Sunday, November 24, 2024
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हैवरा में आयोजित मेले में हुआ सरमन बाबू का ढोला मंचन 

2017.04.18 01 ravijansaamnaराजा नल दयमंती की औखा की लीला देखकर दर्शको की आंखों से निकले आंसू।
सैफई, इटावा, जन सामना संवाददाता। सैफई क्षेत्र के ग्राम हैवरा में सरमन बाबू का ढोला मंचन का कार्यक्रम हुआ जिसमे राजा नल की औखा की लीला की मंच पर प्रस्तुति दी गयी। दर्शकों ने सुबह तक ढोला का आनंद लिया। ढोला कार्यक्रम का उदघाटन सपा नेता योगेंद्र यादव ने फीता काटकर किया। उन्होंने कहा कि मेला का आयोजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से लोक संस्कृति व सामाजिक एकता को बढ़ावा मिलता है। राज्य सरकारों को भी छोटे छोटे आयोजनों के लिए जिले स्तर से सहयोग कराया जाना चाहिए। रात्रि में आयोजित ढोला कार्यक्रम के मुख्य अतिथि योगेंद्र यादव, मुख्य  कलाकार सुखवीर सिंह, का ग्राम प्रधान बीर सिंह जाटव ने स्वागत किया। उसके बाद ढोला मंचन का कार्यक्रम हुआ जिसमें देवताओं द्वारा ली गयी परीक्षा में राजा नल और दयमंती खरे उतरे।

तमाम दुख झेलने के बाद उन्हें उनका राज्य मिल गया। भीष्मक नाम के एक राजा थे। उनकी पुत्री का नाम दमयन्ती था। उन्ही के पड़ोसी देश निषध के राजा बीरसेन के पुत्र नल थे। दमयन्ती का स्वयंवर हुआ। जिसमें न केवल धरती के राजा, बल्कि देवता भी आ गए। नल भी स्वयंवर में जा रहा था। देवताओं ने उसे रोककर कहा कि वो स्वयंवर में न जाए। उन्हें यह बात पहले से पता थी कि दमयंती नल को ही चुनेगी। सभी देवताओं ने भी नल का रूप धर लिया। स्वयंवर में एक साथ कई नल खड़े थे। सभी परेशान थे कि असली नल कौन होगा। लेकिन दमयंती जरा भी विचलित नहीं हुई, उसने आंखों से ही असली नल को पहचान लिया। सारे देवताओं ने भी उनका अभिवादन किया। इस तरह आंखों में झलकते भावों से ही दमयंती ने असली नल को पहचानकर अपना जीवनसाथी चुन लिया। नव-दम्पत्ति को देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हु्आ। दमयन्ती निषध-नरेश राजा नल की महारानी बनी। दोनों बड़े सुख से समय बिताने लगे। दयमंती पतिब्रता थी तो राजा नल भक्ति में लीन रहने वाले थे। किन्तु उनमें एक दोष था।—जुए का व्यसन। नल के एक भाई का नाम पुष्कर था। वह नल से अलग रहता था। उसने उन्हें जुए के लिए आमन्त्रित किया। खेल आरम्भ हुआ। भाग्य प्रतिकूल था। वह सब कुछ हार गए। इधर नल जुए में अपना सर्वस्व हार गये और बन में दयमंती के साथ चले गए वहां दमयन्ती को सोते हुए छोड़ कर वे चल दिये। जब दमयन्ती की नींद टूटी तो बेचारी अपने को अकेला पाकर करुण विलाप करने लगी। भूख और प्यास से दैवयोग से भटकते हुए दमयन्ती एक दिन चेदिनरेश सुबाहु के पास और उसके बाद अपने पिता के पास पहुँच गयी। अंततः दमयन्ती के सतीत्व के प्रभाव से एक दिन महाराज नल के दुःखो का भी अन्त हुआ। दोनों का पुनर्मिलन हुआ और राजा नल को उनका राज्य भी वापस मिल गया।