गम ए फुर्क़त उन्हें हम सुनाएं भी क्यों
दीदा -ए-तर सबको अपने दिखाएं भी क्यों
दिल जिनका बेखुशबू सा है गुलज़मी
रायगां ऐसी जगहों पर जाएं भी क्यों
तमाम खुशियां हैं जो करती हैं रौशन ये दिल
तेरे बेरूख़ी के अज़ाबों से दिल डराएं भी क्यों
जमाना निहायत नेक दिल को भी बख्सता नहीं
खुद को जमाने की बातों में हम उलझाएं भी क्यों
है काफ़ी मेरी मासुमियत तुझे जलाने के लिए
बेवजह मेरे अदू तुझसे टकराएं भी क्यों
जिन्हें नफरत के जंगल में है भटकना मंजूर
प्यार के चराग़ से उनको हम राह दिखाएं भी क्यों
फुर्कत-जुदाई, दूरी
दिदाए तर -आसुओं से भीगी आंखें रायगां- फ़िज़ूल में अदू- दुश्मन
बीना राय, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश