राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार जिस तरह उत्तर प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस का सफाया हो गया और उसके बाद भी यह तय न हीं हो पा रहा है कि आखिर ऐन चुनाव के मौके पर सपा से गठबंधन क्यों और किसकी सलाह पर किया गया, उससे कार्यकर्ताओं में भारी बैचेनी व्याप्त होना स्वाभाविक ही है। कार्यकर्ताओं में कितनी बेचैनी व गुस्सा व्याप्त है उसका नमूना रविवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में करारी हार के लिये समीक्षा बैठक में देखने को मिला। प्राप्त खबरों के अनुसार रविवार को प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यालय में बुलाई गई बैठक में 12 मंडलों के कांग्रेसियों ने खूब भड़ास निकाली और सपा से गठबंधन करने के फैसले पर प्रश्न खड़े किए। जिला व शहर अध्यक्षों के साथ संबंधित मंडलों के प्रभारी भी इस बैठक में मौजूद थे। इक्का-दुक्का अध्यक्षों को छोड़ दें तो अधिकतर ने सपा से हाथ मिलाने को आत्मघाती बताया। उनका कहना था, सपा सरकार के विरोध में बने वातावरण को भांपने में कांग्रेस के रणनीतिकार असफल साबित हुए। अंतर्कलह में उलझी समाजवादी पार्टी की डूबती नाव में सवारी कर लेने से भविष्य के समीकरण भी गड़बड़ाएंगे। पूर्वाचल के एक जिलाध्यक्ष ने स्पष्ट कहा कि गठबंधन कराने के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए। बुंदेलखंड के एक नेता ने सीटों के बंटवारे और टिकटों के निर्धारण में संदिग्ध भूमिका निभाने वालों को चिह्न्ति करने की मांग की। एक जिला अध्यक्ष ने गठबंधन के फैसले में प्रियंका गांधी का नाम घसीटे जाने को उनकी छवि खराब करने की साजिश बताया। कहा कि राहुल गांधी की किसान यात्रा से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनने लगा था लेकिन गठबंधन प्लान से पूरी मेहनत पर ही पानी फिर गया। सूत्रों के अनुसार दो घंटे से अधिक चली इस समीक्षा बैठक में सिवाय लीपापोती के और कुछ भी परिणाम सामने नहीं आया। उत्तर प्रदेश के प्रभारी व पार्टी के महासचिव गुलाम नवी आजाद ने कार्यकर्ताओं के गुस्से को ठंडा करने की नीयत से सिर्फ लीपापोती करने की ही कोशिश की है। उनमें सच उजागर करने की हिम्मत नहीं दिखी कि आखिर सपा से गठबंधन का निर्णय किसने और क्यों कर लिया था। हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर ने जरूर कुछ हिम्मत दिखाने की कोशिश की पर अंतत: वह भी सच का खुलासा नहीं कर सके। शब्दों के जाल में कार्यकर्ताओं को उलझाते हुये कहा कि यह सही है कार्यकर्ताओं की भावनाओं के अनुरूप गठबंधन के विरोध में वह हाईकमान को तैयार नहीं कर सके। सूत्रों के अनुसार हद तो तब हो गई जब कार्यकर्ताओं के हर बार यह पूछे जाने पर कि जल्द ही होने वाले नगर निकाय के चुनाव में कांग्रेस सपा से मिलकर चुनाव लड़ेगी अथवा अलग-अलग तो राज बब्बर स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाये। उन्होने इतना ही कहा कि इसका निर्णय समय पर लिया जायेगा और कार्यकर्ताओं के विचारों को ध्यान में रखा जायेगा। पता चला है कि उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं की खासकर गुलाम नवी आजाद व राज बब्बर से किस कदर नाराजगी है इसका एक और उदाहरण सामने आया है। इन सभी का आरोप है कि श्री आजाद और राज बब्बर ने श्री गांधी को बहकाकर कांग्रेस सपा गठबंधन करवाया और पार्टी की फजीहत हुई। ये सभी चाहते है कि श्री आजाद या श्री बब्बर में से किसी एक को गोरखपुर से लोकसभा का उपचुनाव लडऩा चाहिये तब इन्हे कार्यकर्ताओं के दर्द का एहसास हो जायेगा। राजनीति के जानकार सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के पास अब न ही कोई दूरदृष्टि वाला स्पष्ट वादी नेता बचा है और न ही राहुल गांधी में नेतृत्व की क्षमता है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की निष्क्रियता से पार्टी को लगातार पराभव का सामना करना पड़ रहा है। बताते है कि श्री गांधी की सबसे बड़ी कमजोरी उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता है। वह बाते तो सभी निर्णय सामूहिक रूप से व कार्यकताओं की सलाह पर लेने की करते है पर सभी निर्णय खुद ही कुछ चाटुकारों की सलाह पर कर लेते है। यदि ऐसा न होता तो भला उत्तर प्रदेश चुनाव में ऐन मौके पर सपा से गठबंधन कैसे हो पाता। राजनीति के जानकार ही नहीं कांग्रेस के अनुभवी नेता भी स्वीकारते है कि ऐन समय पर सपा से गठबंधन करना राहुल गांधी की एक बड़ी राजनीति भूल व नासमझी थी और ऐसा उन्होने उस किराये के रणनीतिकार के कहने पर किया जिसे राजनीति का ककहरा भी नहीं आता। सूत्रों ने साफ कहा कि यदि प्रशांत किशोर के पास कोई ठोस रणनीति होती तो वो ऐसा कदापि न करते। उन्होने ऐसा स्वयं असमंजस के चलते किया। बताते है कि जब उसकी किसानों को लुभाने के लिये शुरू की गई खाट सभा एक के बाद एक असफल होने लगी तो उसका भरोसा भी डगमगा गया। चूंकि उधर सपा में अंदरूनी खटपट चरम पर थी तो उसने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से सम्पर्क साध उन्हे भी यह समझाने में सफलता प्राप्त कर ली कि सपा कांग्रेस का गठबंधन तीन सौ से अधिक सीटे जीत सकता है। उसने उन्हे बिहार की जीत के पीछे का अपना आजमाया फार्मूला भी बताया। नि:संदेह इसी के बाद श्री गांधी व श्री अखिलेश के बीच गठबंधन के लिये सहमति बनी थी। जबकि यह सौ फीसदी सच है कि खासकर उत्तर प्रदेश का कोई भी नेता व कार्यकर्ता नहीं चाहता था कि कांग्रेस सपा से चुनावी गठबंधन करें। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यदि जल्द ही राहुल गांधी ने साहस से सपा से गठबंधन की भूल न स्वीकारी व आगे अलग होकर चुनाव लडऩे का ऐलान न किया तो कांग्रेस का रहा सहा जनाधार भी मिटने में शायद ही देर लगे। उपरोक्त सूत्रों का यह भी कहना है कि श्री गांधी को जल्द ही उच्च स्तरीय उन खांटी कांग्रेसियों की एक कमेटी गठित करना चाहिये जो स्पष्टवादिता के लिये जाने जाते है और जिनमें वास्तव में पार्टी के प्रति समर्पण भाव है। यदि उन्होने चाटुकार संस्कृति से छुटकारा पाने का जज्बा न दिखाया तो भविष्य में कांग्रेस का सूर्यास्त होने से कोई रोक नहीं पायेगा। – शिवशरण त्रिपाठी