Sunday, November 24, 2024
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नारी के उत्थान के सपने सिर्फ नारी विमर्श से नही संजोये जा सकते

portal head web news2जालौन, जन सामना ब्यूरो। आधुनिक परिवेश में अधिकांश लेखकों द्वारा नारी विमर्श पर सृजन किया जा रहा है जो कि नारी उत्थान का इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में रचने में अहम भूमिका निभा सकता है। लेकिन अभी तक के अपने चिर-परिचित अनुभवों को आधार बनाकर यह कहना बिल्कुल भी अनुचित नही होगा कि नारी उत्थान के सपने सिर्फ नारी विमर्श पर लेखन से नही सजोये जा सकते है बल्कि ये लड़ाई ये मुहिम नारी के अधिकारों की है तकदीर एवं तस्वीर बदलने की है तो मुझे लगता है कि इस दिशा में सफलता हासिल करने के लिये सर्वप्रथम नारी को जागरूक होने और अपने अधिकारों को जानने की आवश्यकता है तभी ये लेखन एक सार्थक लेखन सिद्ध हो सकता है हालाँकि इस बात में भी कोई कसर नही है कि लेखन ने समाज को दिशा और दशा दी है इसलिये नारी विमर्श पर हो रहा सृजन भी कंही न कंही महत्वपूर्ण है। इस पर विश्लेषण करते हुये मुझे अपने महाविद्यालय की एक घटना याद आ रही है विगत छात्रसंघ चुनाव में छात्र संघ अध्यक्ष पद पर दो प्रत्याशियों द्वारा नामांकन किया गया था जिसमें एक छात्र उम्मीदवार और एक छात्रा उम्मीदवार थी महाविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में मतदान करने वाले विद्यार्थियों की संख्या में छात्राओं की संख्या लगभग 80 प्रतिशत थी जबकि छात्रों की संख्या को लेकर यह कहा जाये कि रायते में जीरे के बराबर तो गलत नही होगा। छात्राओं की कई गुना संख्या ज्यादा होने के बावजूद भी छात्र प्रत्याशी की एकतरफा जीत और छात्रा प्रत्याशी की करारी हार नारी एकता पर सवालिया निशान लगाने का काम कर रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि नारी शक्ति के बीच अभी जागरूकता का अभाव है । अभी हाल ही में एक साहित्यिक समारोह में भी नारी अपने अधिकारों के प्रति नारी कितनी जागरूक है इसका ज्वलंत उदाहरण यहां देखने को मिला। समारोह में नारी विमर्श का सत्र आयोजित हो रहा था मंच पर करीब एक दर्जन वक्ताओं की मौजूदगी थी जिनमें तीन पुरुष वक्ता वाकी नारी वक्ता थीं सत्र धीरे-धीरे अपनी मंजिल की ओर बढ़ा और नारी विमर्श पर अपने व्याख्यान देने को मंच पर मौजूद नारी वक्ता नारी विर्मश और नारी सशक्तिकरण को लेकर वास्तविक जीवन में कितनी गम्भीर है इस बात से भी इसी सत्र के दौरान रु-ब-रु होने का अवसर मिला। हुआ यूं कि अपने संबोधन में नारी सशक्तिकरण और नारी विमर्श को लेकर बड़ी बड़ी बातें करने वाली अधिकांश नारी वक्ता द्वारा मंच की गरिमा को ठेस पहुँचाते हुये अपना वक्तव्य कुछ मिनटों में देने के बाद मंच से नौ दो ग्यारह हो लिये। सवाल ये उठता है कि क्या ऐसे ही होगा नारी सशक्तिकरण? क्या ऐसे ही होगा नारी विमर्श सार्थक? क्या ऐसे ही आएगी नारियों में अपने अधिकार के प्रति जागरूकता? नारी विमर्श और नारी सशक्तिकरण पर सिर्फ बोलने और सृजन करने से कोई प्रभावशाली परिणाम प्राप्त करने का सपना देखना आसमान से तारे तोड़ लाने जैसा लग रहा।