती कभी नज़र नहीं आईं। किसानों द्वारा आत्महत्या करने की खबरें भी पिछले कई वर्षों से चर्चा में हैं। लेकिन केवल आश्वासन ही मिलता है।
कवि दशरथ प्रजापत