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आखिर क्यों सुलग रहा पूरब का ऑक्सफोर्ड..?

2017.05.04 ravijansaamna Ashish shuklaदिन बदल रहा है अब इलाहाबाद में कुछ छात्रों की विश्वविद्यालय में राजनीति जोरों पर है कुछ का तो पढ़ाई से कोई वास्ता ही नहीं, केवल टाइम पास और गुन्डई करने के लिए विश्वविद्यालय में किसी तरह एडमिशन ले लिए हैं। एडमिशन में जब विश्वविद्यालय ने पारदर्शिता लाने की कोशिश की थी और प्रवेश परिक्षाओं का मॉडल चेंच करके ऑनलाइन कर दिया तब इन फुटकरिया लोगों के घुसने के चांस काफी कम हो गये जिसके चलते स्वतंत्रता के नाम पर खूब अनशन किये गये।आपको याद दिला दें यह वही लोग हैं जो सरकार के डिजटल-इंडिया प्रोग्राम को प्रमोट करने के लिए गला फाड़कर वाट्सअप फेसबुक पर डिजटलाइजेशन की बात करते थे, लेकिन जब अपनी लुटिया डूबती महसूस हुई तब खुलकर ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा का विरोध किया गया, हलांकि यूजी में एडमिशन लेने वाले कुछ ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों को इससे परेशानियां आई। सही मयानेमें यहीं से ही विश्वविद्यालय में मौजूदा अराजकता की पहले कड़ी की शुरूआत होती है। विवि. का आलम किसी से छिपा नहीं है, प्रो. की क्या मजाल किसी छात्र से थोड़ी ऊंची आवाज में बात कर लें, अगर बहुत बद्तमीजी कर दी और प्रो. साहब ने कुछ बोल दिया तो उनका बाहर मिलना तय है। सवाल उठता है कि , क्या उनके परिवार और गुरू ने जो संस्कार उन्हें दिए वह सब बेकार हो गये? आखिर बात-बात पर वह अराजक क्यों हो जा रहे हैं, क्या उनके अंदर सहनशीलता उ भाव खत्म हो गया है। देश ने जब आजादी की सांस ली थी तब हमारी शिक्षा व्यवस्था की आधार-शिला खासी मजबूत नहीं थी, 1951 की जनगणना के समय देश में कुल 27.66 प्रतिशत पुरुष जबकि 8.86 प्रतिशत महिलायें शिक्षित थी, वहीं 2011 की जनगणना के अनुसार अब कुल 82.12 प्रतिशत पुरूष और 65.46 प्रतिशत महिलायें शिक्षित हैं। इससे हमें पता चलता है कि आखिर इन 68 सालों में हमारी शिक्षा व्यवस्था में कितना सुधार आया है, किंतु आज जिस तरह देश के तमाम विश्वविद्यालयों में छात्रों द्वार उग्र प्रदर्शन और हिंसात्मक रूप से प्रशासन का विरोध किया जाता है, इससे क्या समझा जाये? सवाल उठता है कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था सही दिशा में रही है? और अगर है तो इस तरह के अराजक महौल फैलाने वाले छात्रों को इसकी शिक्षा काहां से मिलती है।आखिर बीस-तीस साल पहले ऐसा देखने को नहीं मिलता था कि कोई थोड़ी सी बात पर वह उग्र हो जाए। बढ़ती शिक्षित आबादी ने आखिर किस प्रकार कि शिक्षा हासिल की है यह चिंतन का विषय है। 2005 में केंद्रीय विवि. का दर्जा हासिल करने वाले इलाहाबाद विवि.को पूरब का आक्सफोर्ड इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसने दशकों से देश को तमाम आईएस, आईपीएस, नेता- अभिनेता दिये हैं। इसने ही उच्च शिक्षा की बुनियाद रखी, लेकिन मौजूदा बढ़ रहे अराजक महौल के चलते इसकी छवि खराब हो रही है। गौरवतलब है कि लंबे अरसे तक इसका अस्तित्व शिक्षा के सर्वोच्च केंद्र के रूप में रहा है, लेकिन आज जिस तरह से उग्र छात्र मात्र इसलिए सिस्टम से लड़ रहे हैं, क्योंकि हाइकोर्ट ने अवैध रूप से हॉस्टल में रहे रहे छात्रों को बाहर निकालने का आदेश दियाहै। सवाल उठता है कि जहां एकतरफ यहीपढ़े-लिखे छात्र अपनी तमाम समस्याओं के निस्तारण के लिए न्यायपालिका को आधार मानते हैं, वहीं दूसरी और उसके द्वारा विवि. हास्टल में पारदर्शिता लाने के मकसद से दिये गये उचित निर्णय का विरोध क्यों कर रहे हैं, और इनके विरोध करने का तरीका विवि. के विधि विभाग के ऑडिटोरियम, विवि के एक प्रो.एस के महाराणा की कार को फूंककर बमबारी करते हुए तमंचे के बलपर 50 लाख तक की विवि. की सम्पत्ति को खाक करके देने की क्या जरूरत थी। सवाल उठता है आखिर इनके विरोध करने का तरीका इतना उग्र कैसे हो सकता है? इनके पास इस तरह की सामग्रियां कहां से आयी? सरकार को इसपर विचार करने की आवश्यकताहै।अवैध रूप से हास्टल में रह रहे इन छात्रों में शायद कोई मानवता नहीं बची है तभी नए वर्ष में प्रवेश लिए हुए निम्न परिवार के छात्रों को हॉस्टल में रहने की जगह नहीं दे रहे हैं। यह देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि, देश का युवा जिसपर राष्ट्र के विकास की आधार शिला रखी हुई है वह इस तरह से अपना रुख रखे हुए हैं। सवाल उठता है कि अगर इनका रूख ऐसा ही रहा तो क्या इनका योगदान सच में राष्ट्र के विकास में रह पायेगा? यह सोचने वाली बात है।शायद भारत में बढ़ रही ग्रेजुएट लेवल की बेरोजगारी के पीछे का सच भी यहां से उजागर होता हुआ देखा जा सकता है। अब यह देखना होगा कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सत्ता में आयी बीजेपी सरकार कतनी तत्परता से इसपर काबू पाती है। इस प्रकार की घटित घटनाएं न सिर्फ विवि. में बल्कि आस-पास के इलाकों में भी आराजकता का माहौल बनाती हैं, घटित हुई इस घटना से राज्य को सबक लेना चाहिए और इसपर गंभीरता से विचार-विमार्श करके इस स्तर पर पहुंचना चाहिए जहां से आगे भविष्य में इस तरह की घटनाएं सामने न आए। लेखक –आशीष शुक्ला