जीवनसाथी का मतलब क्या होता है, एक लड़की या स्त्री को क्या चाहिए? अच्छा घर, अच्छा पति, अच्छे सास- ससुर, दो बच्चे और दो वक्त का खाना और कपड़े। क्या सारी जरूरतें खत्म हो गई? यही है क्या स्त्री की जरूरतें।
नहीं ये बातें उस ज़माने की है जब लड़कीयाँ ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं होती थी, नौकरी और घर दोनों संभालने की ज़िम्मेदारी नहीं थी सिर्फ़ पति के उपर निर्भर रहती थी। दबी-दबी सहमी सी चुटकी सिंदूर के बदले खुद को गिरवी रख देती थी। टोटली टिपिकल बहू बनकर पति की हर बात पर कठपुतली सी नाचती थी। वैसे आज 21वीं सदी में भी कुछ स्त्रियों की हालत वही की वही है कुछ नहीं बदला।
कुछ पतियों के लिए चुटकी सिंदूर का मतलब स्त्री पर आधिपत्य जताने का लाइसेंस मात्र होता है। प्यार, परवाह और कदम-कदम पर पत्नी का हाथ थामकर चलने में कई मर्दो के अहं को ठेस पहुंचती है। पत्नी का साथ देने के चक्कर में कहीं लोग जोरू का गुलाम ना समझ बैठे ये सोचकर कतराते है पत्नी का साथ देने में और सम्मान करने में।
पति शब्द का मतलब बहुत-सी हिन्द-ईरानी भाषाओं में ‘स्वामी’ या ‘मालिक’ के लिए किया गया है। स्वामी होने का मतलब ये हरगिज़ नहीं की अधिष्ठाता बनकर पत्नी पर रोब जमाओ। दांपत्य जीवन में स्वामी का मतलब रक्षक और साथी होता है। जो आपके भरोसे अपनी पूरी उम्र आपके कदम से कदम मिलाकर बिताना चाहती है उसकी कुछ जायज़ इच्छाओं का सम्मान करना पति का नैतिक फ़र्ज़ बनता है।
पर आज की पढ़ी लिखी लड़कीयों की सोच में परिवर्तन आ गया है। आज की लड़की पति परमेश्वर नहीं ढूँढती, वो ढूँढती है जीवनसाथी। जो एक दोस्त जैसा हो हर कदम पर साथ देने वाला और हर फैसले का मान रखने वाला हो। जो अपने विचार पत्नी पर थोपने वाला ना हो। अगर लड़की भी नौकरी करती है तो हर काम में हाथ बंटाने वाला हो। कभी ऑफिस से आने के बाद एक कप कोफ़ी का थमाते दो प्यार भरे शब्दों से अपनापन जताए। बच्चों की परवरिश में जो पूरा सहयोग करें और पत्नी के माता पिता की भी उतनी ही इज्जत करें जितनी अपने माता-पिता की करता है। जो व्यसनों से दूर हो और अपनी पत्नी को पत्नी नहीं इंसान समझता हो।
तो क्या गलत चाहती है लड़की ? एक लड़की जो अपना सबकुछ छोड़ कर एक अन्जानी दुनिया में सिर्फ़ अपने पति के भरोसे कदम रखती है, ना ससुराल में किसीको जानती है, ना किसीके स्वभाव से परिचित है। अपना पूरा वजूद मिटाकर एक धरती से दूसरी मिट्टी में पनपना आसान काम नहीं। कितने सारे रिश्ते निभाना, ससुराल के रीत रिवाज़ों में खुद को ढ़ालना, एक-एक व्यक्ति को समझना, अपनी आदतों को जड़ से बदलना और पति की पसंद में ढ़लना सच में एक लड़की ही कर सकती है। ऐसे में अगर पति पति ना बनकर एक प्यारा साथी बनकर लड़की को अपने मजबूत बाँहों के साथ मानसिक रुप से साथ देता है तो नई नवेली बहू के लिए ससुराल में अपनी पहचान और जगह बनाना बहुत सहज और सरल बन जाता है।
अगर लड़का मर्दाना अहं के चलते लड़की को अकेला छोड़ देता है उस परिस्थिति में लड़की की हालत खराब होती है। कहीं सास-ससुर अकडू होते है, कहीं ननंद का राज होता है, कहीं जेठानी आधिपत्य जमाए बैठी होती है। ऐसी हालत में नई आई लड़की को सिर्फ़ अपने पति का सहारा होता है। अगर पति एक सशक्त स्तंभ की तरह अपनी पत्नी के साथ खड़ा रहता है तो हर लड़की ज़िंदगी की सारी जंग जीत लेती है। पर अगर जड़ ही खोखली होगी तो टहनी बेचारी लुढ़क जाएगी। पति-पत्नी जीवन रथ के दो पहिये है ज़िंदगी का एक पूरा सफ़र काटना होता है हर परिस्थिति में एक दूसरे का हाथ थामें एक दूसरे का संबल बनकर। यही तो जीवन साथी की सच्ची परिभाषा है।
(भावना ठाकर, बेंगलोर)