भारत देश अपने गणतंत्र होने की 72वीं वर्षगांठ मना रहा है तो इसी मौके पर भारत का किसान अपने हक की लड़ाई लड़ता दिख रहा है। यह सदैव स्मरणीय रहना चाहिये कि भारत के संविधान निर्माताओं, ब्रिटिश हुकूमत से मोर्चा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों व अनेकानेक क्रांतिकारियों ने देश के लिए जो सपने देखे थे उनकी पूर्ति करने का कार्य फलीभूत इसी दिन हुआ था, जिसमें देश के सभी वर्गो के लोगों की सुख-सुविधाओं और भावनाओं को संरक्षित करने की नीति-नियमावली बनाई गई थी। भारत को कल्याणकारी लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश घोषित किया गया था। नतीजा यह हुआ कि इस अवधि में आम आदमी का जीवन स्तर ऊंचा हुआ है, सुख-सुविधा के साधन बढ़े, जीवन दर में सुधार हुआ, आम देशवासियों का जीवन स्तर सुधरा है लेकिन हमारे लिए जितनी यह गौरव की बात है उतनी ही इन दिनों चिंता की बात भी दिख रही है। क्योंकि देश का किसान इन दिनों आन्दोलनरत है और उसे इस हद तक मजबूर किया गया जिससे कि हमारा गणतंत्र दिवस इस बार शर्मसार होता दिखा है।
रातनीति के खिलाड़ियों ने देश में ऐसे हालात पनपा दिये जिसने यह सवाल करने पर मजबूर कर दिया कि इस लोकतांत्रिक प्रणाली में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाल देश के किसान क्या संतुष्ट नहीं हैं? अगर संतुष्ट नहीं हैं तो इसका कारण क्या रहा है, और इसका मुख्य कारण क्या है?कुछ भी हो लेकिन इस बार गणतांत्रिक व्यवस्था में यह सोंचने पर मजबूर हुए है कि देश के किसानों को ही नहीं अपितु सभी वर्गो की भावनाओं को और मजबूत करने की आवश्यकता है अर्थात इस मौके पर प्रण लें हम अपने देश की लोकतांत्रिक प्रणाली को विश्व के लिये एक आदर्श के रूप में स्थापित करने की भावना के साथ कार्य करेंगे, अपने कत्र्तव्यों का पूर्ण निष्ठा के साथ निर्वहन करेंगे ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हम पर भी उसी भांति गौरव करें जैसे हम आज अपने महान पूर्वजों पर करते चले आ रहे हैं।