Saturday, June 7, 2025
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अहं परिवार का शत्रु

क्या मेरा कामकाजी होना मेरे परिवार और स्वयं मेरे लिए अभिशाप है। यदि नहीं तो फिर मैं क्यों सदैव तनाव में रहती हूं। जीवन में हंसी, स्नेह एवं सरसता के सारे स्रोत सूख से क्यों गए हैं? ऐसे अनेक प्रश्न मेरे जेहन में एक-एक कर उठते रहते हैं लेकिन न जाने क्यों मैं इनके समाधान तलाश नहीं कर पाती हूं।
मैं चाहे कितनी भी योग्य और बड़ी क्यों न बन जाऊं आखिर तो मैं उनके नियंत्रण में ही रहूंगी, मेरा यह बी. ए., एम.ए. पास होना, यह ऊंचा ओहदा, चार अंकों में मिलने वाली अच्छी खांसी तनख्वाह, यह रौब रुतबा, उस समय सब फीके लगते हैं जब घर में पहुंचते ही ‘मां जी’ मेरी किसी स्थिति का कोई मूल्यांकन किए बिना ही कह उठती है, ‘बहू आज कितनी देर कर दी तुमने आने में। जल्दी-जल्दी 5-7 आदमियों का खाना बना लो, वो आते ही होंगे……।
तब ऐसा लगता है कि जैसे मैं इस घर की पढ़ी-लिखी बहुरानी नहीं कोई खरीदी हुई नौकरानी हूं, तब अंदर ही अंदर टूटने लगती हूं। समझ में नहीं आता घर के सभी पुरुषों से ज्यादा कमाती हूं। ज्यादा पढ़ी-लिखी हूं। ईश्वर की कृपा से रंग रुप भी अच्छा है। फिर भी जब देखो ताने, व्यग्य, जली कटी….. सब के नाज-नखरे सहते-सहते मैं तो टूट गई हूं। जी चाहता है कि सबको मुंह तोड़ जवाब दूं……।
कामकाजी सैंकड़ों, हजारों महिलाओं, बहुओं, लड़कियों को आज इस प्रकार की मानसिकता में जीना पड़ रहा है। जिससे भी बात करो…..बससतही तौर पर जितनी शांत दिखाई देती हे, अंदर उतना ही भयानक असंतोष, विद्रोह दबा दिखाई देता है।वास्तव में अहं भावना से ग्रसित स्वाभिमानी महिलाओं का यह एक ऐसा वर्ग है जिसे न तो यथेष्ट मान-सम्मान ही मिलता है और न इनकी भावनाओं का सम्मान ही किया जाता है। जबकि इनके मन की सुपीरियरिटी काम्पलैक्स इनके शब्दों, कार्यों एवं व्यवहार में दिखाई इेता है। वास्तव में ये किसी से कम तो है नहीं, हां दूसरों से कुछ अधिक ही है। कामकाजी पढ़ी-लिखी सम्पन्न परिवारों की ये महिलाएं अपना स्थान आप बनाना चाहती हैं लेकिन पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था में न तो इन्हें सम्मान ही मिलता है और न वह प्रतिष्ठाही मिलती है, जिसे ये पाना चाहती हैं। कदम-कदम पर इनका उच्चता का प्रदर्शन जहां इन्हें तनावग्रस्त बनाता है, वहीं समन्वय और समझौतों के अभाव में पारिवारिक संबंधों की सरसता भी समाप्त होती जा रही है। परस्पर समझ का अभाव हमारे जीवन को 36 का आंकड़ा बनाए हुए है।
आर्थिक स्वतंत्रता ने हमारे विचारों और भावनाओं को प्रभावित किया है। आर्थिक स्वतंत्रता पाकर जहां स्त्रियों में आत्म विश्वास और आत्म निर्भरता आई है वहीं परिवार के अन्य सदस्यों में काम के अभाव में, बेरोजगारी के कारण हीन भावनाएं भी पैदा हुई हैं। इन हीन भावनाओं के कारण कभी-कभी परिवार में पत्नी के अनुचित व्यवहार को भी मान्यता मिल जाती है, किंतु इसका यह अर्थ नहीं समझना चाहिए कि स़्ित्रयों के इस व्यवहार को सामाजिक मान्यता ही प्राप्त हो गई है। कभी-कभी परिवार अथवा समाज में भी इस प्रकार का आचरण होने लगता है जो असामान्य होता है, लेकिन परिस्थितियों के कारण उसे मान्यता मिल जाती है लेकिन ऐसे व्यवहार की चर्चा तो होती ही है, अतः सामान्य रुप से स्त्रियों को ऐसे आचरण के प्रति सचेत रहना चाहिए।
