Thursday, November 28, 2024
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वृद्धाश्रम समाज का सबसे बड़ा कलंक है

गुनहगार की तरह अपने ही बच्चों को जन्म देने की सज़ा काट रहे होते है माँ-बाप उस वृद्धाश्रम नाम की जेल में। क्या महसूस करते होंगे वो बुढ़े मन सिर्फ़ सोचकर ही आँखें नम हो जाती है।
कोई कैसे द्रोह कर सकता है उस पिता का जिस पिता ने तुम्हारी जीत के लिए अपना सबकुछ हारा हो, और जिस माँ को तुमने हर बार हर मुश्किल पर पुकारा हो। बच्चें माँ-बाप के लिए जान से ज़्यादा किंमती जेवर जैसे होते है। बच्चों की एक आह और तकलीफ़ पर कलेजा कट जाता है माँ-बाप का। बच्चे का रोना सौ मौत मारता है माँ बाप को।
बच्चों की जरूरतों पर अपने हर शौक़ कुर्बान करने वाले माँ-बाप के प्रति फ़र्ज़ न निभा पाओ न सही, पर बुढ़ापे में वृध्धाश्रम की दहलीज़ पर छोड़ आना हरगिज़ लाज़मी नहीं। माँ-बाप है तो तुम हो। बच्चें के जन्म पर खुद को पूरा महसूस करते है माँ-बाप। अपने सपने, अपनी खुशी और अपना भविष्य बच्चों की हथेलियों पर रख देते है। जो खुद नहीं पा सकें वो सब अपने बच्चों को देने की कोशिश में उम्र बिता देते है।
एक पिता का दिल बड़ा नाजुक होता है, बच्चों की हर ज़िद्द के आगे नर्म टहनी सा झुक जाता है। बच्चों के सपने पूरे करने की चाह में पसीजते कब उम्र निकल जाती है पता ही नहीं चलता। हैसियत से ज़्यादा देने की कोशिश में रीढ़ टेढ़ी हो जाती है बाप की। माँ की जवानी बीत जाती है बच्चों को पालने और लंगोट बदलते रतजगे करने में। माँ दो साड़ी में दो साल काट लेती है, पर बच्चों के शौक़ को जीवंत रखती है। घर खर्च में से पाई-पाई जोड़कर बच्चों की मांगें पूरी करते कब बालों में चाँदी भर लेती है पता ही नहीं चलता। आसान नहीं बच्चों को जन्म से लेकर पच्चीस तीस सालों तक जतन से पालना। तन, मन, धन से नि:स्वार्थ अपना कर्तव्य निभाते माँ-बाप की दुनिया बच्चों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। कोई चाह नहीं, कोई आस नहीं बच्चों की खुशी के सिवा कोई मोह नहीं।
बच्चों की बात पर हाँ में हाँ मिलाते जायज़, नाजायज़ हर मांग खुशी-खुशी पूरी करने में एक अतृप्त आनंद महसूस करते है। उम्र का आधा हिस्सा बच्चों के लालन-पालन में गुज़ारने वाले माँ-बाप को इतना तो हक है कि ज़िंदगी का आख़री पड़ाव पोते-पौतियों को खिलाते बेटे-बहू और घर-परिवार के सानिध्य में बिताएं। आपको ज़िंदगी देकर शानो शौकत से पालने वाले माँ-बाप आज भी कोई उम्मीद नहीं रखते। बस ज़रा उनके पास बैठो, उनकी जरूरत पूछो, माँ पापा खाना खाया ? दवाई ली ? तबियत कैसी है, बस आपकी ये चंद बातें और परवाह बुढ़े तन में प्राण फूंकने का काम करेगी। बेरुख़ी से बात करना, माँ बाप को बोझ समझना और वृध्धाश्रम की ख़ाक छानने छोड़ देना उनको जीते जी मार ड़ालेगा। याद रखिए बूढ़ा एक दिन सबको होना है। माँ बाप के प्रति आपका बर्ताव आपके बच्चें देखते ही होंगे, आपको अपना बुढ़ापा सुरक्षित रखने के लिए ही सही माँ-बाप को प्यार से रखना चाहिए। बाकी तो अपनी खाल के जूते बनवाकर पहनाओगे तब भी माँ बाप के अहसानों का बदला नहीं चुका पाओगे।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)