कानपुर, जन सामना ब्यूरो। मधुमेह का प्रभाव बहुत बड़ा है, खासकर जब यह बचपन या किशोरावस्था में होता है। यह बच्चों और किशोरों में सबसे आम पुरानी बीमारीयों में से एक है। टाइप-1 मधुमेह होने पर सभी को शुरू से ही इंसुलिन की आवश्यकता होती है। इसके निदान व उपचार में किसी भी कारण से देरी की वजह से इंसुलिन की गंभीर कमी मधुमेह केटेाऐसिडोसिस के रूप मे बुलाया जाता है। जिसकी वजह से मौत भी हो सकती है।
इस बारे में कानपुर चिलड्रेन सेन्टर के डा0 रिषी शुक्ला, हेड चेंजिंग डायबिटिज ने कहा कि यदि समय पर निदान और ठीक से इलाज मिले तो टाइप-1 मधुमेह के बच्चों व व्यस्को को सामान्य व्यक्तियों की तरह ही जीवन में आगे बढ़ते हैं और सफल होते हैं। यह उचित समय है कि हम विशेष रूप से बच्चों में मधुमेह के प्रबंधन के लिए सामूहिक रूप से काम करते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि साधारण प्रयासों के द्वारा बहुत ही अच्छी तरह से काम कर सकते हैं। दीपक और सूर्य (नाम बदला हुआ) दो बच्चों में टाइप-1 मधुमेह का निदान किया गया जब वे 8-9 साल के थे। इन दो बच्चों के जीवन कहानी स्पष्ट रूप से माता-पिता, शिक्षक, समाज और स्वास्थ्य देखभाल की टीम के सामूहिक प्रयास के द्वारा बच्चो के जीवन के जीवन में एक बड़ा अंतर ला सकता है। बच्चे में टाइप-1 मधुमेह निदान न केवल बच्चे के लिए बल्कि पूरे परिवार के लिए एक बहुत बड़ा झटका है और तनाव लाता है। दीपन में टाइप-1 मधुमेह का निदान किया गया था, स्थिति अलग नहीं थी। माता-पिता को इस हद तक डर था कि वे स्कूल में अकेले दीपक को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे।
दीपक के स्कूल कि प्रिसिंपल एक बहुत ही अच्छी शिक्षिका थी उन्होंने दीपक के माता-पिता को सलाह दी, कि टाइप-1 मधुमेह के बारे में जानकारी प्राप्त करें और दीपक को प्रेरित करें कि वह अच्छी तरह से अध्ययन करने और सभी स्कूल की गतिविधियों में भाग ले। शिक्षिका दीपक को स्कूल में वसीम अकरम बुलाती थीं क्योंकि वो क्रिकेट बहुत अच्छा खेलता था। वसीम अकरम टाइप-1 मधुमेह है। आज दीपक भारत के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग काॅलेज में से एक में अध्ययप कर रहा है। इसके विपरित सूय्र का एक और मामला है, उसके माता-पिता को दोहरे सदमें का सामना करना पड़ा जब उन लोगों को टाइप-1 मधुमेह के बारे में पता था और दूसरी ओर शिक्षकों ने सूर्य की माँ से कहा कि हर वक्त वो सूर्य के साथ रहते क्योंकि वो
उसकी जिम्मेदारी नहीं ले सकते। इन सब वजह से उसके ग्रेड नीचे गिरते चले गये। उसको स्कूल की गतिविधियों में शामिल होने या वार्षिक समारोहों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी। आज सूर्य एक स्कूल ड्राॅप आउट है और उसके पिता पर निर्भर है। इन दोनों के वास्तिव कहानियों में मैं आग्रह करता हूँ कि सभी शिक्षकों से अनुरोध है कि इन्हें अभियान का हिस्सा
समझते हुए टाइप-1 मधुमेह के बच्चों की उनके जीवन में आगे बढ़ने और उनके जीवन के लक्ष्य को पाने में मदद करें। यह एक तथ्य है कि शिक्षकों को शिक्षा के लिए बेहद योगदान दें और हर व्यक्ति के लिए सीखने के द्वारा समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। इसलिए यह उचित है कि एक महत्वपूर्ण समूह निदान और इस प्रकार के बच्चों मे ंटाइप-1 मधुमेह के प्रबंधन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर जागरूक हों। शिक्षक को जल्दी पता लगाने और इस तरह समय पर देखभाल के क्षेत्र में एक बच्चा जो वजन तेजी से खो रहा है, प्यास और भूख भी अक्सर महसूस कर रहा है, अक्सर शौचालय जाने की जरूरत महसूस कर रहा है तब वह चिकित्सा जाँच के द्वारा उस बच्चे कि मदद कर सकती है। एक टाइप-1 मधुमेह बच्चे के साथ निदान के लिए अच्छाा हो सकता है, जब वे सुरक्षित और सहायक स्कूल के वातावरण में जीवन में आगे बढ़ने के लिए मिलता है। माता-पिता और स्वास्थ्य देखभाल टीम मधुमेह पर देखभाल के विभिन्ना पहलुओं पर स्कूल में शिक्षकों और अन्य सहयोगी स्टाफ को शिक्षित करने की जिम्मेदारी है। एक नियमित आधार पर किया जाना चाहिए क्योंकि बच्चे को केवल नए वर्गों के लिए नहीं बल्कि बच्चों को सम्पूर्ण वर्गों के ज्ञान के लिए तैयार किया जाना चाहिए और यह तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है।
महत्वपूर्ण जानकारी की आवश्यकता:-
1.बच्चों को मधुमेह और उसका/उसकी दवा के बारे में सामान्य जानकारी।
2.हाईपोग्लेसिमिया या हाईपरग्लेसिमिया के बारे में जानकारी।
3.मधुमेह पर आहार के प्रभाव और व्यायाम के बारे में जानकारी।
4.सदि सम्भव हो तो, व्यावहारिक इंसुलिन का इंजेक्शन और रक्त शर्करा के स्तर की जाँच के बारे में जानकारी।
5.बच्चे पर मधुमेह के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव।
6.हाईपोग्लेसिमिया के मामले में इंसुलिन, सुई ग्लूकोमीटर, स्ट्रिप्स और भोजन की तरी मधुमेह के पबंधन के लिए
पर्याप्त आपूर्ति के साथ स्कूल स्टाफ के सहायक।
7.एक आपात स्थिति के मामले में आपातकालीन संपर्क नंबर प्रदान करके स्कूल का समर्थन करें। स्कूल की जिम्मेदारी मधुमेह के साथ बच्चों सहित हर बच्चे के विकास के लिए शिक्षा और समाज अक्सर उपलब्ध करायें। शिक्षक मधुमेह के प्रबंधन मे बच्चे का समर्थन कर सकते हैं और इस में शामिल होना चाहिए।
1. शिक्षक अनुमति दे बच्चे हाईपोग्लेसिमिया को रोकने के लिए एक नाश्ता कर सके।
2.बच्चे तीव्र हाईपरग्लेसिमिया के मामले में अक्सर पेशाब के लिए बाथरूम का उपयोग करने की अनुमति दें।
3.बच्चे के रक्त शर्करा के स्तर की जाँच करें और इंसुलिन लेने की इजाजत दें।
4.जब जरूरत पड़े तब बच्चे को हार्ड कैंडी/रस देकर हाईपोग्लेसिमिया क उपचार में बच्चे का समर्थन करें।
5.माता-पिता और बच्चे के डाॅक्टर के संपर्क में रहें।
इन छोटे प्रयासों मधुमेह के साथ कई बच्चों के जीवन में बहुत बड़ा फर्क आता है और उन्हें आत्मनिर्भर स्वतंत्र और उपयोगी योगदान देने में समाज की मदद कर सकते हैं।