परिवार की असामान्य स्थितियों के लिए पति-पत्नी को सोच समझकर निर्णय लेने चाहिए। यदि पति जिद्दी, सनकी अथवा असहिष्णु है, तो पत्नी को चाहिए कि वह ऐसे व्यक्ति की मानसिकता को समझे और परस्पर विचार करके कुछ निर्णय ले। परस्पर संबंधों में अविश्वास पैदा कर भय बताकर, भ्रामक धारणाओं के होते हुए जब आप कोई काम करेंगी, तो अविश्वास तो बढ़ेगा। वास्तव में हमें अपनी योग्यता और प्रतिभा का उपयोग पारिवारिक अपेक्षाओं को पूरा करने में करना चाहिए न कि अपनी योग्यता और प्रतिभा पर इतरा कर। यदि आप अपनी प्रतिभा, प्रभाव और योग्यता पर इतराती हैं, तो आप एक प्रकार से परिवार के साथ विद्रोह करती हैं। आप की प्रगति इसमें नहीं कि आपका परिचय क्षेत्र बढ़ रहा है, आप निरंतर प्रगति कर रही हैं, बल्कि इसमें है कि आप पारिवारिक हितों का कितना ख्याल रखती हैं।
आप की प्रगति में अप्रत्यक्ष रुप से आपका परिवार सहायक है। इसलिए आप अपने मन में किसी प्रकार की अहं भावनाएं न चालें। उच्चता का यह भ्रम आप को नीचा दिखा सकता ळे। पारिवारिक खुशी, सुख-समृद्धि विकास और निरंतर प्रगति के लिए परिवार के सभी सदस्यों में परस्पर स्नेह, विश्वास होना नितांत आवश्यक है, इसलिए अपने कमाऊपन अथवा कमाने पर उच्चता का भ्रम न पालें, न ही किसी पर अहसान लादें। अपने कमाने के इस व्यवहार को पारिवारिक अपेक्षाओं से ऊंचा न मानें। अपे अहं की संतुष्टि के लिए दूसरों का मजाक उड़ाना, अपनी उच्चता का प्रदर्शन करना, दूसरों की हीनता को उछालना, अपने किए हुए अहसानों की चर्चा करना, दूसरे की कमियों, दोषों अथवा कमजोरियों को कोसना, अपने भाग्यहीन होने का रोना-रोना आदि ऐसे आचरण हैं जिन्हें पारिवारिक हितों के लिए कभी भी चर्चा का विषय न बनाएं। अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करें आपके सामाजिक दायित्व ही आपके अहं को संतुष्टि प्रदान करेंगे। इसलिए अपने आप को परिवार से जोड़े और अपने से कमजोर लोगों की सहायता करें अपने आप को किसी भी धार्मिक, सामाजिक अथवा सांस्.तिक संस्था से जोड़े और समय का सदुपयोग करें।
हमेशा तनावग्रस्त रहना और हाय….हाय करना, दूसरों से बड़ी-बड़ी अपेक्षाएं करना और इन अपेक्षाओं के पूरा न होने पर दुःखी होना अच्छा नहीं। अपने आपको टूटने से बचाने का सबसे सरल उपाय है कि आप अपना मूल्यांकन आप करें और यह सोचे कि आप दूसरो के लिए ( अपने से कमजोरों के लिए) क्या कर रही हैं। आप पाएंगी कि कमी कहीं न कहीं आप में ही है। अतः उसे पूरा करें इस पूरा करने में अपनी सीमाएं जानें। यदि आप उन्हें पूरा कर सकती हैं, तो उन्हें अवश्य करें। अपने इस करने में यह न सोचें कि दूसरे यह क्यों नहीं करते।
परिवार में किसी भी बात अथवा विवाद को अपावश्यक तूल न दें और न ही अपने कामकाजी होने के नाते कुछ विशेषाधिकारों की उम्मीद करें बल्कि कभी-कभी कुछ बातों को जानकर भी अनदेखा कर दिया करें क्योंकि आपका मानसिक स्तर अन्य लोगों की अपेक्षा ऊंचा है। अपनी सोच, विचार और दृष्टिकोण को व्यापक बनाएं। अपने प्रतिकूल किसी भी व्यवहार अथवा टिप्पणीपर उत्तेजित न हों और न ही ईंट का जवाब पत्थर से दें। दूसरों के दिल में स्थान पाने के लिए दूसरों के गुणों, व्यवहारों और अच्छे आचरण की प्रशंसा अवश्य करें मर्यादित आचरण करें। कम बोलें, मधुर बोलें। परिवार के प्रत्येक सदस्य के प्रति समर्पित भावना से आचरण करें उसमें विश्वास प्रकट करें
परिवार को जोड़ने का यह आचरण तभी संभव है जब आप अहं छोड़कर सोचे कि टूटने से जुड़ना अधिक सरल है। अतः परिवार को जोड़ना सीखें परिवार स्वयं जुड़ जाएगा और आपके जेहन में उठते हुए सभी प्रश्नों का समाधान होने में समय न लगेगा।

-डाॅ. हनुमान प्रसाद उत्तम, कानपुर।