भारत देश ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व, पृथ्वी और उसके पर्यावरण की सुरक्षा हेतु विचाररत है, इसी लिए संकल्पबद्ध होकर पिछले 47 सालों से निरन्तर 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाता चला आ रहा है। यह स्मरण रहे कि वर्ष 1970 में पहली बार पूरी दुनिया ने पृथ्वी दिवस का शुभारम्भ एक अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के पर्यावरण संरक्षण के लिये किये गए प्रयासों को समर्थन देने के उद्देश्य से किया था। तब से जैसे यह एक विश्व परम्परा बन गई है और पृथ्वी दिवस ने हर देश के एक वार्षिक आयोजन का रूप ले लिया है। पर्यावरण की रक्षा के लिये भारत सहित कई देशों में कानून भी बनाए गए हैं, जिससे विभिन्न पर्यावरणीय असन्तुलनों पर काबू पाया जा सके। लेकिन पर्यावरण में प्रदूषण की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। क्योंकि पृथ्वी दिवस के सफल आयोजनों के बावजूद भी विश्व के औसत तामपान में हुई 1.5 डिग्री की वृद्धि, औद्योगिक उत्पादन के बढ़ने और अन्धाधुन्ध विकास कार्यों और पेट्रोल, डीजल तथा गैसों के अधिक इस्तेमाल के कारण काॅर्बन उत्सर्जन की बढ़ोत्तरी, ग्लेशियरों के पिघलाव और असन्तुलित भयंकर बाढ़ों और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाओं ने पृथ्वी का स्वरूप ही बदल दिया है। इससे लगता है कि पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ रहा है और यह विकराल रूप ले सकता है।
कुछ दिनों पहले आयी अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा की एक रिपोर्ट को मानें तो पृथ्वी का स्वरूप लगातार बदल रहा है। इस रिपोर्ट में नासा ने कुछ चित्रों को साझा किया था, जिनमें पृथ्वी के कुछ भागों में हुए आश्चर्यजनक बदलावों की ओर भूवेत्ताओं का ध्यान आकृष्ट कराया गया है। इसमें नासा ने पृथ्वी के अलग-अलग भागों के स्वरूपों में 1985 से 2016 के दौरान आये परिवर्तनों को दर्शाया है। इन परिवर्तनों के कारणों की मूल में वे ही मुद्दे हैं, जो पिछले कई दशकों से पर्यावरणविदों और भूवेत्ताओं के शोधों के दायरों को एक ओर बढ़ाते जा रहे हैं, लेकिन उनके कारक जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण या बाढ़ व आग लगने जैसे प्राकृतिक खतरों में सिमटे हुए हैं। नासा ने अपने एक आँकड़े के माध्यम से स्पष्ट किया है कि पिछले 25 वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका की ग्रेट साल्ट झील में अविश्वसनीय बदलाव देखने में आये हैं। यह ठीक नहीं कहा जा सकती है। नासा द्वारा इस झील के 1985 और 2010 में अलग-अलग लिये गए चित्रों से स्पष्ट होता है कि 1985 में हिम के पिघलने और भारी वर्षा के कारण यह झील पानी से लबालब भरी होती थी। परन्तु पच्चीस वर्षों के दौरान क्षेत्र में आये सूखे के प्रकोप के कारण यह झील भी सूखती चली गई। वहीं हमारे देश में भी कई नदियों का स्वरूप बदल चुका है। वहीं जल संचयन का प्रमुख स्रोत माने जाने वाले तालाबों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। शहरी क्षेत्र में तालाबों पर भूमाफियाओं की कुदृष्टि ने कहर बरपाया है तो ग्रामीण इलाकों में भी हालात ठीक नहीं दिख रहे। इस ओर ध्यान देना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है नहीं तो भयावह परिणाम झेलने के लिए तैयार रहे।