Sunday, November 24, 2024
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एक कर्मठ, परिश्रमी और योग्य भाजपाई का निष्कासन!

portal head web news2नीरज चक्रपाणि, हाथरस। भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश अनुशासन समिति ने सूबे के 87 भाजपाइयों को बाहर का रास्ता दिखाया है। ऐसी कार्यवाही संगठन की मजबूती के लिए जरूरी भी होती हैं। लेकिन क्या ऐसी गम्भीर कार्यवाही के पहले जिला स्तर के संगठनों की राय नहीं ली जानी चाहिए? हाथरस में तो कम से कम ऐसा नहीं हुआ। यों तो हाथरस में पूर्व विधायक प्रताप चौधरी एवं पूर्व जिला महामंत्री डा. चन्द्रशेखर रावल पर गाज गिरी है लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा यहां की भाजपा के कर्मयोगी कहे जाने वाले जिले के प्रतिष्ठित बागला डिग्री कालेज के प्रोफेसर डा. चन्द्रशेखर रावल के निष्कासन को लेकर है। आलाकमान के इस फैसले से भाजपा कार्यकर्ताओं में मायूसी है लेकिन डा. रावल ने आलाकमान के इस फैसले को सर-माथे लगा लिया है।
इस बाबत जब डा. रावल से बात की गई तो उन्होंने पहले जैसे ही अन्दाज़ में कहा कि ‘फर्क उनको पड़ता है जो स्वार्थों की राजनीति करते हैं। मैं निस्वार्थ भाव से पार्टी के जिला महासम्पर्क प्रमुख, जिला महामंत्री, जिला प्रभारी आईटी सेल जैसे विभिन्न दायित्वों का निर्वहन कर चुका हूं। क्षेत्र की जनता जानती है कि मैं उनके बीच कितना रहा हूं और जिसे जनता का प्यार मिलता रहे उसे ऐसे पदों से कोई मोह नहीं होना चाहिए।’

जब डा. रावल से पूछा गया कि आप भी पूर्व में विधानसभा और लोकसभा के टिकट की दावेदारी कर चुके हैं तो फिर इसे आपका स्वार्थ क्यों नहीं माना जाय? इस पर उनका कहना है ‘टिकट की दावेदारी प्रत्येक पात्र कार्यकर्ता का अधिकार है। टिकट की दावेदारी कार्यकर्ता नहीं करेंगे तो क्या बाहर से आने वाले करेंगे। टिकट की दावेदारी महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि टिकट न मिलने पर भी कितने दावेदारों ने पार्टी प्रत्याशी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। सभी जानते हैं कि चाहे विधासभा हो या लोकसभा के चुनाव हों मैंने पार्टी प्रत्याशी के साथ हमकदम बनकर दिनरात मेहनत की है।’
सूत्र बताते हैं कि डा. रावल के निष्कासन के पीछे यहां के छोटे-बड़े दोनों जनप्रतिनिधियों की अहम भूमिका रही है। सूत्रों की मानें तो बड़े साहब को आगामी लोकसभा चुनावों में रावल से बड़ा ख़तरा नज़र आ रहा था और छोटे साहब को विधानसभा चुनावों में दिए गए महामंत्री पद से दिए इस्तीफे की खुन्नस निकालनी थी सो अपने-अपने स्वार्थों को साधने के चक्कर में डा. रावल जैसे कर्मठ और योग्य कार्यकर्ता की बलि चढ़वा दी। मजेदार बात यह है कि दोनों साहबों में 36 का आंकड़ा होते हुए भी इस मुद्दे पर एकता दिखाई दी। यह भी ज्ञात हुआ है कि छोटे सदरान साहब के अभी हाल ही में हुए करीबी जिले के एक मंत्री ने डा. रावल के निष्कासन की घोषणा लगभग एक माह पूर्व ही कर दी थी।
जिस प्रकार भाजपा जिलाध्यक्ष को हटवाने के लिए एक सुनियोजित षडयंत्र रचा गया वैसी ही बू पार्टी आलाकमान के इस फैसले में आ रही है। इस प्रकरण पर जब जिलाध्यक्ष रामवीर सिंह परमार से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि डा. रावल को नोटिस भेजा गया था और समय से उन्होंने अपना स्पष्टीकरण भी प्रस्तुत कर दिया था किन्तु उसके बाद उनसे किसी शीर्ष पदाधिकारी ने कोई विचार-विमर्श नहीं किया। उनका मानना है कि डा. रावल का निष्कासन दुर्भाग्यपूर्ण है।
बहरहाल, सच्चाई यह है कि डा. रावल के निष्कासन के आलाकमान के फैसले को जिले की जनता और भाजपा कार्यकर्ता हजम नहीं कर पा रहे हैं और दबी जुबान में वे निष्कासन का विरोध कर रहे हैं। जिले के वरिष्ठतम भाजपाई पूर्व जिला उपाध्यक्ष गिर्राज किशोर वशिष्ठ का मानना है कि डा. रावल जैसे सुयोग्य, युवा और कर्तव्यनिष्ठ पार्टी कार्यकर्ता का निष्कासन दुःखद और पीड़ादाई है। आलाकमान को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए।